नये कलेवर के साथ मज़बूत होती समाजवादी पार्टी

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नये कलेवर के साथ मज़बूत होती समाजवादी पार्टी

डा रवि यादव 
एक तरफ़ जहाँ देश में राजनीति में वैचारिक / राजनैतिक विरोधी को भ्रष्ट,ग़द्दार, देशद्रोही बताने का चलन चल रहा हो , भाषण , भव्यता, भीड़, नाटक, गालियाँ, गुंडई , चरित्र हनन ,धर्म ... पैसे और प्रचार का प्रयोग कर अनैतिकता को रणनीति बताकर महिमा मंडित किया जा रहा हो . इतिहास से चुनिंदा तथ्य जुटा कर या न मिलने पर मनगढ़ंत क़िस्से बना कर ख़ास वर्ग को ग़द्दार घोषित कर, काल्पनिक दुश्मन बनाकर उन्हें धमकाने , ललकारने ,गरियाने को राजनीति का मुख्य एजेंडा बना दिया गया हो ताकि लोगों के वास्तविक मुद्दे वोट के मुद्दे न बने सकें  . शासन प्रशासन सब नफ़रत फैलाने के टूल बना दिए गए हों, शासन की एक नाकामी को छुपाने के लिए सौ प्रपंच रचे जा रहें हों  चरमराती व्यवस्था से ध्यान बाटने के लिए नई घोषणाए नए झूँठ सफलता के सूत्र बन चुके हो तब न्याय , लोकतंत्र , समता और सौहार्द की राजनीति करना आसान काम नहीं है .  

अखिलेश यादव उन नेताओ में शीर्ष पर है जो कभी विरोधी की व्यक्तिगत आलोचना नहीं करते . उनकी यह शालीनता विरोधियों द्वारा कमज़ोरी के रूप में प्रचारित की गई .  चरित्र हनन के आदी हो चुके विरोधियों द्वारा बार बार आरोप लगाया गया कि वे कुछ ख़ास एजेंसियों के डर से चुप रहते है .  लेकिन वे भूल जाते है कि अखिलेश जितनी भी आलोचना करते है वह उन्ही की करते है जिनके मातहत ये एजेंसियाँ काम करती है अन्य के लिए तो वे एक शब्द नहीं बोलते .  और ऐसा आज से नहीं , जब वे मुख्य मंत्री थे तो मायावती जी अक्सर सरकार पर तो प्रहार करतीं ही थी कई बार नेताजी मुलायम सिंह पर व्यक्तिगत प्रहार भी करती थी .  एक दिन तो मायावती जी ने विशेष प्रेस कांफ़्रेस कर नेताजी पर कई ऐसे आरोप लगाए जो निम्न स्तर के थे , पत्रकरों ने इस पर अखिलेश जी से पूछा - बहिन जी ने नेताजी पर जो आरोप लगाए है आपकी क्या प्रतिक्रिया है ? तो अखिलेश जी ने – 

ज़िंदगी भर के शिकवे - गिले थे मगर , 
वक़्त इतना कहाँ था कि बतलाते हम .  

एक हिचकी में कह डाली सब दास्ताँ, 
हमने क़िस्से को यूँ मुख़्तसर कर दिया . .  


की तर्ज़ पर पत्रकार को - “ बहिन जी होंगीं आपकी, मेरी तो बुआ जी है “ कह कर बात ख़त्म कर दी .  2019 के लोकसभा चुनाव में हुए गठबंधन को तोड़ते हुए और उसके बाद भी मायावती जी अनेक बार आलोचना कर चूकी हैं  लेकिन अखिलेश ने कभी प्रतिउत्तर नहीं दिया .   
एक कार्यक्रम में पूर्व आईपीएस अमिताभ ठाकुर बता रहे थे कि उन्होंने जब नेताजी पर धमकाने का आरोप लगाया तो अखिलेश जी इटावा गए हुए थे .  वहाँ पत्रकरों ने जब अखिलेश जी से सबाल किया तो सभी का सोचना था कि वे कुछ सख़्त प्रतिक्रिया देंगे लेकिन अखिलेश जी ने कहा कि “वे भी पितातुल्य है कह दिया होगा , पता कराऊँगा “ .  
यद्यपि मायावती जी या अमिताभ ठाकुर के पास कोई ऐसी एजेंसी नहीं जिसके डर से अखिलेश चुप रहते . परिवार की कलह के बीच आम चुनाव के दबाव के बावजूद उन्होंने अमर्यादित तो छोड़िए मर्यादित शब्दों में भी शिवपाल सिंह के ख़िलाफ़ कभी नहीं बोला .  

आलोचनाओं से सीख  

समाजवादी पार्टी पर आरोप था कि वह बदलते वक़्त अनुसार  आधुनिक विचार और तकनीक को आत्मसात करने में विफल रही है .  अखिलेश ने समाजवाद को बेलगाड़ी युग की सोच से बाहर निकाल कर आधुनिक तकनीक से जोड़ा .  तकनीक का प्रयोग कर प्रदेश पुलिस को देश में  अधिनिकतम बनाते हुए डायल 100 दी तो महिला सुरक्षा के लिए 1090 जैसी सुविधाएँ .  छात्रों को लेपटाप वितरण , मेट्रो , स्टेडियम , देश का सर्वोत्तम हायवे आधुनिकता का नमूने थे तो मुफ़्त दवाई , पढ़ाई , सिंचाई , पशुपालन से आजीविका को प्रोत्साहन के चार चार लाख लीटर की क्षमता के तीन दुग्ध प्रशीतन केंद्र, समाजवादी पेंशन और हायवे के साथ बनने वाली मंडियाँ बदलते समाजवाद का आधुनिक स्वरूप .  
समाजवादी पार्टी पर गुंडो को संरक्षण देने का आरोप लगाने वाली पार्टी जहाँ कुलदीप सिंह सेंगर और अजय मिश्रा उर्फ़ टेनी जैसे दो दर्जन असामाजिक तत्वों को बढ़ावा दे रही थी तो प्रदेश अध्यक्ष के रूप में डीपी यादव को पार्टी में शामिल न करने की ज़िद करने वाले अखिलेश ने राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने के बाद मुख़्तार अंसारी , अतीत अहमद , विजय मिश्रा और विनय शंकर तिवारी के टिकट काट कर अपने इरादे ज़ाहिर कर दिए थे .  

परिवार वाद और यादववाद के आरोप भी सपा पर लगाए जाते रहे है .  अखिलेश यादव के नेतृत्व में समाजवादी पार्टी ने दोनो ही आरोपों को धुंधला ज़रूर किया है .  हाल हीमें घोषित प्रदेश कार्यकारिणी में एक भी सदस्य परिवार से नहीं है तो अन्य पिछड़ों की आधी भागीदारी वाली कार्यकारिणी में सभी वर्गों को उचित प्रतिनिधित्व दिया गया है .  इसके अतिरिक्त संजय चौहान , राजपाल कश्यप , विशंभर प्रसाद निषाद , नरेश उत्तम पटेल , केशव मोर्या , मिठाई लाल भारती और इंद्र जीत सरोज को विशेष महत्व देकर पार्टी की छवि को बदलने का प्रयास किया गया है .  

उनका मुक़ाबला उन शक्तियों से है जो अतीत के गौरव , अतीत की दुश्मनी से अलग नहीं होना चाहते जो अतीत की व्यवस्था की पुनर्स्थापना करना चाहते है तो अखिलेश “ जिसकी जितनी संख्या उसको उतना प्रतिनिधित्व” की नई सामाजिक व्यवस्था बनाने का शंकल्प व्यक्त कर चुके है भविष्य के सपने को मूर्तरूप देना है तो पुरानी ग़लतियों को सुधारना होगा न कि पुरानी व्यवस्था में वापस जाना .  भगवान परशुराम ने कई वार क्षत्रियों का बध किया तो क्या आज भी क्षत्रिय - ब्राह्मण आपसी दुश्मनी को बढ़ावा दें ? निश्चित रूप से नहीं . .  

लोकतंत्र में लोक ही सर्वोच्च है , तंत्र यदि लोक की धारणाओं के प्रति संवेदनशील न हो तो वह लोकतंत्र नहीं .   
जनधारणाएँ तथ्यपरक हो या उद्देश्यपूर्ण रूप से बनाई गई हो ,लोकतांत्रिक पार्टी यदि सुनने और विश्लेषण कर तदनुसार  परिवर्तन करने के लिए तत्पर दिखाई देती हो तो यह उम्मीद जगाती है .  सपा की जिन मुद्दों/बातों के लिए आलोचना की जाती रही है , अखिलेश के नेतृत्व में समाजवादी पार्टी वे सभी बदलाव करने के लिए तत्पर दिखाई दे रही है और निरंतर मज़बूत हो रही है .  
 

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