पटना.बिहार में डबल इंजन की सरकार है.इसके मुखिया हैं नीतीश कुमार.नीतीश बाबू के शासनकाल को सुशासन कहा जाता है.डबल इंजन की सरकार के नेतागण सुशासन के 15 साल में हुए विकास की तुलना लालू-राबड़ी की सरकार से करना चाहते हैं.1990-2005 तक के शासनकाल को जंगलराज कहते थकते नहीं हैं.वहीं 2005-2021 के बारे सुशासन बाबू के नेतागण बोलते नहीं हैं. युवाओं को कहते हैं कि बड़े-बुजुर्गों से लालू काल की रूह कंपाने वाली कहानियां सुननी चाहिए.
अब आप सुने 4 अक्टूबर 2006 की कहानी
सिस्टम के खिलाफ आवाज उठाई तो उनको नक्सली बना दिया.यह कारनामा छपरा जिले के पीर मकेर पंचायत में रहने वाले दिव्यांग वीरेंद्र साह के साथ हुआ.कभी नक्सली करार दिए जाने वाले दिव्यांग वीरेंद्र साह अब बच्चों की जिंदगी संवार रहे हैं. इसके लिए उन्हें लंबी लड़ाई लड़नी पड़ी.उन्होंने पहले खुद पर से नक्सली होने का धब्बा हटाने के लिए कानूनी लड़ाई लड़ी. फिर आरटीआई के जरिए शिक्षक फर्जीवाड़े की पोल खोल दी.इसके बाद सरकारी स्कूल में बतौर शिक्षक उनकी नियुक्ति हुई.पीर मकेर पंचायत में पंचायत शिक्षक पद पर वीरेंद्र साह और उनकी बहन आरती कुमारी की काउंसिलिंग हुई थी.4 अक्टूबर 2006 को तत्कालीन पंचायत सचिव के समक्ष काउंसिलिंग हुई थी.प्रथम पैनल में नाम भी आया, लेकिन पंचायत इकाई की ओर से रिश्वत की मांग की गई.रिश्वत नहीं देने पर फाइनल सूची से नाम हटा दिया गया और फर्जी तरीके से शिक्षकों की बहाली कर ली गई. इसके बाद दिव्यांग वीरेंद्र साह ने प्रखंड से लेकर प्रमंडल, राज्य तथा देश के 21 अफसरों और 13 मंत्री समेत सांसदों के पास फरियाद लगाई, लेकिन न्याय नहीं मिला.
हाईकोर्ट का आदेश भी था बेअसर
वीरेंद्र साह ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया.दायर याचिका सीडब्लूजेसी संख्या 8588/2007 में कोर्ट ने नियोजन प्राधिकार वाद से रिपोर्ट तलब की.नियोजन इकाई से इंसाफ नहीं मिलने पर दिव्यांग ने दोबारा हाईकोर्ट में दस्तक दी.13 मार्च 2012 को हाईकोर्ट ने फिर से नियोजन इकाई को तीन महीने के अंदर नियोजन देने का आदेश दिया.इसके बावजूद जब नियोजन इकाई ने नियोजन नहीं किया तो उसने आरटीआई के तहत शिक्षक बहाली से संबंधित जानकारी मांगी. जवाब मिलने के बाद फर्जीवाड़े का खुलासा हो गया. डीएम ने संज्ञान लेते हुए नियोजन इकाई पर प्राथमिकी दर्ज करने का आदेश दिया. आरटीआई से ही इंसाफ मिला.साथ ही वीरेंद्र और उसकी बहन आरती को नौकरी मिली.
तब आरटीआई का इस्तेमाल करना मंहगा पड़ा
कहा जाता है कि वाजिव हक जरूर मिलता है, जरूरत है तो बस धेर्य के साथ संघर्ष की.भारतीय संसद ने प्रत्येक भारतीय को इस संघर्ष के लिए एक हथियार दिया है.नाम है सूचना का अधिकार (आरटीआई).भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने, सरकारी कामकाज में पारदर्शित्ता लाने के लिए व 2005 में लागू किए गए इस अधिनियम के तहत जागरूक आम आदमी अपने अधिकार पा रहे है.इसी हथियार का इस्तेमाल दिव्यांग ने किया था.दिव्यांग वीरेंद्र साह को आरटीआई का इस्तेमाल करना महंगा पड़ गया.19 अगस्त 2007 को तत्कालीन प्रखंड प्रमुख गुड्डु शर्मा के अंगरक्षक की नक्सलियों ने हत्या की और उसके घर को डाइनामाइट से उड़ा दिया.इस मामले में वीरेंद्र को मुख्य अभियुक्त बनाया गया. नक्सली बनने के बाद भी वीरेंद्र ने लड़ाई नहीं छोड़ी और हाईकोर्ट से न्याय की गुहार लगाई.तत्कालीन मंत्री परवीन अमान्नुलाह की मदद से उसे इस मामले में इंसाफ मिला.
सरकारी स्कूल में बच्चों की संवार रहे जिंदगी
वीरेंद्र साह मधवल मध्य विद्यालय में कार्यरत हैं.वह आज बच्चों को वर्ग के अलावा ईमानदारी और सच्चाई का पाठ पढ़ाते हैं.अपने मोहल्ले, गांव में भी जिन लोगों को दबाने की कोशिश की जाती है. उसकी मदद करते हैं.ब्लॉक और अंचल में कर्मियों और अफसरों की भ्रष्टाचार आरटीआई के सहारे खुलासा करते हैं.कानूनी लड़ाई के दौरान मजबूर होकर वीरेंद्र ने सुसाइड करने की भी कोशिश की थी.
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