अविश्वास के संकट से ज़ूझती भाजपा

गोवा की आजादी में लोहिया का योगदान पत्रकारों पर हमले के खिलाफ पटना में नागरिक प्रतिवाद सीएम के पीछे सीबीआई ठाकुर का कुआं'पर बवाल रूकने का नाम नहीं ले रहा भाजपा ने बिधूड़ी का कद और बढ़ाया आखिर मोदी है, तो मुमकिन है बिधूड़ी की सदस्य्ता रद्द करने की मांग रमेश बिधूडी तो मोहरा है आरएसएस ने महिला आरक्षण विधेयक का दबाव डाला और रविशंकर , हर्षवर्धन हंस रहे थे संजय गांधी अस्पताल के चार सौ कर्मचारी बेरोजगार महिला आरक्षण को तत्काल लागू करने से कौन रोक रहा है? स्मृति ईरानी और सोनिया गांधी आमने-सामने देवभूमि में समाजवादी शंखनाद भाजपाई तो उत्पात की तैयारी में हैं . दीपंकर भट्टाचार्य घोषी का उद्घोष , न रहे कोई मदहोश! भाजपा हटाओ-देश बचाओ अभियान की गई समीक्षा आचार्य विनोबा भावे को याद किया स्कीम वर्करों का पहला राष्ट्रीय सम्मेलन संपन्न क्या सोच रहे हैं मोदी ?

अविश्वास के संकट से ज़ूझती भाजपा

डा रवि यादव 
मशहूर शायर दाग़ दहलवी ने लिखा है-जो तुम्हारी तरह तुमसे कोई झूठे वादे करता /तुम्हीं मुंशिफी से कह दो तुम्हें ए’तिवार होता ? 
सरकार , समर्थकों और गोदी मीडिया द्वारा एक साल तक तीन कृषि क़ानूनों की ख़ूबियाँ गिनाने और आंदोलनकारी किसानों को प्रताड़ित , अपमानित और बदनाम करने की साज़िशे नाकाम होने के बाद भी लगातार मज़बूत हो रहे किसान आंदोलन व आसन्न  यूपी , पंजाब और उत्तराखंड चुनाव में आंदोलन से होने वाले नुक़सान को टालने के लिए प्रधान मंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने तीनो कृषि कानूनो को वापस लेने की घोषणा करते हुए कहा कि कृषि बिल किसानों के भले के लिए ही लाए गए थे किंतु वे किसानों को समझा नहीं सके - “शायद हमारी तपस्या में ही कोई कमी रह गई “. 
बिल वापसी की घोषणा पर आंदोलनकारियों की प्रतिक्रिया कि घोषणा का क्या भरोसा ? जब तक बिल संसद द्वारा रद्द न किए जाए , यह बेहद गम्भीर चिंता और चिंतन का विषय है । जनमानस में धारणा बन चुकी है कि तपस्वी झूठ बोलता है और योगी बहुत झूठ. 
हिंदू संस्कृति में शंकल्प वह वचन होता है जिसे किसी भी परिस्थिति में पूरा किया जाना होता है शंकल्प लेने वाले के पास शंकल्प से पलटने ,वापस लेने या छोड़ देने का कोई विकल्प नहीं होता. विडम्बना ही है कि हिंदुत्व और भारतीय संस्कृति की स्वयंभू ठेकेदार भाजपा देश की अकेली पार्टी है जो घोषणा पत्र नहीं शंकल्प पत्र जारी करती है और शंकल्प को पूरा करने के लिए प्रयास भी करती नहीं दिखाई देती. 
कश्मीर में पंडितों का पुनर्वास हो या समान नागरिक संहिता का क़ानून, किसानों को फ़सल पर लगत का ढेढ़ गुना दाम देंने का वादा हो या 2 करोड़ रोज़गार हर साल उपलब्ध कराना , न्यायालयों की संख्या दो गुना करना  हो या  एग्ज़िस्टिंग न्यायालयों में जजों की संख्या दो गुना  करना ,100 नए स्मार्ट सिटी बनाने का वादा हो या 100 एग्ज़िस्टिंग शहरों को स्मार्ट बनाना , विदेश से काला धन वापस लाना हो या देश में कालाधन  न बनने देने का दावा लिस्ट बहुत लम्बी है जो भाजपा के शंकल्प थे आज उनका नाम नहीं लिया जाता . 

प्रधानमंत्री का ड्रीम प्रोजेक्ट और सबसे आसानी से पूरी हो सकने वाली सांसद आदर्शगाव योजना , जिसे सांसद अपनी निधि से ही पूरा कर सकते थे, बुरी तरह असफल हुई है. मैंने स्वयं प्रधान मंत्री द्वारा चयनित जयापुर गाँव देखा है. इलाहाबाद से हल्दियाँ जलमार्ग का हाल छोड़ दें , काशी को क्योटो बनाने के लिए गंगा के घाट भी बनाते तो प्रयास तो माना ही जा सकता था. बड़ोदरा में रेल यूनिवर्सिटी तो नहीं बनी ,रेल बिकना ज़रूर शुरू हो गया. 

फ़सल वीमा योजना भ्रष्टाचार,अकर्मड्यता और सरकारी उदासीनता का शिकार हो अपना मक़सद खो चुकी है. मंत्रालय की वेबसाइड पर फ़सल वीमा योजना के वेंटीलेशन में होने की कहानी मौजूद है मगर यशस्वी प्रधानमन्त्री अभी भी गुणगान कर रहे है .परम्परागत तरीक़े से खाना बनाते हुए ग़रीब माताओं बहिनों की आँखो में धुए से जितने आँसू नहीं निकले जितने गैस सिलेंडर की बढ़ी क़ीमत  न चुका सकने की बेबसी से निकल रहे है. एनएफ़एचएस की ताज़ा रिपोर्ट के अनुसार उज्ज्वला योजना की 63% लाभार्थी सिलेंडर रीफ़िल कराने में असफल रहने के चलते पुनः परम्परागत तरीक़े से खाना बनाने के लिए मजबूर है . 

नोट बंदी  पर “ग़रीब चैन की नीद सो रहा है और अमीर नींद की गोलियाँ खा रहे है “ कहने वाले फ़क़ीर के शासन काल में जब सारा देश लॉकडाउन में था तब एक उपकृत उद्धयोगपति 90 करोड़ प्रति घंटा कमा रहा था और  देश ग्लोवल हंगर इंडेक्स में 116 देशों की सूची में 101वे पायदान पर खिसक गया . नीति आयोग की हाल ही में ग़रीबी पर जारी मल्टीडायमेंशनल इंडेक्स में ग़रीबों की संख्या बढ़ रही है । यहाँ यह भी उल्लेखनीय है कि इसमें भाजपा शासित हिंदी राज्यों का प्रदर्शन बेहद शर्मनाक है जबकि दक्षिण के राज्य बेहतर प्रदर्शन करते दिखाई देते है. गोबरपट्टी के सुशासन बाबू और पाँच साल से गोदी मीडिया पर देश के बेस्ट मुख्य मंत्री का ख़िताब जीत रहे उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्य नाथ अपने अपने प्रदेश को गर्त में ले जाने के “कारनामें “ में पहले और दूसरे पायदान पर है. 

भाजपा के भावी प्रधानमंत्री उम्मीदवार योगी जी हवाबाज़ी में तपस्वी फ़क़ीर से चार क़दम आगे ही दिखाई देते है । 
प्रदेश सरकार के विज्ञापनों में उत्तरप्रदेश की तस्वीर गुलाबी नज़र अती है जबकि हक़ीक़त यह है कि पिछली सरकार से बेहतर विकास , निष्पक्ष , जवाबदेह  और ईमानदार प्रशासन देने और क़ानून के शासन का शंकल्प  व्यक्त कर सत्ता में आयी भाजपा की योगी सरकार के कार्यकाल में प्रदेश की विकास दर अखिलेश सरकार के समय की सालाना औसत विकास दर 5.6% के आधे से नीचे पहुँच गई है । विज्ञापनों में कोलकाता के ओवरब्रिज को ,अमेरिका की फेक्टरी को और चीन के अंतराष्ट्रीय हवाई अड्डे को यूपी सरकार अपना काम दिखा कर ख़ुश ज़रूर हो सकती है लेकिन इससे जनता में सरकार के झूठे दावे करने की छवि ही मज़बूत हो रही है. 

राम मंदिर ट्रस्ट द्वारा किए गए भूमि घोटाले , सीएजी रिपोर्ट में  कुम्भ में भारी भ्रष्टाचार का ख़ुलासा ,सुप्रीम कोर्ट की यूपी  सरकार के उपक्रम नॉएडा एथोरिटी पर की गई टिप्पणी कि आपके नाक ,कान और आँख से भ्रष्टाचार टपकता है सरकार के ईमानदार और पारदर्शिता के विज्ञापनी  दावों के विपरीत है. 
अर्धकुम्भ को पूर्ण कुम्भ का नाम देना चल सकता है किंतु ज़िला अस्पतालो को मेडीकल कालिज कहकर प्रदेश में 59 जिलो में मेडीकल कालिज़ बना देने का दावा लोगों की समझ में भी आ रहा है और मुख्यमंत्री को उपहास का पात्र व सरकार के दाँवों पर अविश्वास को बड़ा रहा है .माफ़िया पर कार्यवाही के नाम पर अल्पसंख्यकों , दलितों और पिछड़ों का दमन किया जा सकता है मगर ब्रिजेश सिंह , धनंजय सिंह , ब्रिज भूषण शरण सिंह , सोनू सिंह , कुंटू सिंह ....सिंह ...सिंह के शराफ़त के क़िस्से भी प्रदेश के लोग जानते है और किसी बड़े दरख़्त के साथ टेनी का होना भी समझते है. प्रदेश में क़ानून के शासन के स्थान पर क़ानून द्वारा शासन को जिस तरह बढ़ावा दिया जा रहा है वह लोकतांत्रिक व्यवस्था को मज़ाक़ बना देने का प्रयास है. 
     देश भर में जब प्रचारित किया जा रहा है कि योगी सरकार के कार्यकाल में उत्तर प्रदेश सकारात्मक रूप से बदल गया है बीमारू राज्य से बाहर आ गया है उसी समय नीति आयोग की रिपोर्ट और बेंगलुरु स्थित थिंक टैंक पब्लिक अफ़ेयर्स की रिपोर्ट राज्य की पहले से बदतर हो रही तस्वीर से रूबरू करा रही है । राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो के 2019 के आँकड़े प्रदेश के पुलिस राज्य में तब्दील होने और क़ानून व्यवस्था के चरमराने की तस्दीक़ करते है .यूपी दहेज हत्याओं , एसटी /एससी के ख़िलाफ़ अपराधों व पुलिस अभिरक्षा में मौत के मामले में पूरे देश में अग्रणी है. 
किसान बिल वापसी सरकार की पहली हार है किंतु सरकार द्वारा झूठे वादे और झूठे दावे करने की प्रवृत्ति की जनमानस में बैठ चुकी धारणा आगे अनेक और हार का कारण बनेगी. 

 

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