योगी सरकार या योग्य सरकार ?

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योगी सरकार या योग्य सरकार ?

 डा रवि यादव  
प्रदेश में विधान सभा चुनाव ज्यों ज्यों नज़दीक आ रहा है राजनीतिक दल मतदाताओं को आकर्षित करने के लिए यात्राओं, सभाओं , विज्ञापनों , मीडिया , सोशल मीडिया का सहारा ले रहे है .जातीय और क्षेत्रीय समीकरण चुनाव अनुकूल बनाने के प्रयास किए जा रहे है तो दूसरों की कमजोरियां, ग़लतियाँ और ख़ामियाँ बताने के साथ अपने मज़बूत पक्षों , कार्यों और ख़ूबियों का बखान कर रहे है .दावे और प्रतिदावे के  शाब्दिक युद्ध में सत्य , अर्धसत्य और असत्य का ऐसा मिश्रण पेश किया जा रहा है जिसे समझना आम मतदाताओं के लिए नामुमकिन नहीं तो मुश्किल अवश्य है , किंतु सही चुनाव के लिए उन दावों प्रतिदावों को सत्यता की कसौटी पर जाँचना परखना भी अवश्य है अन्यथा प्रदेश की जनता अगले पाँच वर्ष के लिए अपने ही द्वारा चुने गए अपने भाग्यविधाता के चुनाव पर गर्व भी कर सकती है और शर्म भी . 
कुछ इसी तरह के दावे प्रतिदावे के तहत समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश जी ने बुंदेलखंड की अपनी चुनावी विजयरथ यात्रा के दौरान जनसभा में जनता से पूछा कि “ आपको योगी सरकार चाहिए कि  योग्य सरकार “ भाजपा समर्थकों को यह सवाल चुभ रहा है कि उनके ख़ुद के हथियार का प्रयोग उन पर ही किया  गया है. यह  सवाल  उस  संगठन  के   नेता  के  बारे  में है  जो संगठन दशकों  से विरोधियों  की योग्यता  पर प्रश्नचिन्ह लगाता रहा है , कौन नहीं जानता वर्तमान में कांग्रेस के सर्वमान्य नेता और पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी को  पप्पू सिद्ध करने के लिए करोड़ों रुपया ख़र्च कर विशेष अभियान चलाया गया .जो शख़्स विदेश के उच्च शिक्षण संस्थान से उच्च शिक्षित हो जो देश और विदेश में प्रेस का सामना करता हो उसकी योग्यता पर आठवीं फ़ेल प्रश्न चिन्ह लगाएं तो इसे विडम्बना ही कहा जा सकता है किंतु ऐसा होता रहा है और मुसलसल हो रहा है . 
अखिलेश जी का सवाल निरपेक्ष नहीं है , सवाल में योगी जी की सिर्फ़ राजनेता के रूप में योग्यता पर प्रश्न चिन्ह लगाया गया है अलबत्ता वे एक सुयोग्य धर्माचार्य हो सकते है .मगर फिर भी इस सवाल का विश्लेषण     करने की आवश्यकता है तो कौसिश करते है .  
वर्गीकरण का इतिहास मानव सभ्यता के साथ ही शुरू हो  गया था . ऋग वेद  में तीन हज़ार ई. पूर्व  पादप  वर्गीकरण  का  वर्णन पाया जाता है ,  ऋगवेद मे भारतीय समाज को  कार्यों के आधार पर चार वर्णों  में विभाजित करने का भी वर्णन है .बाद में उसी कार्यों के आधार पर विभाजन को  जन्म आधारित  बना  दिया गया जिससे वह विशेषज्ञता प्राप्त करने के स्थान पर वर्गीय/ जातीय ग़ैरबराबरी अन्याय और शोषण का हथियार बन गाया., अर्थशास्त्र के आधुनिक स्वरूप में पूँजीवाद के विकास के साथ कार्यविभाजन को सिद्धांत रूप में स्वीकार किया गया है ताकि हर व्यक्ति अपनी रुचि के अनुसार विषय चुनकर विशेषज्ञता हासिल कर सके व श्रेष्ठ गुणवत्तायुक्त अधिकतम परिणाम दे सके . हिंदी में एक किवदत्ति “ जिसका काम उसी को साजे और नहीं तो सोटा बाजे” कही जाती है . 
निष्कर्ष यही है कि बेहतर परिणाम विषय विशेषज्ञ द्वारा किए गए कार्य से ही प्राप्त हो सकते है किंतु यदि आप वह काम करेंगे जिसके विशेषज्ञ नहीं है तो परिणाम भी विनाशकारी होंगे . 
 
 दुर्भाग्य से पिछले कुछ समय से भारत में यही हो रहा है कि धर्माधिकारी राजनीति कर रहे है व राजनीतिज्ञ धर्म के कार्यों में हस्तक्षेप ,  परिणामस्वरूप  धर्म सद्भाव ,  करुणा ,  परोपकार के  स्थान  पर नफ़रत, ईर्ष्या , दुश्मनी को  प्रोत्साहित  कर रहा है  और राजनीति  वैज्ञानिक सोच ,  विकास  से  भटककर अवैज्ञानिक पुरातन आडंबर और विनाश का सबब बन चुकी है . 
योगी सरकार ने मार्च 2017 में जब सत्ता सम्भाली तब की तुलना में प्रदेश में बेरोज़गारों की तदात दो गुना से अधिक हो चुकी है . जीडीपी ग्रोथ अखिलेश सरकार के कार्यकाल की तुलना में आधी से कम है और आईसीडीएस-आरआरएस पोर्टल के आँकड़े बताते है कि सम्पूर्ण देश में 6वर्ष 6 माह तक आयु वर्ग के गम्भीर रूप से कुपोषित 927606 बच्चों में 398359 (42% ) अकेले उत्तर प्रदेश में है . मुख्यमंत्री के सर्वाधिक दौरे अयोध्या के हुए है , जो अयोध्या मुख्यमंत्री की सर्वोच्च प्राथमिकता में है उस अयोध्या में 50 प्रतिशत से अधिक बच्चे गंभीर कुपोषण का शिकार है अर्थात बच्चा बच्चा राम का कुपोषित है . 
अतः आँकड़े बता रहे है कि योगी जनमानस के साथ  राजनीतिज्ञों के लिए भी एक  अभिनंदनीय धर्माचार्य  ज़रूर हो सकते है पर एक योग्य राजनेता कदापि नहीं ठीक उसी तरह जैसे अखिलेश कौसिश करके भी  आदरणीय धर्माचार्य नहीं हो सकते . 
देश को सोचना होगा कि राजनीतिज्ञ धर्म से और धर्माचार्य राजनीति से दूर रहे तभी अपने अपने विशेषज्ञता वाले क्षेत्र में  समाज को बेहतर योगदान दे सकते है . 

 
 

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