आलोक कुमार
पटना. लोकनायक जयप्रकाश के नेतृत्व में चलाये गये आंदोलन के दौरान 18.03.74 से 21.03.77 तक राज्य के काराओं में मीसा एवं डीआईआर में संसीमित राजनैतिक बंदियों का स्पष्ट प्रतिवेदन कारा महानिरीक्षक को शीघ्र उपलब्ध कराने को कहा गया. इस प्रतिवेदन के आलोक में इस तथ्य का भी सत्यापन कर लेने की हिदायत दी गयी कि एक ही कैदी उक्त अवधि में कई काराओं में रखे गये थे ऐसे राजनीतिक कैदियों की गणना एक ही बार होनी चाहिए. बैठक में यह भी कहा गया कि सी0एल0ए0 में कुछ नहीं हजारों की संख्या में राजनैतिक बंदी संभवत बंद हुए थे ऐसे राजनैतिक बंदियों की सूची भी काराओं से प्राप्त कर ली जाए.
इस संदर्भ में परामर्श समिति के पूर्व सदस्य कुमार शुभमूर्ति जी का कहना है कि बिहार सरकार के द्वारा प्रथम चरण में 18 मार्च से 1974 से लेकर 21 मार्च 1977 तक सिर्फ मीसा और डीआईआर के तहत जेल जाने वाले आंदोलनकारियों को पेंशन और सम्मानित करने का निर्णय लिया है.सी0एल0ए0 में बंद कुछ राजनैतिक बंदी को पेंशन और सम्मानित नहीं किया गया.जो जेपी आंदोलनकारी सीएलए के तहत जेल गये हैं. उनके बारे में सरकार से वार्ता की जा रही है.सरकार के समक्ष सी0एल0ए0 वालों को भी सम्मानित करने का प्रस्ताव प्रेषित किया गया है.मगर नतीजा रहा सिफर.
सन् चौहतर में लोकनायक जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में चलाये गये आंदोलन के दौरान विधान सभा भंग करने की मांग को लेकर चले ‘ जेल भरो अभियान ’के सिलसिले में 13 जून 1974 को विधान सभा के द्वार पर विधायकों के मार्ग को अवरूद्ध कर इस्तीफा मांगने के सवाल पर गिरफ्तार कर केन्द्रीय कारा, बक्सर जाने वाले बांसकोठी, दीघा के जौर्ज केरोबिन ने कहते हैं कि उनके साथ राजेश पासवान, ओमप्रकाश, नन्द कुमार, सूर्य कुमार आदि अन्य साथियों को धारा 143, 188, 341, आई.पी.सी. गर्दनीबाग 24.6.74 सी0एल0ए0 एक्ट 1942 अधीन गिरफ्तार 13.6.74 को किया गया.उनका कहना है कि केवल मीसा एवं डीआईआर वाले को ही सम्मानित किया गया और सीएलए एक्ट 1942 अधीन गिरफ्तार आंदोलनकारियों को अपमानित कर दिया गया.
उन्होंने कहा कि धारा 143, 188, 341, आई.पी.सी. गर्दनीबाग 24.6.74 सी0एल0ए0 एक्ट 1942 के तहत भारतीय दंड संहिता की धारा 143 के अनुसार, जो भी कोई गैरकानूनी जनसमूह का सदस्य होगा, तो उसे किसी एक अवधि के लिए कारावास की सजा जिसे छह महीने तक बढ़ाया जा सकता है, या आर्थिक दंड, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा.उसी तरह भारतीय दंड संहिता की धारा 188 के अनुसार किसी भी पब्लिक सर्वेंट के द्वारा जारी किए गए ऑर्डर को न मानने वालों के खिलाफ सजा का प्रावधान दिया गया है. इसके मुताबिक, "जो कोई भी जानबूझकर पब्लिक सर्वेंट के आदेश की अवमानना करता है, उसको जेल की सजा या जुर्माना या फिर दोनों हो सकते हैं."भारतीय दंड संहिता की धारा 341 के अनुसार, जो भी व्यक्ति किसी व्यक्ति को गलत तरीके से रोकता है, तो उसे किसी एक अवधि के लिए साधारण कारावास की सजा जो एक महीने तक हो सकती है, या पांच सौ रूपये का आर्थिक दंड, या दोनों से दंडित किया जाएगा.
उन्होंने कहा कि जौर्ज केरोबिन, राजेश पासवान, ओमप्रकाश, नन्द कुमार, सूर्य कुमार आदि आंदोलनकारी आज भी सी0एल0ए0 एक्ट 1942 के अधीन जेल जाने के प्रमाण पत्र लेकर भटक रहे हैं. सरकारी दरवाजे पर दस्तक देते-देते थक गये हैं. इनको 47 वर्षों के बाद भी जेपी सम्मान से सम्मानित नहीं किया गया.जेपी सेनानी सलाहकार पर्षद के अध्यक्ष से आग्रह किये हैं कि जो आंदोलनकारी सी0एल0ए0 एक्ट 1942 के अधीन जेल गये हैं. उनको भी जेपी सेनानी पेंशन दी जाए. अभी तक सिर्फ मीसा और डीआईआर को ही सरकार जेपी सेनानी पेंशन से लाभान्वित करा रही है.इस तरह मीसा और डीआईआर वालों को सरकार दुलार रहीं हैं और सी0एल0ए0 एक्ट 1942 वालों को सरकार दुत्कार रही हैं.
मीसा और डीआईआर वालों को दुलार किया और सीएलए एक्ट 1942 के अधीन जेल जाने वालों को दुत्कार दिया?इसका सरकार को जवाब देना चाहिए.
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