क्रिकेट अब खेल नहीं महज धंधा है

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क्रिकेट अब खेल नहीं महज धंधा है

फ़ज़ल इमाम मल्लिक

भारत में क्रिकेट अब खेल नहीं धंधा बन गया है. इंडियन प्रीमियर लीग (आईपीएल) ने इस धंधे को और परवान चढ़ाया. धंधे को बढ़ाने के लिए हर तरह के स्याह-सफेद काम किए जाते हैं. क्रिकेट में भी ऐसा हो रहा है. यह बात अलग है कि अब क्रिकेट में सफेद कम, स्याह ज्यादा है. सफेद कपड़ों की जगह रंगीन कपड़ों ने क्रिकेट में जगह बनाई और इसी के साथ क्रिकेट की सफेदी भी खत्म होती गई और कालिख कपडों पर भी लगी और क्रिकेट पर भी. क्रिकेट में लगातार यह स्याही बढ़ती जा रही है. आईपीएल ने इस कालिख को और गहरा किया. क्योंकि आईपीएल का आयोजन करता तो बीसीसीआई है लेकिन खेल कारपोरेट घराने ही खेलते हैं. मैदान पर भी खेल होता है और मैदान से बाहर भी. कभी शारजाह सट्टेबाजी के लिए कुख्यात था. भारत और पाकिस्तान के मैच होते और सट्टेबाज मैदान और मैदान से बाहर खेल कर वन टू का फोर करते रहते. इसी वजह से भारत ने शारजाह में क्रिकेट खेलने से मना कर दिया. लेकिन अब उसी शारजाह में आईपीएल के मैच खेले गए जो सट्टेबाजी के लिए कलंकित था.

दरअसल सट्टेबाजी की कमाई से आईपीएल का एक नाता है, जाने-आनजाने तौर पर. हम इस तमाशे को लगातार देख भी रहे हैं कि लोग आईपीएल में गली-मोहल्ले में दांव खेलते रहे. लेकिन हम इसे लगातार अनदेखा कर रहे हैं. हम इस बात की परवाह भी नहीं कर रहे हैं कि लोग सट्टेबाजों के जाल में उलझ कर पैसे तो गंवा ही रहे हैं, कइयों ने तो खुदकुशी तक कर ली है. आईपीएल में क्रिकेट का रोमांच कम, पैसे का खेल ज्यादा होता है. आईपीएल में पैसा बोलता भी है और पैसा खेलता भी है. इसी पैसे की बदौलत मैचो को रोमांचक भी बनाया जाता है और नतीजों को भी प्रभावित किया जाता है. आईपीएल के अगले सत्रसे यह धंधा और परवान चढ़ेगा क्योंकि अब आठ की जगह दस टीमें आईपीएल में हिस्सा लेंगी.

सच तो यह है कि आईपीएल में खिलाड़ी भी खेलते हैं और मालिकान भी. सट्टेबाजी का दाग कुछ साल पहले लगा था तो खिलाड़ियों के साथ-साथ मालिकों का कलंक भी सामने आया था. अदालती कार्रवाई के बावजूद आईपीएल में जो खेल मैदान के बाहर हो रहा है वह बदस्तूर जारी है. सट्टेबाजी का खेल उजागर होने के बाद सुप्रीम कोर्ट में मामला पहुंचा और सुप्रीम कोर्ट ने जस्टिस लोढा सिमति का गठन किया था. लोढा समिति ने अपनी सिफारिशों में भारत में सट्टेबाजी को वैध करने की बात कही थी. लोढा समिति ने अपनी इस सिफारिश को सार्वजनिक भी कर दिया. लेकिन सरकार ने ऐसा करने की इजाजत नहीं दी. सट्टेबाजी को सरकारों ने अनदेखा किया है हालांकि इसे बहुत सलीके और सुनियोजित तरीके से माफिया चला रहे हैं और पैसा बना रहे हैं. यूएई में खत्म हुए आईपीएल में इस सट्टेबाजी को देखा जा सकता था. दुबई में तो खुलेआम गली-चौबारों में पैसे बनाने का खेल चल रहा था.


आईपीएल का पिछला सत्र भी कोविड की वजह से दुबई में खेला गया था. एक मोटे अनुमान के मुताबिक महामारी के उस दौर में भी छोटे-बड़े करीब पांच हजार सट्टेबाज बाकायदा अपना धंधा चला रहा था. इस बार यह तादाद बहुत ज्यादा है क्योंकि यूएई सरकार ने कोविड को लेकर जा पाबंदियां लगाईं थी वह लगभग उठा ली गईं थीं. लेकिन दुबई ही नहीं भारत में भी यह खेल परवान पर था. कानून की खामियों का फायदा उठा कर भारत में भी सट्टेबाजी का धंधा फलफूल रहा है और अब तो भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड की देखरेख में यह परवान चढ़ रहा है. बीसीसीआई भी सट्टेबाजों के साथ संगठित तौर पर मिल कर इस धंधे में लगा है. बीसीसीआई ने इसी तरह की फैंटासी क्रिकेट की एक कंपनी ड्रीम-11 को बाकायदा अपने साथ जोड़ा और उसे आईपीएल के पिछले सत्र का टाइटल स्पॉंसर बना डाला और कल्पना करें, इस सट्टेबाज कंपनी को कौन प्रमोट कर रहा है, और कोई नहीं भारत के सबसे सफल कप्तान और टी-20 विश्व कप में भारतीय टीम के मेंटर महेंद्र सिंह धोनी.


यह वही धोनी हैं जिनका नाम सुप्रीम कोर्ट में सपॉट फिक्सिंग की सुनवाई केदौरान कथित तौर पर सामने आया था. सुप्रीम कोर्ट में सीलबंद लिफाफे जमा किए गए थे जिनमें मैच फिक्सिंग करने वाले तेरह लोगों के नाम थे. भारत में फैंटासी क्रिकेट का बाजार लगातार बढ़ता जा रहा है और इनमें से ड्रीम-11 का भारतीय बाजार पर 90 फीसद कब्जा है. इसके अलावा माई सर्किल-11 और माई टीम-11 भी है. दिलचस्प यह है कि सट्टेबाजी के इस धंधे को बढ़ावा देने में देश के दिग्गज क्रिकेटर शामिल हैं. इन कंपनियों ने क्रिकेट के दिग्गजों को अपने धंधे में हाथ काले करने के लिए अपना ब्रांड राजदूत बनाया है जो लगातार लोगों को जुआ खेलने के लिए प्रेरित कर रहे हैं. सट्टेबाजी की यह सड़ांध क्रिकेट में इस हद तक फैल चुकी है कि बीसीसीआई के अध्यक्ष और पूर्व भारतीय कप्तान सौरभ गांगुली माई सर्किल-11 के ब्रांड राजदूत हैं तो वीरेंद्र सहवाग माई टीम-11 और विराट कोहली मोबाइल पीरीमियर लीग के. इसके अलावा वीवीएस लक्ष्मण सहित कई विदेशी खिलाड़ी क्रिकेट के इस काले धंधे में शामिल हैं. ऑनलाइन सट्टेबाजी बेरोकटोक जारी है और सरकार आंखें बंद किए तमाशा देख रही है.


इसलिए जब पिछले सत्र में आईपीएल को यूईए में आयोजित करने का फैसला बीसीसीआई ने किया तो संगठित सट्टेबाजों ने इसका जश्न मनाया. यूं भी यूएई को सट्टेबाजों का स्वर्ग कहा जाता है. लेकिन हद तो तब हो गई जब बीसीसीआई ने 20202 में टीमों के साथ जुड़े एंटी करप्शन अधिकारियों को हटा दिया. बीसीसीआई का यह फैसला लोढ़ा कमेटी की सिफारिशों के खिलाफ लिया गया था और इससे देश की सर्वोच्च अदालत का भी अपमान बोर्ड ने किया था. लोढ़ा कमेटी ने अपनी सिफारिशों में साफ उल्लेख किया था कि हर टीम इस तरह का एक अधिकारी नियुक्त करेगा जो क्रिकेट के नाम पर होने वाली गतिविधियों पर निगाह रखेगा.


लेकिन बीसीसीआई ने इस दिशा-निर्देश का उल्लंघन कर सुप्रीम कोर्ट की अवमानना तो की लेकिन तर्क कोरोना के मद्देनजर बायो-बब्बल का दिया. यह तर्क गले से उतरने वाले नहीं है. हालांकि बोर्ड के अधिकारी इस सवाल से बच रहे हैं कि अगर खिलाड़ियों और मैच आफिशियल बायो बबल के अंदर सुरक्षित हैं तो फिर ऐंटी करप्शन अधिकारियों को टीम के साथ रहने में क्या परेशानी थी. इससे साफ पता चलता है कि दुनिया की इस सबसे बड़े लीग, जहां पैसा बोलता है में भ्रष्टाचार को रोकने के लिए बीसीसीआई न तो गंभीर है और न ही प्रतिबद्ध. शायद यही वजह है कि ऑनलाइन जुआ पर पाबंदी लगाने के लिए कइयों ने अदालत का दरवाजा खटखटाया है.


लोगों का मानना है कि भारत में ऑनलाइन जुआ का बाजार काफी बड़ा है लेकिन इसके संचालन के लिए न तो नियम है और न ही सरकार इस पर किसी तरह की निगरानी कर पा रही है. इस तरह की कंपनियां कई तरह की गैरमुनासिब गतिविधियों में तो शामिल हैं ही, लोगों के साथ-साथ सरकार कोभू चूना लगा रही हैं. ड्रीम-11 पर जीएसटी का करीब ढाई हजार करोड़ रुपए नहीं चुकाने का आरोप है और इसे लेकर सुप्रीम कोर्ट में एक मामला भी लंबित है. इस तरह के जुए पर नकेल कसने में बीसीसीआई भी नाकाम रहा है. चिंता इसे लेकर ज्यादा है कि भारतीय क्रिकेट में लगातार यह अपनी पैठ बना रहा है और नए से लेकर पुराने खिलाड़ियों को यह आकर्षित कर रहा है. इस मामले में बोर्ड की कार्यशैली बराबर सवालों में रही है क्योंकि बोर्ड स्पॉट फिक्सिंग या दूसरी गलत गतिविधियों को रोकने में नाकाम ही रहा है. बीसीसीआई की एंटी करप्शन यूनिट (एसीयू) भी इन गतिविधियों पर नजर नहीं रख पाई और आईपीएल में खेल के नाम पर धंधा चलता रहा. सट्टेबाजी को रोकने के लिए बीसीसीआई कितनी गंभीर है यह इससे ही समझा जा सकता है कि उसने 2011 के विश्व कप मैच के दौरान मे भारतीय टीम को लोकर मैनेजर एक बुकी को बनाया था. अखबारों में इस आशय की खबरें भी छपीं लेकिन बीसीसीआई आंखें मूंदे सफेद को स्याह करने के खेल में लगा रहा. बोर्ड उस कथित बुकी के खिलाफ कार्रवाई करने की हिम्मत नहीं जुटा पाया. दिलचस्प यह है कि इन सबके बावजूद वह दिल्ली एंड जिला क्रिकेट संघ (डीडीसीए) से जुड़ा रहा. यह जानना भी जरूरी है कि डीडीसीए के एक पूर्व अधिकारी को वित्तीय अनियमितता के कारण जेल भी हुई थी. उनसे उस बुकी के मधुर रिश्ते की कहानी हर कोई जानता है.


भारत में जुआ को लेकर जो पब्लिक गेमिंग ऐक्ट-1877 है वह अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अप्रासंगिक हो गई है. हालांकि इस कानून में 1996 में सुधार भी किया गया, इसके तहत भारतीय निबंधन के साथ कैसिनो शुरू करने पर प्रतिबंध लगाया है और किसी जुआघर में जाना गैरकानूनी माना गया है. इस कानून में यह प्रावधान भी है कि जुआ या सट्टेबाजी गतिविधियों में शामिल होना गैरकानूनी है लेकिन किसी स्किल के खेल पर सट्टा लगाना कानूनी बनाया गया है. कानून ने घुड़दौड़ पर लगने वाले सट्टे को छूट दी. इसे गैरकानूनी नहीं माना गया. सरकार का तर्क था कि यह स्किल आधारित है. हालांकि विशेषज्ञ सरकार के इस तर्क से सहमत नहीं हैं. उनका मानना है कि क्रिकेट भी तकनीक आधारित खेल है जिसमें स्किल की जरूरत पड़ती है. इस लिहाज से दो पैमाना क्यों. घुड़दौड़ पर लगाए जाने वाली रकम कानूनी है तो फिर क्रिकेट गैरकानूनी क्यों.


ऑनलाइन जुआ के लिए भारतीय बाजार काफी उपजाऊ है और नियम-कानून में छिद्र होने का फायदा कंपनियां उठा रहीं हैं. दरअसल अस्सी के दशक तक भारत में इंटरनेट नहीं था. इसकी क्लपना भी तब किसी ने नहीं की थी. इसलिए ऑनलाइन जुए को कानून के दायरे में लाने की कोशिश नहीं हुई. फिर पेंच यह भी है कि इसके बाद कोई नया कानून नहीं बना जो ऑनलाइन जुआ पर नकेल कसे इसलिए इसमें लोग धड़ल्ले से हिस्सा ले रहे हैं और नामचीं क्रिकेट खिलाड़ी व अभिनेता इस खेल में हिस्सा लेने के लिए लोगों को प्रेरित कर रहे हैं. ढेर सारे ऑनलाइन कैसिनो देश से बाहर धड़ल्ले से चल रहे हैं जो हमारे यहां के खिलाड़ियों को भी इसमें हिस्सा लेने की इजाजत देता है. इसलिए बड़ी तादाद में लोग इसमें हिस्सा भी ले रहे हैं. इस गैरकानूनी खेल में किसी तरह की सजा का प्रावधान नहीं है इसलिए यह धंधा फलफूल रहा है.


करीब दस साल पहले यानी 2011 में फिक्की ने एक रिपोर्ट प्रकाशित की थी. उस रिपोर्ट में कहा गया था कि जुए के गैरकानूनी खेल में तीन लाख करोड़ की रकम का कारोबार होता है. यानी यह रकम उतनी है, जितनी देश के रक्षा मंत्रालय का बजट. सट्टेबाजी या जुए का ऑनलाइन बाजार साल दर साल फलता-फूलता गया और 2018 में 130 बिलियन का कारोबार हुआ. कोरोना की वजह से कुछ मंदी जरूर इसमें आई लेकिन यह बाजार अब भी फलफूल रहा है. ऑनलाइन जुए का कारोबार बिना रोक-टोक बीसीसीआई, खिलाड़ियों और सिनेमा के नामचीं कलाकारों की मदद से जारी है. इन सब वजहों से ही शायद जस्टिस लोढ़ा समिति ने सट्टेबाजी को कानूनी दर्जा देने की बात कही थी. खेलों पर सट्टेबाजी को कानूनी बना देने का फायदा भी होगा. भारत की अर्थव्यवस्था में इजाफा हो सकता है. हालांकि इसका नुकसान यह होगा कि मैचों और खिलाड़ियों को फिक्स करना ज्यादा आसान हो जाएगा.


यूं देश के तीन राज्यों, ओड़ीशा, असम और तेलंगाना में ऑनलाइन जुए पर पाबंदी है यानी इन तीन राज्यों में ऑनलाइन गेमिंग में कोई हिस्सा नहीं ले सकता. लेकिन इस बंदिश का असर इन राज्यों में हुआ है, दिखता नहीं है. एक रिपोर्ट के मुताबिक जुए की ऑनलाइन साइटों ने 2019 में करीब नौ सौ करोड़ की कमाई की तो 2020 में दो हजार करोड़ की. हालांकि ऐसा अनुमान था कि 2021 के आईपीएल के सत्र में इनकी कमाई 3000 करोड़ रुपए होगी, लेकिन कोरोना की वजह से पहले आईपीएल को स्थगित कर दिया गया, बाद में बाकी के मैच यूएई में खेले गए.


आईपीएल में 2013 में हुए स्पॉट फिक्सिंग मामले में क्रिकेट में तूफान खड़ा कर डाला था. मामला कोर्च-कचहरी तक पहुंचा था. भारत के तीन क्रिकेटरों को फिक्सिंग के आरोप में गिरफ्तार हुए थे. उन पर क्रिकेट खेलने पर पाबंदी लगा दी गई थी. वैसे 1999 में मैच फिक्सिंग का जिन्न जब बाहर आया था तो भी बोर्ड ने इसी तरह की कार्रवाई की थी. बाद में जिन क्रिकेटरों पर पाबंदी लगाई गई थी, वे कानून की खामियों की वजह से अदालत से या तो बरी हुए या फिर बोर्ड ने उनका पुनर्वास कर डाला. वैसे जो इस बात की दुहाई दे रहे हैं कि जुए को कानूनी मान्यता दे दी जानी चाहिए, वे यह भूल रहे हैं कि टीमों और खिलाड़ी इसके बाद भी क्रिकेट को कलंकित करते रहेंगे. क्योंकि क्रिकेट अब खेल नहीं खालिस धंधा बन गया है और इस धंधे में शामिल हर आदमी काजल की कोठरी में बैठा दूसरी की कमीज को ही ध्यान से देखता रहता है.

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