आलोक कुमार
पटना.लोक आस्था के महापर्व छठ पूजा की शुरुआत सोमवार को नहाय-खाय के साथ हो गई और 11 नवंबर को उगते सूर्य को अर्घ्य देने के साथ छठ पूजा सम्पन्न होगी.सोमवार को नहाय खाय के साथ लोक आस्था का महापर्व छठ का चार दिवसीय अनुष्ठान शुरू हो गया.पहला दिन कार्तिक शुक्ल चतुर्थी ‘नहाय-खाय’ के रूप में मनाया जाता है. सबसे पहले घर की साफ-सफाई कर उसे पवित्र बना लिया जाता है. इसके पश्चात छठ व्रती स्नान कर पवित्र तरीके से बने शुद्ध शाकाहारी भोजन ग्रहण कर व्रत की शुरुआत करते हैं. घर के सभी सदस्य व्रती के भोजनोपरांत ही भोजन ग्रहण करते हैं. सोमवार को नहाय खाय के दिन कद्दू भात खाकर छठ व्रतियां महापर्व का शुभारंभ की. इसी दिन से पूजा की विधिवत शुरूआत हो जाती है. छठ को लेकर नियम-निष्ठा का काफी ध्यान रखा जाता है.नहाय-खाय के साथ छठी मईया की पूजा-अर्चना आरंभ कर देती है.आस्था के इस महापर्व को लेकर श्रद्धालुओं का उत्साह चरम पर है.
महापर्व पर विशेष रूप से बनने वाले पकवानों के लिए प्रयुक्त होने वाला आटा तैयार करने में भी पवित्रता का पूरा ध्यान रखा जाता है. इसको लेकर गेंहू धोने से लेकर सुखाने तथा पिसाई का काम भी व्रतियों द्वारा ही किया गया है.छठ पर्व को लेकर भक्ति गीतों एवं लोकगीतों के बीच छठ मईया के गीत से वातावरण गुंजायमान होने लगा है. आस्था और संस्कृति से जुड़े इस पर्व को लेकर लोगों का उत्साह चरम पर है.
छठ महापर्व का दूसरा दिन कार्तिक शुक्ल पंचमी को पड़ता है. इस दिन व्रतधारी दिनभर का उपवास रखने के बाद शाम को भोजन करते हैं. इसे ‘खरना’ कहा जाता है. खरना का प्रसाद लेने के लिए आस-पास के सभी लोगों को निमंत्रित भी किया जाता है. प्रसाद के रूप में गन्ने के रस में बने हुए चावल की खीर के साथ दूध, चावल का पिट्ठा और घी चुपड़ी रोटी बनाई जाती है. इसमें नमक या चीनी का उपयोग नहीं किया जाता है. इस दौरान पूरे घर की स्वच्छता का विशेष ध्यान रखा जाता है.खरना पूजा के बाद छठव्रती कठोर निर्जला उपवास पर रहेगी.महापर्व में खरना का विशेष महत्व होता है. इस दिन की पूजा सबसे महत्वपूर्ण मानी जाती है. खरना की तैयारी को लेकर नए चूल्हे व नए बर्तन में पकवान व खीर बनाया जाता है. इसकी विशेष तैयारी होती है.शाम को व्रतियां खरना की पूजा करेंगी.छठ पर्व का प्रकृति से भी जुड़ाव होता है.पूजन के लिए बाजारों से पूजन सामग्री की खरीद के अलावा आसपास प्रकृति प्रदत्त फल,फूल का उपयोग भी पूजा के लिए किया जाता है.
कार्तिक शुक्ल की षष्ठी तिथि के दिन छठ महापर्व का तीसरा दिन होता है. इस दिन सुबह के समय छठ का प्रसाद बनाया जाता है. प्रसाद के रूप में ठेकुआ, जिसे कुछ क्षेत्रों में टिकरी भी कहते हैं, के अलावा चावल के लड्डू बनाए जाते हैं. इसके अलावा चढ़ावे के रूप में लाया गया सांचा और फल भी छठ प्रसाद के रूप में शामिल होता है.छठ पूजा से पहले निम्न सामग्री जुटा लें और फिर सूर्य देव को विधि विधान से अर्घ्य दें.
बांस की 3 बड़ी टोकरी, बांस या पीतल के बने 3 सूंप, थाली, दूध और गिलास.चावल, लाल सिंदूर, दीपक, नारियल, हल्दी, गन्ना, सुथनी, सब्जी और शकरकंदी.नाशपाती, बड़ा नींबू, शहद, पान, साबुत सुपारी, कैराव, कपूर, चंदन और मिठाई.प्रसाद के रूप में ठेकुआ, मालपुआ, खीर-पुड़ी, सूजी का हलवा, चावल के बने लड्डू लें.
हर साल की तरह ही समाजसेवी पप्पू राय की ओर सैकड़ों छठ व्रतियों के बीच में मुफ्त पूजा सामग्री वितरित की गयी.शाम को पूरी तैयारी और व्यवस्था कर बांस की टोकरी में अर्घ्य का सूंप सजाया जाता है और व्रती के साथ परिवार तथा पड़ोस के लोग अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य देने घाट की ओर चल पड़ते हैं. सभी छठ व्रती एक नीयत तालाब या नदी किनारे इकट्ठा होकर सामूहिक रूप से अर्घ्य दान संपन्न करते हैं. सूर्य को अर्घ्य देने की विधि यह है
बांस की टोकरी में उपरोक्त सामग्री रखें. सूर्य को अर्घ्य देते समय सारा प्रसाद सूंप में रखें और सूंप में ही दीपक जलाएं. फिर नदी में उतरकर सूर्य देव को अर्घ्य दें.सूर्य को जल और दूध का अर्घ्य दिया जाता है तथा छठी मैया की प्रसाद भरे सूंप से पूजा की जाती है. इस दौरान छठ घाटों पर कुछ घंटे के लिए मेले जैसा दृश्य बन जाता है.
चौथे दिन कार्तिक शुक्ल सप्तमी की सुबह उदियमान सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है. व्रती, छठ घाट पर बनाए गए अपने बेदी पर पुनः पहुंचते हैं, जहां उन्होंने शाम को अर्घ्य दिया था. जिसके बाद भोर में पुनः पिछले शाम की प्रक्रिया की पुनरावृत्ति होती है. अंत में व्रती कच्चे दूध का शरबत पीकर तथा थोड़ा प्रसाद खाकर व्रत पूर्ण करते हैं.
छठ महापर्व के तीसरे दिन बुधवार को शाम को डूबते हुए सूर्य को अर्घ दिया जायेगा. इस दिन छठ व्रती पूरे दिन निर्जला व्रत रखेंगी और शाम को डूबते हुए सूर्य को अर्घ देंगी.
छठपूजा तिथि और मुहूर्त
10 नवंबर (संध्या अर्घ)
सूर्योदय : सुबह 6:33 बजे
सूर्यास्त : शाम 5:27 बजे
11 नवंबर (सुबह अर्घ)
सूर्योदय : सुबह 6:34 बजे
सूर्यास्त : शाम 5:26 बजे
गुरुवार को उगते हुए सूर्य को अर्घ
चार दिवसीय छठ महापर्व का समापन गुरुवार को उगते हुए सूर्य को अर्घ देने के साथ होगा. अर्घ देने के बाद वर्ती घाट पर बैठ कर विधिवत तरीके से पूजा करेंगे. फिर आसपास के लोगों को प्रसाद दिया जायेगा.
छठ पूजा अर्घ्य मन्त्र समय
ॐ सूर्य देवं नमस्ते स्तु गृहाणं करूणा करं.
अर्घ्यं च फ़लं संयुक्त गन्ध माल्याक्षतै युतम् ..
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