गांव उपकारी दान नही लेता मोदी जी !

गोवा की आजादी में लोहिया का योगदान पत्रकारों पर हमले के खिलाफ पटना में नागरिक प्रतिवाद सीएम के पीछे सीबीआई ठाकुर का कुआं'पर बवाल रूकने का नाम नहीं ले रहा भाजपा ने बिधूड़ी का कद और बढ़ाया आखिर मोदी है, तो मुमकिन है बिधूड़ी की सदस्य्ता रद्द करने की मांग रमेश बिधूडी तो मोहरा है आरएसएस ने महिला आरक्षण विधेयक का दबाव डाला और रविशंकर , हर्षवर्धन हंस रहे थे संजय गांधी अस्पताल के चार सौ कर्मचारी बेरोजगार महिला आरक्षण को तत्काल लागू करने से कौन रोक रहा है? स्मृति ईरानी और सोनिया गांधी आमने-सामने देवभूमि में समाजवादी शंखनाद भाजपाई तो उत्पात की तैयारी में हैं . दीपंकर भट्टाचार्य घोषी का उद्घोष , न रहे कोई मदहोश! भाजपा हटाओ-देश बचाओ अभियान की गई समीक्षा आचार्य विनोबा भावे को याद किया स्कीम वर्करों का पहला राष्ट्रीय सम्मेलन संपन्न क्या सोच रहे हैं मोदी ?

गांव उपकारी दान नही लेता मोदी जी !

चंचल  
ज़िंदगी की तरह सियासत मे भी पीछे हटा जाता है , प्रकृति का विलक्षण खेल है .  कविता की दो सतर मे द्वन्द के खेल को आसान ज़ुबान मे कहा है-  
नवन  , नवन बहु अंतरा , नवन नवन बहु वान .   
ये तीनो बहुतैय झुकें - चीता , चोर , कमान ॥  
नवन (झुकना ) .  अपने लक्ष के लिए ये तीन जितना झुकते हैं उतनी ही गति से लक्ष को प्राप्त करने मेन सफल होते हैं ये है - चीता , चोर और कमान .  आप मे इन तीनो का इन तीनो का कोई गुण नही है .  सियासत मे सियासी ज़ुबान मे इसे कहते हैं - “दो कदम पीछे “ 
ज़िंदगी और ज़िंदगी की बेहतरी के लिए बने निज़ाम मे लोच उन्ही के पास होती है जो अंदरूनी तौर पर निहायत मज़बूत और परमार्थवादी होते हैं .  एक छोटा सा उदाहरण देता हूँ - गांधी जी का .  सिविल नाफ़रमानी शीर्ष पर थी .  पूरा देश अंग्रेज़ी साम्राज्यवाद के ख़िलाफ़ सड़क पर था .  “हमला चाहे जैसा होगा , हाथ हमारा नही उठेगा “ पूरा मुल्क इस मंत्र को अंगीकार कर चुका था .  अचानक चौरी चौरा मे प्रतिरोध की सीमा हिंसा तक चलो गयी .  बापू ने बे हिचक सत्यग्रह का  आंदोलन वापस ले लिए .   
आंदोलन टूटा , कांग्रेस पार्टी टूट गयी , तमाम आरोप लादे गये महात्मा गांधी पर .  लेकिन गांधी जी अडिग खड़े रहे .  यही आंदोलन , उसी  सत्याग्रह के आंदोलन को उसी गांधी ने उससे सौ गुना तेज गति से चलाया . चौरी चौरा मे“ पराजित “ 
गांधी पराजय को परिमार्जित कर नयी ताक़त खोज  रहा था , उसे हासिल भी किया और दुनिया के क्षितिज पर अहिंसा का परचम लहरा कर भंगी बस्ती मे बैठ कर चरखा कातने लगा .   
उस समय ग्लोब दो हिस्से मे खड़ा था पूरब मे गांधी और पश्चिम मे हिटलर और मसोलनी .  हश्र क्या हुआ ?  
जनाबे आली ! ये जो अतीत से निकले हश्र होते हैं ये आज के लिए सबक़ होते हैं .  हश्र की खूबी  है यह न मिटताहै , न दबाया जा सकता है .  आपने इससे भी सबक़ नही सीखा .   
जनाब मोदी जी ! विवादित कृषि क़ानून वापस लेते समय आपको अन्दाज़  रहा होगा कि इसे सुनते ही किसान बाहँ फैला कर आपको ओकवार मे ले लेगा और आप अभिभूत हो जाँयगे .   
आत्म्मुग्ध सोच  है यह  “ उपकार “ करने का भ्रम .  किसान और गाँव दोनो उपकार को हेय निगाह से देखते हैं .  उसके लिए सड़क पर कील गाड़ी गयी थी , वो कील सड़क से तो हट गयी लेकिन जो दिल पर चुभी रह गयी है ?

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