किधर जाएं यह उर्दू बोलने वाले

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किधर जाएं यह उर्दू बोलने वाले

फ़ज़ल इमाम मल्लिक

नाजनीन कोटा की रहने वाली थीं. उनकी बेटी है जिसके सर से मां का साया छिन गया है. राजस्थान की कांग्रेस सरकार के रवैये ने उनकी जान ले ली. नाजनीन उर्दू के हक की आवाज बुलंद कर रहीं थीं और अपने अधिकार भी मांग रहीं थीं लेकिन राजस्थान के मुख्यमंत्री उर्दू वालों की मांगों को अनदेखी करते रहे. गहलौत सरकार ने उर्दू वालों की मांगें नहीं मानीं तो सरकार की नीतियों और वादाखिलाफी के खिलाफ उर्दू वालों ने धरना-प्रदर्शन शुरू किया. दो महीने से ज्यादा बीत गए हैं लेकिन राजस्थान सरकार सिर्फ वादों पर ही टरखा रही है. मदरसा पैराटीचर सेवा नियमित करने की मांग को लेकर प्रदर्शन कर रहे हैं. इनमें भालू खान भी हैं जो करीब दो महीने से अनशन कर रहे हैं. लेकिन अभी तक सरकार ने उन्हें वादों का लालीपाप ही दिया है. धरना प्रदर्शन के दौरान ही नाजनीन की मौत हो गई थी. किसान आंदोलन के दौरान सात सौ किसानों की मौत पर स्यापा करने वाली कांग्रेस नाजनीन की मौत पर चुप है. वैसे प्रदर्शनकारियों की मानें तो इस प्रदर्शन के दौरान तीन और लोगों की मौत हुई है. मदरसा पैरा टीचरों के साथ-साथ राजीव गांधी पाठशाला पैराटीचर्स और दूसरे शिक्षाकर्मी भी प्रदर्शन में शामिल हैं.

मदरसा टीचरों की पीड़ा अपनी है. उनका कहना है कि कांग्रेस की सरकार मुसलमानों की अनदेखी कर रही है जबकि सरकार बनाने में मुसलमानों का बड़ा योगदान रहा है. लेकिन सरकार बनने के बाद कांग्रेस ने उर्दू की अनदेखी तो की ही, मुसलमानों की जायज मांगों पर विचार करने तक की जरूरत नहीं समझा. उर्दू टीचरों के साथ-साथ सरकार के रवैये पर मुसलमानों में नराजागी भी है और मलाल भी. मुसलमानों का कहना है कि धर्मनिरपेक्षता का लालीपाप हमें हर बार थमा दिया जाता है और सरकार बनते ही मुसलमानों को फिर से उनके हाल पर छोड़ दिया जाता है. इस प्रदर्शन और आंदोलन के अगुआ आफताब अहमद का कहना है कि कक्षा पांच तक उर्दू की पढ़ाई करनी जरूरी है लेकिन स्कूलों में इसकी कोई व्यवस्था नहीं है.

अधिकारियों का कहना है कि ऊपर से आदेश नहीं है. उर्दू के साथ गहलौत सरकार सौतेला व्यवहार कर रही है. अधिकारी-शिक्षकों का रवैया उर्दू पढ़ने वालों को अपमानित करने वाला है. शिक्षक बच्चों को धमकाते हैं कि अगर विषय के तौर पर उर्दू लिया तो फिर दूसरे विषयों में फेल कर देंगे. इससे बच्चों में डर और दहशत इतनी है कि अब उर्दू के नाम से बच्चे घबरा रहे हैं.

मुसलमानों की नाराजगी कांग्रेस के मुसलिम विधायकों से भी है. राजस्थान विधानसभा चुनाव में नौ मुसलिम विधायक हैं लेकिन मुसलमानों की जायज मांगों पर भी सरकार से बात करने में उन्हें हिचक होती है. हालांकि विधायक अमीन कागज़ी ने इस संबंध में 18 अक्तूबर को मुख्यमंत्री अशोक गहलौत को पत्र लिख कर शिक्षकों का सवाल उठाया है. लेकिन सरकार उनके पत्र पर भी सोई हुई है. राजस्थान में 1994 से शिक्षाकर्मी और 1999 से मदरसा व राजीवगांधी पाठशाला पैराटीचर बहुत ही कम पैसे पर काम कर रहे हैं. इनकी मांग है कि उन्हें स्थायी और नियमित किया जाए ताकि वे अपने परिवार का पेट पाल सकें. कांग्रेस ने 2018 के अपने चुनाव घोषणापत्र में इसका जिक्र किया था. शिक्षकों ने आंदोलन किया तो सरकार ने उन्हें वादों का झुनझुना थमाया और भरोसा दिलाया कि 30 सितंबर, 2021 तक सबकों नियमित कर दिया जाएगा. लेकिन यह तारीख भी बीत गई तो उसके बाद मदरसा पैराटीचरों और दूसरे शिक्षाकर्मियों ने प्रदर्शन-आंदोलन की राह पकड़ ली है. प्रदेश के हर जिले में कमोबेश आंदोलन चल रहा है. कई विधायकों के घर के बाहर भी धरना-प्रदर्शन जारी है. भालू खान अपनी मांगों को लेकर दो महीने से भी ज्यादा समय से अनशन कर रहे हैं. लेकिन किसान आंदोलन का समर्थन करने वाली कांग्रेस सरकार को अपने राज्य में मदरसा टीचरों का दर्द नहीं दिखाई दे रहा है. प्रदर्शनकारियों ने कुछ दिन पहले राज्य के मंत्री हेमराम चौधरी का घेराव भी किया था. प्रदर्शनकारी मुख्यमंत्री से गुहार लगा रहे हैं कि यह राजस्थान के सविंदा शिक्षक के पेट की लड़ाई है, इस लड़ाई को जीतने के लिए हम अपनी जान तक भी कुर्बान कर देंगे. आपसे निवेदन है कि 62 दिन से भालू खान अनशन पर बैठे हैं आपसे निवेदन है कि भालू की माँगों को पूर्ण कर उनका अनशन तुड़वाएं. लेकिन सरकार तक शिक्षकों की आवाज नहीं पहुंच रही है. सामाजिक कार्यकर्ता ऐनी अख्तर चिश्ती का कहना है कि मुसलमान और उर्दू के समलों को लेकर सरकार कितनी गंभीर है, इस एक मिसाल से ही समझा जा सकता है कि राजस्थान में कई सालों से उर्दू की किताबें छपनी बंद हो गईं हैं. अब उर्दू में किताबें ही नहीं छपेंगी तो उर्दू कैसे बचेगी, यह बड़ा सवाल है.


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