यशोदा श्रीवास्तव
विधानसभा का चुनाव पांच प्रदेशों में है,और यदि समय से चुनाव कराने की मेहरबानी चुनाव आयोग ने की तो बहुत कम अंतराल में पांचों प्रदेशों के चुनाव होंगे. लेकिन क्या ऐसा नहीं लगता कि भाजपा का सारा चुनावी जोर यूपी में ही है. बिल्कुल प.बंगाल जैसा. वहां ममता को हराने के लिए पूरी केंद्र सरकार फाट पड़ी थी और यूपी में योगी सरकार बचाने के लिए फाट पड़ी है. हाल यह है कि योगी की कुर्सी बचाने पीएम और गृहमंत्री यूपी में जूझ रहे हैं. इनके भाषण भी बिल्कुल सतही. सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने मंदिर बनाने से रोकने जैसी बात कहीं नहीं कही जबकि शाह अपनी सभाओं में ठसक से कह रहे हैं कि "अखिलेश लाख चाह लें लेकिन मंदिर का निर्माण नहीं रूकेगा".
पिछले सात सालों में वेशक कुछ विकास के कार्य भी हुए हैं लेकिन भाजपा इतनी डरी हुई है कि वह मंदिर मस्जिद हिंदू मुसलमान से आगे बढ़ ही नहीं पा रही. प्रचार के लिए लगे उसके होर्डिंग्स में अयोध्या ही दिख रहा है. काशी भी जल्द दिखने लगेगा. धूंआधार जनविश्वास यात्राओं में केंद्र से लेकर प्रदेश तक यूपी से जुड़े जितने बड़े नेता हैं सबको झोंक दिया गया और हिंदू खतरे हैं,के नाम पर वोट मांग रहे हैं. बहुत आगे बढ़ पाए तो मुफ्त अनाज से लेकर आवास, शौचालय और किसान सम्मान निधी को वोट पाने का हथियार बना रहे हैं. हालांकि जनविश्वास यात्राओं में आ रही भीड़ से इन्हें निराशा ही हो रही है.
भाजपा के लोग अपने भाषणों में अभी सपा और अखिलेश पर निशाना साध रहे हैं,बसपा का तो नाम नहीं लेते जबकि कांग्रेस को मरा हुआ सांप बताते हैं. हकीकत इसके इतर है. कांग्रेस खास तौर से प्रियंका की सभाओं में उमड़ी भीड़ भाजपा को कम बेचैन नहीं कर रही. बीजेपी की बड़ी परेशानी कांग्रेस के 40 प्रतिशत महिलाओं को टिकट देने को लेकर भी है. कांग्रेस की यह घोषणा सचमुच हैरान करने वाली थी क्योंकि जिस प्रदेश में कांग्रेस के महिला संगठन का अता पता न हो वहां 40 प्रतिशत महिलाओं को टिकट? लेकिन यूपी में प्रियंका की सभाओं में उमड़ रहा जनसैलाब और फिर लड़कियों के मैराथन दौड़ में भी लड़कियों के भारी उत्साह को देख यह भ्रम दूर हो गया. इधर यूपी कांग्रेस के एक बड़े पदाधिकारी ने बताया कि करीब पांच हजार महिलाओं ने टिकट के लिए आवेदन कर रखा है. 40 प्रतिशत के हिसाब से यूपी में 161 टिकट केवल महिलाओं को! कांग्रेस सूत्रों से पता चला है कि करीब 70 महिलाओं का टिकट पक्का भी है और इसकी सूची कभी भी जारी हो सकती है. शेष सीटों के लिए स्क्रीनिंग का काम तेजी से चल रहा है.
चुनाव परिणाम पर तो कुछ भी कहना जल्दबाजी होगी लेकिन कांग्रेस की घोषणाएं भी भाजपा के परेशानी का सबब है. कुछ अजीब सा जरूर लगता है ,महिला घोषणा पत्र,! लेेेेकिन आज की राजनीति का जो चलन है, इसमें प्रियंका गांधी के इस चुनावी स्टेटजी को मास्टर स्ट्रोक क्यों न कहा जाय? महिला घोषणा पत्र निसंदेह यूपी विधानसभा चुनाव के लिए कमर कस कर मैदान में उतरी प्रियंका गांधी के 40 प्रतिशत महिलाओं को टिकट देने की रणनीति का हिस्सा है.
पिछले दिनों लखनउ में प्रियंका गांधी ने महिलाओं के लिए खास तौर पर अलग घोषणा पत्र जारी किया है. इसे महिलाओं को सशक्त बनाने संबंधी 6 भागों में वर्गीकृत किया गया है. सबके अलग अलग मायने हैं. मुमकिन है बीजेपी सहित अन्य राजनीतिक दलों के लिए प्रियंका का यह खास घोषणा पत्र उपहास जैसा हो लेकिन चुनाव के ऐन पहले जब प्रधानमंत्री महिलाओं की अलग सभा बुलाते हों,उनसे अलग से बात करते हों, सीएम योगी अपने शहर गोरखपुर में ई_बस के लड़की ड्रायवर के साथ फोटो खिंचवा रहे हों तो भाजपा की यह रणनीति कहीं न कहीं कांग्रेस के महिला घोषणा पत्र से जुड़ा हुआ जरूर है. वैसे भी बाकी राजनीतिक दल वोट के लिए जब जातियों का बंटवारा करते हैं, उनके अलग अलग सम्मेलन करते हैं और जन आर्शीवाद यात्राएं निकालते हैं,ऐसे में प्रियंका यदि महिलाओं को लामबंद कर रही हैं तो बुरा क्या है? प्रियंका गांधी जब महिलाओं की बात करती हैं तो उसमें कम से कम जातिय विभेद तो नहीं होता.
अफसोस! प्रियंका गांधी के इस कदम पर सवाल खड़े करने वाले वे लोग हैं जो महिलाओं के लिए दावे बड़े बड़े करते हैं लेकिन जब उनकी भागीदारी की बात होती है तब बगले झांकने लगते हैं. सोचिए बसपा सुप्रिमों मायावती तक ने महिला होकर भी महिलाओं के बारे में कितना सोचा? 2017 के विधानसभा चुनाव में सभी 403 सीटों पर चुनाव लड़ने वाली बसपा ने कितनी महिलाओं को टिकट दिया था? मात्र 21! इसमें से जीत कितनी पाईं, मात्र दो. महिला होकर भी जब एक सशक्त नेता ने महिलाओं के बारे में कुछ नहीं सोचा तो बाकी दलों की बात ही और है. इसी 2017 के विधानसभा चुनाव में 384 सीटों पर चुनाव लड़ी बीजेपी ने 46 महिलाओं को टिकट दिया था जिसमें 36 महिलयेें जीतकर विधानसभा में पंहुची थी. इस हिसाब से बीजेपी ने 12 प्रतिशत महिलाओं को टिकट दिया था. सपा ने 31 महिलाओं को टिकट दिया था और जीतकर विधानसभा तक केवल एक पंहुची. कांग्रेस जो सपा के साथ गठबंधन में 112 सीटों पर चुनाव लड़ी थी,उसने 11 प्रतिशत महिलाओं को टिकट दिया था और दो जीतकर विधानसभा पंहुची थी. महिलाएं,जिसे गर्व के साथ आधाी आवादी कहते हैं तो भाई इन्हें आधा हक देने में कंजूसी क्यों?
संभवतः प्रियंका गांधी ने यूपी के आसन्न विधानसभा चुनाव में राजनीति की बहुत मजबूत नब्ज पकड़ ली है. उन्होंने महिलाओं की ताकत को शिद्दत से समझा है और जहां आज की राजनीति जातियों में विभक्त है वहीं उन्होंने हर जाति की महिलाओं के राजनीति का दरवाजा खोलकर बड़ा दांव खेला है. महिलाओं के लिए ढेर सारे वादे भी उन्होेंने किया है. छात्राओं को पढ़ाई के लिए स्मार्ट फोन और स्कूटी का वादा भी किया है. वादा ही नहीं लड़कियों का मैराथन दौड़ कराकर इसे देना भी शुरू कर दिया.
इतना ही नहीं किसी भी घर की महिला हो उनके लिए फ्री बस की सुविधा का भी वादा किया है. चुनावों में एक से बढ़कर एक वादा तो सभी करते हैं लेकिन उनके वादे पूरे होते हुए नहीं दिखते. प्रियंका गांधी के बारे में आम धारणा है कि वे जो कहती हैं, उसे करती भी हैं. अर्थात उनके वादे पर लोगों को भरोसा है. विधानसभा चुनाव में प्रियंका के वादे कितना असरकारक होंगे, इसका आकलन तो नहीं किया जा सकता लेकिन एक बात साफ है वो ये कि वोट प्रतिशत के सर्वे में कांग्रेस कुछ न कुछ बढ़त हासिल करती हुई ही दिख रही है. 2017 के चुनाव में यूपी में कांग्रेस का वोट प्रतिशत 6 प्रतिशत था, अभी कुछ चैनलों के सर्वे में भी इसके वोट प्रतिशत को 8 से 10 प्रतिशत तक बताया गया है. चुनाव आते आते इसमें और इजाफा ही होना है.
राजनीति के एक टिप्पणीकार का कहना है कि प्रधानमंत्री मोदी जी युपी के अपने दौरे में सपा और उसकी लाल टोपी का जिक्र जो कर रहे हैं, उसके पीछे उनका कांग्रेस की बढ़ती लोकप्रियता को लेकर घबड़ाहट ही है. वे सपा का नाम लेकर वोटों का ध्रुवीकरणवीकरण करना चाह रहे हैं. सपा का नाम लेने का मतलब हिंदुओं को मुसलमानों से डराना है. सीएम योगी भी जब चचा जान और अब्बा जान कहते हैं तो आखिर इसके पीछे क्या है? इधर माह भीतर पीएम मोदी का यूपी में कई दौरे हो चुके हैं. सिद्धार्थनगर,कुशीनगर,वाराणसी, गोरखपुर, बलरामपुर और भी जाने कहां कहां! दनादन उद्घाटन और शिलान्यास के बहाने यूपी के लगातार दौरे के पीछे सिर्फ यह कि खुद पीएम यागी को सीएम बनाने के लिए मैदान में उतर चुके हैं.
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