एक और मधेशी नेता की कम्युनिस्ट पार्टी में इंट्री

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एक और मधेशी नेता की कम्युनिस्ट पार्टी में इंट्री

भारत नेपाल सीमा से यशोदा श्रीवास्तव

:नेपाल में यद्दपि की कट्टर माओइस्ट प्रचंड गुट के सांसदों के समर्थन से नेपाली कांग्रेस की सरकार है लेकिन नेपाल की राजनीति में नेपाली कांग्रेस की स्वीकार्यता क्या पहले जैसी बच पाई है जैसा कि स्व.गिरिजा प्रसाद कोइराला या उससे पहले के नेपाली कांग्रेस के नेताओं के समय थी? नेपाली कांग्रेस को लेकर उसके समर्थक व शुभचिंतकों के माथे पर चिंता की यह लकीर साफ देखी जा रही है। अभी नेपाली कांग्रेस के संगठनात्मक चुनाव संपन्न हुए हैं। जिला और ग्राम पंचायत से जीते प्रतिनिधि केंद्रीय अध्यक्ष का चुनाव करते हैं। इस चुनाव में नेपाली कांग्रेस दो धड़ों में बंटी हुई देखी गई। इस संगठनात्मक चुनाव में प्रधानमंत्री शेरबहादुर देउबा और दूसरे वरिष्ठ नेता रामचंद्र पौडेल के बीच यह चुनाव बंटा हुआ था और भारत सीमा से सटे नेपाल के जिला और तमाम ग्रामसभाओं में देउबा के उम्मीदवार पराजित हुए। हैरत है कि भारत सीमा से सटे नेपाली जिला तौलिहवा (कपिलवस्तु) में सारी सीटों पर देउबा समर्थक उम्मीदवार चुनाव हार गए जबकि देउबा समर्थक उम्मीदवारों को जिताने का कमान नेपाली कांग्रेस के वरिष्ठ नेता व भारत में नेपाल के राजदूत रहे दीप कुमार उपाध्याय संभाले हुए थे। यहां पौडेल गुट के समर्थक संगठनात्मक प्रतिनिधि का चुनाव जीतने में सफल हुए हैं।

खैर जिला और गांव संगठन  के इस चुनाव के संपन्न होने के फौरन बाद हुए नेपाली कांग्रेस के केंद्रीय चुनाव में देउबा ही अध्यक्ष चुने गए लेकिन यह संदेश तो गया ही कि नेपाली कांग्रेस के अंदर खाने सबकुछ ठीक नहीं है। नेपाल की राजनीति में शेर बहादुर देउबा को भारत समर्थक नेता की दृष्टि से देखा जाता है।

मधेशी दल और उसके नेता तो मधेशी बेल्ट में अप्रसांगीक हो चुके हैं और अब इन्हें नेपाल की राजनीति में कोई गंभीरता से लेता भी नहीं। सत्ता के करीब वाले दल इस बात को लेकर मुत्मईन रहते हैं कि सरकार बनाने के लिए मधेशी दलों की जरूरत पड़ी तो उन्हें पद की लालच देकर अपने पाले में लाया जा सकता है। इस दल का अभी तक का इतिहास है कि ये जिस दल से लड़ते हैं,उसी दल की सरकार बनाने में मददगार होते हैं।

नेपाली राजनीति में मची ऐसी असमंजस और अफरातफरी के बीच प्रचंड और ओली अपने अपने नेतृत्व वाले कम्युनिस्ट धड़ों को मजबूत और विस्तारित कर रहे हैं। सबसे बड़ी अचरज की बात यह है कि मधेशी दल या नेपाली कांग्रेस के कमजोर होते जाने का फायदा प्रचंड और ओली गुट की कम्युनिस्ट पार्टियां उठा रही है। आज यदि भारत सीमा पट्टी को स्पर्श कर रहे मधेशी क्षेत्र के सभी 22 जिलों के हजारों हिंदी भाषी नेपाली कांग्रेस व मधेशी दलों के बड़े नेता कम्युनिस्ट दलों का दामन थाम रहे हैं तो इसकी वजह नेपाली कांग्रेस व मधेशी दलों का कमजोर होते जाना ही है।


कम्युनिस्ट पार्टी में एक और मधेशी नेता की इंट्री 

सत्ता चाहे जिसकी हो,हर सरकार में दखल रखने वाले मधेशी बेल्ट के बड़े मधेशी नेता मंगल प्रसाद गुप्ता भी मंगलवार को ओली के नेतृत्व वाली कम्युनिस्ट धड़े में शामिल हो जाएंगे। मंगल प्रसाद गुप्ता नेपाली कांग्रेस में स्व.गिरिजा प्रसाद कोइराला के बेहद करीबियों में से थे। उनके निधन के बाद इन्होंने मधेशी दल ज्वाइन कर लिया। यहां भी इनके कद की अनदेखी हुई। इस तरह पहले नेपाली कांग्रेस फिर मधेशी दल से उपेक्षा का दंश सहते हुए मंगल प्रसाद गुप्ता ने कम्युनिस्ट पार्टी में दाखिल होने का फैसला किया। राजशाही शासनकाल में सत्ता के इर्द-गिर्द रहे मंगल गुप्ता नेपाली कांग्रेस और मधेशी दल से संसद का चुनाव भी लड़ें लेकिन जनता के भारी समर्थन के बावजूद भितरघात की वजह से बहुत कम वोटों से मात खा जाते थे। बहरहाल मंगलवार को नेपाल के कपिलवस्तु जिले में पूर्व पीएम व एमाले कम्युनिस्ट पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष केपी शर्मा ओली का आगमन हो रहा है। इस अवसर पर करीब एक हजार मधेशी व नेपाली कांग्रेस के नेता कम्युनिस्ट पार्टी (एमाले) की सदस्यता ग्रहण करेंगे। खुद मंगल प्रसाद गुप्ता भी अपने हजारों समर्थकों के साथ ओली के नेतृत्व में एमाले ज्वाइन करेंगे। मंगल प्रसाद गुप्ता जैसे बड़े मधेशी नेता का कम्युनिस्ट ज्वाइन करना यहां दो तीन जिलों में मधेशी दलों व नेपाली कांग्रेस का कमजोर होना है। जानकारों का कहना है कि यदि ऐसे ही एक एक कर बड़े मधेशी नेता कम्युनिस्ट ज्वाइन कर लेंगे तो नेपाल में पहाड़ से लेकर मैदान तक लाल झंडा का परचम फहराने से कौन रोक पाएगा?


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