जन्म के 300 साल बाद लाजरूस धन्य घोषित किया

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जन्म के 300 साल बाद लाजरूस धन्य घोषित किया

आलोक कुमार 
पटना.एक हिंदू नायर परिवार में लाजरूस नामक लोकधर्मी का जन्म 23 अप्रैल, 1712 को हुआ. लाजरूस तमिलनाडु के कन्याकुमारी जिले के नट्टलम के रहने वाले थे,जो तत्कालीन त्रावणकोर साम्राज्य का हिस्सा था. स्थानीय भाषा में "लाजर" या "देवसहायम पिल्लई ", जिसका अर्थ है "भगवान मेरी मदद है". लाजरूस (देवसहायम पिल्लई) भारत के ब्राह्मण थे.2021 में सम्प्रति लाजरूस 309 साल के हैं.जब वे 33 साल के थे.तब एक येसु समाजी पुरोहित ने उनको 1745 में कैथोलिक धर्म में प्रवेश किया और वह ख्रीस्तीय बन गया. वे अपने उपदेश में जाति की भिन्नता के बावजूद सभी लोगों की समानता पर बल देते थे.इस कारण से उच्च वर्ग के लोगों में उनके प्रति घृणा उत्पन्न हुई और उन्हें  1749 में 37 साल की अवस्था में कैद कर लिया गया.कई यंत्रणा देने के बाद अंत में 40 वर्ष की अवस्था में 14 जनवरी 1752 को उन्हें गोली मार दी गई और शहीद हो गये थे. 

लाजरूस के जीवन और शहादत से जुड़े स्थल तमिलनाडु के कन्याकुमारी जिले के कोट्टार धर्मप्रांत में हैं.उनके जन्म के 300 साल बाद 2 दिसंबर 2012 को कोट्टार में धन्य घोषित किया गया था.वाटिकन सिटी के अनुसार धन्य घोषित होने के 10 वर्षों के बाद धन्य लाजरूस देवसहायम पिल्लई की संत घोषणा का समारोह 15 मई 2022 को सम्पन्न होगा. 

लोकधर्मी धन्य लाजरूस देवसहायम पिल्लई की तरह ही लोकधर्मी  
एंटोनी फ्रेडरिक ओज़ानम हैं.उनका जन्म मिलान, इटली का साम्राज्य में 23 अप्रैल 1813 में हुआ था.जब फ्रेडरिक ओज़ानम  सोरबोन यूनिवर्सिटी पेरिस में पढ़ाई कर रहे थे.उसी दौरान केवल 20 साल की अवस्था में 1833 में सोसाइटी ऑफ सेंट विंसेंट डी पॉल समाज की स्थापना की. 

मालूम हो कि अयाजक वर्ग की संत भिंसेंट डी पॉल कैथोलिक एक अंतरराष्ट्रीय संस्था है, जो मानवता की सेवा को अपना धर्म समझती है.संत भिंसेंट डी पॉल ने 1581-1600 में जरूरतमंद व असहाय व्यक्तियों की सेवा आजीवन की थी.वे ख्रीस्तीय दया-दान के संरक्षक संत माने जाते हैं.इनसे प्रेरणा लेकर फ्रेडरिक ओजानम ने संत भिंसेंट डी पॉल के मार्ग पर चलना शुरू किया.उन्होंने सोरबोन यूनिवर्सिटी पेरिस में पढ़ाई के दौरान 1833 में सोसाइटी ऑफ सेंट विंसेंट डी पॉल समाज की स्थापना की. 

कहा जाता है कि फ्रेडरिक ओजानम एक फ्रांसीसी साहित्यिक विद्वान, वकील, पत्रकार और समान अधिकार अधिवक्ता थे. उन्होंने साथी छात्रों के साथ चैरिटी कांफ्रेंस की स्थापना की, जिसे बाद में सोसाइटी ऑफ सेंट विंसेंट डी पॉल के नाम से जाना गया.फेडरिक को जन्म के 184 साल बाद और सोसाइटी ऑफ सेंट विंसेंट डी पॉल समाज की स्थापना के 164 साल बाद 1997 में उन्हें पोप जॉन पॉल द्वितीय द्वारा नोट्रे डेम डी पेरिस के कैथेड्रल में धन्य घोषित किया गया था , इसलिए कैथोलिकों द्वारा उन्हें उचित रूप से धन्य फ्रेडरिक कहा जा सकता है.धन्य घोषित हुए 24 साल हो गया.उनका निधन 9 सितंबर 1853 को हो गया.वे सिर्फ 40 वर्ष के थे.ओज़ानम की मृत्यु से पहले समाज के 29 देशों में और आज 153 देशों में मौजूद है. 

कैसे बनते हैं संत? 

कैथोलिक चर्च के संत की उपाधि हासिल करने के लिए दो चमत्कार की पुष्टि होना आवश्यक होता है. कैथोलिक ईसाइयत में संत की उपाधि दिए जाने की प्रक्रिया काफी व्यवस्थित और समय साध्य है. इस प्रक्रिया में 'संत' घोषित करने के चार चरण होते हैं. पहले चरण में व्यक्ति को 'प्रभु का सेवक' घोषित किया जाता है.दूसरे चरण में 'पूज्य' माना जाता है. तीसरे चरण में पोप द्वारा 'धन्य' माना जाता है. 'धन्य' घोषित करने के लिए एक चमत्कार की पुष्टि होना जरुरी है. अंतिम चरण में 'संत' घोषित किया जाता है. 

कम से कम दो चमत्कार होना आवश्यक 

संत की उपाधि दिए जाने के लिए कम से कम दो चमत्कारों की पुष्टि होना आवश्यक है. चमत्कार उस संत द्वारा या उसकी समाधि पर की गई प्रार्थना द्वारा किसी असाध्य रोग के ठीक होने की शक्ल में होता है. वेटिकन की एक समिति इन चमत्कारों की जांच करती है जिसमें कुछ धर्मगुरु और डॉक्टर होते हैं. जब यह समिति चमत्कारों की पुष्टि कर देती है तब पोप वेटिकन के समारोह में 'संत' की उपाधि प्रदान करने की अधिकारिक घोषणा करते है. 
416 साल में पहली बार; मृत्यु के बाद सबसे कम वक्त में बनीं संत, मिल चुके हैं नोबेल और भारत रत्न समेत दुनियाभर के 124 बड़े सम्मान 
मदर टेरेसा रविवार से संत कहलाएंगी। जीते-जी 124 बड़े पुरस्कारों से सम्मानित टेरेसा को निधन के बाद यह सबसे बड़ी श्रद्धांजलि है। भारत रत्न और नोबेल पुरस्कार जीतने वाली वह पहली महिला हैं जिन्हें वेटिकन में ईसाई समुदाय के धर्मगुरु संत घोषित करेंगे। इसके साथ ही टेरेसा विदेश में जन्मी पहली कैथोलिक हैं जिन्हें भारतीय मानकर संत का दर्जा दिया जा रहा है।  

रोमन कैथोलिक समुदाय में 1600 ईस्वी से संत घोषित करने का लिखित इतिहास है.तब से पोप के अलावा पहली बार किसी को मृत्यु के महज 19 साल बाद संत घोषित किया गया.पोप 1232 से संत घोषित कर रहे हैं.पर रोमन कैथोलिक संत घोषित करने की प्रक्रिया के साक्ष्य 1600 से मिलते हैं.  
चर्च सबसे पहले समिति बनाती है, जो संबंधित व्यक्ति के जीवन और कार्यों की समीक्षा करती है.व्यक्ति के बारे में दस्तावेज जमा किए जाते हैं. यह प्रक्रिया देहत्याग के 5 साल बाद ही शुरू की जा सकती है.मदर टेरेसा के मामले में यह नियम तोड़ा गया.निधन के 3 साल बाद ही प्रक्रिया शुरू कर दी गई थी.निधन के पांच साल बीतने के बाद स्थानीय बिशप संबंधित व्यक्ति को ‘धन्य’ घोषित करने की प्रक्रिया शुरू करने का आग्रह करते हैं.व्यक्ति के पवित्र होने के पर्याप्त सबूत होने पर पहले ‘धन्य’ घोषित किया जाता है. पोप जॉन पॉल-2 ने एक चमत्कार को मानकर टेरेसा को निधन के 6 साल बाद ही धन्य घोषित कर दिया था. 
इसके बाद संबंधित व्यक्ति द्वारा किए गए दो चमत्कारों के सबूत खोजे जाते हैं.अगर मिल जाते हैं तो पोप उन्हें ‘संत’ घोषित करते हैं. ‘धन्य’ से संत घोषित करने के बीच कम से कम 50 साल का अंतर रखते हैं. 1590 के बाद मृत्यु व संत हाेनेे के बीच औसतन 181 साल का अंतर रहा. टेरेसा 19 साल बाद ही संत हो गईं.13 साल में मदर टेरेसा के दो चमत्कारों को दो पोप ने मान्यता दे दी. 

8 साल में भारत से चौथी और तीसरी महिला संत हैं टेरेसा 

1. सिस्टर अल्फोंसा (1910- 1946) : 2008 में संत घोषित. पहली भारतीय जिसे कैथोलिक चर्च से संत घोषित किया गया. 
2. सिस्टर यूफ्रेशिया (1877-1952) : 2008 में संत घोषित. 
3. फादर कुरियाकोस एलियास चवारा (1805-1871) : 2014 में संत घोषित. 
(तीनों केरल के सायरो मलाबार चर्च से जुड़े हैं.) 

भारत से जुड़े सबसे प्रसिद्ध संत जेवियर 

4. संत फ्रांसिस जेवियर (1506-1552) : स्पेन में जन्मे फ्रांसिस जेवियर को 1622 में संत घोषित किया गया था.उनका पवित्र शरीर गोवा के बेलिसिका ऑफ बोम जीसस में रखा है. उन्हें देखने दुनियाभर से लोग गोवा आते हैं. 

5.तमिलनाडू के लोकधर्मी धन्य लाजरूस देवसहायम पिल्लई 15 मई 2022 संत घोषित होंगे. 

 

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