यूपी विधान सभा चुनाव में संकट में भाजपा ?

गोवा की आजादी में लोहिया का योगदान पत्रकारों पर हमले के खिलाफ पटना में नागरिक प्रतिवाद सीएम के पीछे सीबीआई ठाकुर का कुआं'पर बवाल रूकने का नाम नहीं ले रहा भाजपा ने बिधूड़ी का कद और बढ़ाया आखिर मोदी है, तो मुमकिन है बिधूड़ी की सदस्य्ता रद्द करने की मांग रमेश बिधूडी तो मोहरा है आरएसएस ने महिला आरक्षण विधेयक का दबाव डाला और रविशंकर , हर्षवर्धन हंस रहे थे संजय गांधी अस्पताल के चार सौ कर्मचारी बेरोजगार महिला आरक्षण को तत्काल लागू करने से कौन रोक रहा है? स्मृति ईरानी और सोनिया गांधी आमने-सामने देवभूमि में समाजवादी शंखनाद भाजपाई तो उत्पात की तैयारी में हैं . दीपंकर भट्टाचार्य घोषी का उद्घोष , न रहे कोई मदहोश! भाजपा हटाओ-देश बचाओ अभियान की गई समीक्षा आचार्य विनोबा भावे को याद किया स्कीम वर्करों का पहला राष्ट्रीय सम्मेलन संपन्न क्या सोच रहे हैं मोदी ?

यूपी विधान सभा चुनाव में संकट में भाजपा ?

डा रवि यादव

एबीवीपी से राजनीति की शुरुआत करने वाले ,बलिया से भाजपा विधायक रहे वर्तमान में उत्तर प्रदेश भाजपा राज्य कार्यपरिषद के सदस्य रामइक़बाल सिंह ने दो दिन पूर्व एक चेनल को दिए इंटर्व्यू में कहा –“यदि आज चुनाव हो तो समाजवादी पार्टी अकेले 250 के लगभग सीट जीत सकती है “ .

ज्यों ज्यों उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव नज़दीक आ रहा है चुनाव की तस्वीर भी साफ़ होने लगी है.आरोप प्रत्यारोप के साथ भाजपा के अघोषित सहयोगी संगठन भी सक्रिय हो चुके है .अखिलेश यादव के क़रीबियों के ठिकानों पर आयकर विभाग का छापा और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के अलावा प्रधान मंत्री मोदी के हमले समाजवादी पार्टी और अखिलेश यादव तक सीमित होते जा रहे है जिससे यह समझा जा सकता है कि यूपी चुनाव में भाजपा को किससे ख़तरा है.आईटी , सीबीआई और ईडी का दुरुपयोग 2014 के बाद से कर्नाटक,एमपी, राजस्थान,केरल ,दिल्ली , तमिलनाडु , बंगाल , महाराष्ट्र आदि सहित हर प्रदेश के विधान सभा चुनाव में भाजपा के मुख्य प्रतिद्वंद्वी के ख़िलाफ़ किया जाता रहा है.

भाजपा की चाहत है कि मुक़ाबला बहुकोणीय हो ताकि सत्ता विरोधी वोट बिखर जाय किंतु अब यह स्पष्ट हो चुका है कि लम्बे समय बाद 2022 विधान सभा चुनाव उत्तर प्रदेश में दो ध्रुवीय होने जा रहा है पार्टियों के पास मौजूद संगठन,संगठन और नेतृत्व की सक्रियता , जनता से मिल रहे रेस्पांस के आधार पर सीधा मुक़ाबला सत्तारूढ़ भाजपा और समाजवादी गठबन्धन के बीच दिखाई दे रहा है.

प्रियंका गांधी सक्रिय है किंतु ज़मीनी सचाई यही है कि आधार वोट के अभाव में संगठन विहीन कांग्रेस उत्तर प्रदेश मेंतमाम कोशिशों के बावजूद चौथे स्थान पर ही रहने वाली है जबकि अपनी पूर्ण निष्क्रियता और सभी बड़े नेताओं के पार्टी छोड़ने  के बाद भी बहुजन समाज पार्टी अपने बचे हुए संगठन और प्रतिबद्ध लगभग 12% आधार वोट की बदौलत कांग्रेस को पीछे छोड़ तीसरा स्थान प्राप्त करने में सफल हो सकती है. यूँ तो चुनाव आयोग कोई भी पसंद नहीं “नोटा” का विकल्प भी देता है किंतु कमाई , दवाई , पढ़ाई , सिंचाई , महँगाई सहित हर क्षेत्र में सरकार का दख़ल होता है । आप पूर्णत: शांति व सद्भाव प्रिय होने के बावजूद अपनी सुरक्षा और आत्मसम्मान के लिए भी सरकार की नीति और नीयत पर निर्भर होते है ।अतः एक जागरूकमतदाता का फ़र्ज़ है कि मनचाहे सर्वोत्तम विकल्प के अभाव में भी यह सुनिश्चित करे की किसकी सरकार बने या किसकी सरकार न बन सके .दो ध्रुवीय चुनाव में उत्तर प्रदेश केमतदाताओं के पासआगामी चुनाव में दो ही विकल्प है.मुख्यमंत्री योगीआदित्यनाथ या पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव  इन दो केअलावा आपजो भी विकल्प चुनते है,आज के राजनैतिक संक्रमण के दौर में विशुद्ध राजनैतिक विलासिता है.जागरूकता के अभाव में भाजपा को पूरी तरह नापसंद और ख़ारिज करते हुए हरियाणा के जाट समुदाय ने भाजपा के मज़बूत जाट नेता वित्तमंत्री कैप्टन अभिमन्यु व कृषि एवं पशुपालन मंत्री ओपी धनकड को चुनाव में हराया किंतु अपनी ख़ासपसंद को तरजीह देते हुए जेजेपी को वोट दे दिया परिणाम सामने है वे जिस पार्टी को सत्ता से बेदख़ल करना चाहते थे वह फिर से जेजेपी के सहयोग से सत्ता में है और उनपर लाठियाँ भांज रही है 

प्रदेश भाजपा की एक मुश्किल तो ये है कि वह सत्ता में है और उसे अपने काम का हिसाब देना है जिसे वह देना नहीं चाहती या बताने लायक कुछ नहीं है .दूसरी बड़ी मुश्किल ये है कि उसके दावों में सच का अभाव है.अजय सिंह बिष्ट उर्फ़ योगी आदित्य नाथ ने अपने चाचा कृपाल सिंह बिष्ट उर्फ़ अवैद्यनाथ से उत्तराधिकार में पहले महंत और फिर सांसद की सीट प्राप्त न की होती तो उनके द्वारा विरोधी पर भाई भतीजवाद का आरोप ज़रूर प्रभावशाली होता . यदि भाजपा ने योगी आदित्यनाथ को मुख्य मंत्री न बनाया होता और अजय मिश्रा उर्फ़ टेनी , ब्रिजेश सिंह , धनंजय सिंह , ब्रिजभूषण शरण सिंह , कुंटूसिंह , सोनू सिंह से छुटकारा पा लिया होता , बादशाह सिंह हत्या के , कुलदीप सिंह बलात्कार और हत्या दोंनो के और खब्बू तिवारी फ़र्ज़ी डिग्री मामले में विधायकी के अयोग्य न ठहराए गए होते तो दूसरे दल पर माफ़िया को संरक्षण का आरोप जनता में ज़रूर अपील करता ।

कुंभ और राममंदिर ट्रस्ट के भूमि घोटाले न हुए होते तो सरकार के ईमानदार होने के दावे पर विश्वास किया जा सकता था ।काश उन्नाव , शाहजहाँपुर , हाथरस न हुए होते तो महिला सुरक्षा और क़ानून व्यवस्था पर सरकार के दावे पर भरोसा किया जा सकता था । दुर्गेश चौधरी की लेखपाल नियुक्ति का दावा बेरोज़गारो को आप द्वारा रोज़गार दिए जाने के आश्वासन पर भरोसा नहीं करने दे रहा . तुम्हें याद हो कि न याद हो मगर वोटर को याद है .

2017 में जो हममें तुममें क़रार था तुम्हें याद हो कि न याद हो 

वही यानि वादा निबाह का तुम्हें याद हो कि न याद हो .

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