चंचल
कल प्रियंका गांधी बनारस में थी , यह अखबार की खबर नही है , बक्से की भी खबर नही है , ये दोनों काशी के जनमन दबाव पर कबूल किया गया बयान है - हाँ ! आयी थी प्रियंका , काशी ने अपनी आंखों से देखा , जर्रे - जर्रे पर उनकी उंगलियों के निशान है , सड़कें पट गयीं थी , पूरा पूर्वांचल निकल आया था काशी की सड़कों पर . अरसे बाद काशी करवट ले रहा है , ऐसी भीड़ नही देखा . भीड़ न प्रायोजित थी , न ही सरकारी थी . काशी पुरुषार्थ की राजनीति का हामी है , अनुदान की सियासत उसके लिए प्रहसन है .
प्रियंका कल लखीमपुर खीरी में थी , शक्ति रूपेण . पुलिस को घुड़क कर उसे उसकी औकात बता रही थी , अपनी दादी मरहूम इंदिरा गांधी का तेज लिए ,पुलिस की बख्तरबंद व्यवस्था को तोड़ते हुए रुद्र रूप देखा था . देश नही दुनिया देख रही थी . आज काशी ने उसी रुद्र रूप को करुणा में बदलते देखा . काली मंदिर से दर्शन कर निकलते समय ड्यूटी पर खड़ी महिला पुलिस कर्मी की आंख में कुछ था जिसे प्रियंका ने पढ़ लिया . प्रियंका ने दोनो बाहें फैला दी महिला पुलिस कर्मी बढ़ीं और आकर झूल गयी प्रियंका की बाहों में . अनगिनत आंखे भर गईं . शक्ति और करुणा एक दूसरे के पूरक हैं . दोनो एकाकार होकर ही शिव के तांडव को रोकते हैं. शिव दुर्गा पद को अपने वक्षस्थल पर स्वीकारते हैं- हमने शक्ति देख लिया , अब करुणा का भाव दो देवी .
शिव के आह्वाहन पर करुणा का विस्तार प्रकृति को सम कर देती है . यही तो काशी है . कल काशी प्रियंका मय था, या प्रियंका काशी थी या दोनो ही रूप था , जानने के लिए काशी की कहानी सुनिए जिसे प्रियंका गांधी छोड़ कर जा रही हैं .
आयी थी अपनी दादी की लाडली , काशी को गले लगा गयी . जाते जाते शक्ति का आह्वाहन कर गयी - या देवी !
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