हंगामे में आया और गया भी किसानी कानून

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हंगामे में आया और गया भी किसानी कानून

हिसाम सिद्दीकी 
नई दिल्ली! वजीर-ए-आजम नरेन्द्र मोदी ने जिस किस्म के हंगामे और शोर-शराबे के दरम्यान पार्लियामेंट मे तीन किसानी कानून पास कराकर नाफिज किए थे, उसी किस्म के हंगामे और शोर-शराबे के दरम्यान 29 नवम्बर को पार्लियामेंट के जरिए ही यह तीनों किसानी कानून उन्होंने वापस भी ले लिए, न कानून लाते वक्त कोई बहस हुई न वापस लेते वक्त न पहले किसानों से कोई मश्विरा किया गया था, न बाद में.  कानून वापस लिए जाते वक्त अपोजीशन मेम्बरान ने इस पर बहस कराने के लिए हंगामा किया लेकिन राज्य सभा में वजीर जराअत (कृषि मंत्री) नरेन्द्र सिंह तोमर ने साफ कह दिया कि हम कानून वापस लेने आए हैं.  अपोजीशन भी यही मतालबा कर चुका है, इसलिए इसपर बहस कराने का कोई मतलब नहीं है.  कांग्रेस लीडर राहुल गांधी ने कहा कि मोदी और उनकी सरकार पार्लियामेंट में इस मसले पर बहस कराने से इसलिए भागे कि वह किसानों के मफाद में कुछ कहना नहीं चाहते.  अपोजीशन मेम्बरान का कहना था कि अगर बहस होती तो सरकार को एमएसपी, एक साल में आंदोलन के दौरान शहीद हुए सात सौ से ज्यादा किसानों की मौत, इस दौरान हुए देश और किसानों के नुक्सान, बिजली बिल, दूध बिल, टैªक्टर की मुद्दत दस साल जैसे मसलों के अलावा इस बात का भी जवाब देना पड़ता कि आखिर यह किसानी कानून किसके दबाव में लाए गए थे.  कानून वापस लेने का एलान करते वक्त वजीर-ए-आजम मोदी ने देश से माफी मांगी थी, उस माफी की वजह क्या है.  
कांग्रेस लीडर राहुल गांधी ने कहा कि मोदी को दो बातों का जवाब तो देना ही चाहिए, एक यह कि उन्होने माफी मांगी है इसका मतलब है कि उन्होंने गलती की, अब अगर उनकी गलती से सात-साढे सात सौ किसानों की जानें चली गईं तो उन किसानों के घरवालों के लिए सरकार के पास क्या मंसूबा है.  उनकी जान की भरपाई कैसे होगी, दूसरे यह कि मोदी को बताना पड़ेगा कि यह इतनी बडी गलती उन्होने किसके कहने पर की.  उन्होने कहा कि अगर यह कालेे कानून लाने और उन्हें वापस लेने, दोनों के वक्त पार्लियामेंट में कोई बहस ही नहीं करानी है तो फिर पार्लियामेंट का क्या मतलब है.  पार्लियामेंट तो बहस के लिए ही बनी है.  उन्होने कहा कि मैनेे तो बहुत पहले कह दिया था कि मोदी को तीनों काले किसानी कानून वापस लेने पड़ंेगे.  उन्होंने कानून तो वापस ले लिए लेकिन अब एमएसपी को कानूनी गारण्टी देने से सरकार क्यों भाग रही है.  
29 नवम्बर को लोक सभा में जबरदस्त शोर-शराबे और हंगामे के दरम्यान वजीर जराअत (कृषि मंत्री) नरेन्द्र सिंह तोमर ने किसानी कानून वापस लेने का बिल पेश किया तो महज चार मिनट के अंदर स्पीकर ओम बिरला ने आवाज के वोट पर बिल को पास करार दे दिया.  अपोजीशन मेम्बरान बहस का मतालबा करते रहे लेकिन सरकार ने उनकी नहीं सुनी.  स्पीकर ओम बिरला ने शोर-शराबे के दौरान कहा कि वह बहस कराने के लिए तैयार हैं लेकिन मेम्बरान एवान (सदन) का माहौल तो ठीक करें.  उनकी यह शर्त भी अजीब थी.  एवान को मुनज्जम (व्यवस्थित) रखने की जिम्मेदारी स्पीकर की होती है.  लेकिन उन्होने यह जिम्मेदारी मेम्बरान पर डाल दी.  अब मेम्बरान एवान को कैसे मुनज्जम करंेगे यह बात किसी की समझ में नहीं आई.  हंगामा खत्म नहीं हुआ तो स्पीकर ने कार्रवाई मुल्तवी कर दी.  दोपहर के बाद दो बजे कार्रवाई फिर शुरू हुई तो फिर हंगामा शुरू हो गया.  अपोजीशन मेम्बरान का सवाल था कि महज चार मिनट के अंदर तीनों कानून कैैसे वापस हो गए.  कांग्रेस लीडर अधीर रंजन चौधरी ने कहा कि एवान में जवाबित (नियमों) की धज्जियां उड़ाई जा रही हैं हमसे कहा गया था कि चर्चा के बाद ही कानून वापस लिए जाएंगे.  लेकिन सरकार ने धोका किया और बगैर किसी चर्चा के बिल पास करा दिया गया.  
वजीर-ए-आजम नरेन्द्र मोदी ने एवान की कार्रवाई शुरू होने से पहले मीडिया से कहा था कि सरकार हर मौजूअ (विषय) पर बहस कराने के लिए तैयार है, पार्लियामेंट में सरकार हर सवाल का जवाब देगी.  सरकार के खिलाफ सवाल उठाए जाएं इसपर हमें कोई एतराज नहीं है लेकिन एवान और स्पीकर के वकार का ख्याल जरूर रखा जाए.  मोदी का यह वादा चंद मिनट भी कायम नहीं रह सका.  सरकार ने दोनों एवानों यानी लोक सभा और राज्य सभा में किसानी कानून वापस लेने का बिल बगैर चर्चा के पास करा दिया.  यह भी इत्तेफाक है कि जब यह कानून लाया गया था तो राज्य सभा में जबरदस्त हंगामे के दौरान डिप्टी चेयरमैन हरिवंश ने इस कानून को पास करार दे दिया था.  इस कार्रवाई से उनपर उंगलियां उठी थीं.  अब जब कानून वापस लेने का बिल राज्य सभा में पेश हुआ तो उस वक्त भी चेयर पर डिप्टी स्पीकर हरिवंश ही थे फिर हंगामा होता रहा और उन्होने फिर बिल पास करा दिया.  
पार्लियामेंट में कानून पर बहस हो या न हो और वजीर-ए-आजम ने भले ही यह तीनों काले कानून वापस ले लिए हों, किसानों और उनके आंदोलन से मोदी और उनकी सरकार का पीछा फिलहाल छुटता दिखाई नहीं दे रहा है.  उत्तरप्रदेश, उत्तराखण्ड और पंजाब समेत पांच रियासतों में होने वाले असम्बली इंतेखाबात के ख्याल से अगर मोदी ने यह कानून वापस लिए हैं तो उनका यह ख्याल गलत साबित होने वाला है.  एलक्शन वाली पांचों रियासतों में बीजेपी को जो सियासी नुक्सान होना था वह हो चुका है.  अभी किसान आंदोलन से हटते दिखाई नहीं दे रहे हैं.  वह एक बार में ही अपने तमाम मसले हल कराना चाहते हैं. जदीद मरकज़ 
 

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