अप्रत्याशित तो नहीं है लखीमपुर हिंसा

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अप्रत्याशित तो नहीं है लखीमपुर हिंसा

डा रवि यादव 
यूपी के लखीमपुर खीरी  में चार किसानों की कार से कुचलकर हत्या किए जाने का आरोप किसान संगठनों व प्रत्यक्षदर्शियों द्वारा भारत सरकार में गृह राज्य मंत्री अजयमिश्रा उर्फ़ टेनि के बेटे पर लगाया जा रहा है प्रतिक्रिया स्वरूप एक पत्रकार सहित चार अन्य लोगों को भी अपनी जान गवानी पढ़ी है . यू तो यह घटना किसी भी लोकतांत्रिक देश के लोगों के लिए व व्यवस्था के लिए चिंताजनक , शर्मसार करने वाली , पीड़ादायक और सोचनीय है किंतु पिछले कुछ वर्षों से चल रही घटनाओं , सामाजिक विमर्श और हमारे कन्सर्न को ध्यान में रखा जाय तो कम से कम मुझे अप्रत्याशित तो नहीं लगती . 
यह घटना विस्तार और प्रसार है उन घटनाओं , वक्तव्यों , हमारे चयन और नियुक्तियों की जो पिछले कुछ सालों में किया गया है .  कुछ प्रयोग जो पिछले वर्षों में किए गए उनका परिणाम  . 
क्या “विश्व की सबसे बड़ी और संस्कारी “ भारतीय जनता पार्टी के पास भोपाल से चुनाव लड़ने के लिए साध्वी प्रज्ञा ठाकुर के अतिरिक्त कोई उपयुक्त कार्यकर्ता नहीं था ? 
जो व्यक्ति समुदाय विशेष की महिलाओं को क़ब्र से निकाल कर बलात्कार करने का आह्वान अपने कार्यकर्ताओ से करता हो उसे किसी प्रदेश का मुख्यमंत्री बनाया जाय और अपेक्षा की जाय की क़ानून का राज स्थापित करेगा  तो यह उसी तरह है कि आप चाय बनाते हुए उसमें चीनी के बजाय नमक डाले और उम्मीद करे कि चाय मीठी होगी . 
जिस प्रदेश में एक पूर्व केंद्रीय गृह राज्य मंत्री से बलात्कार का मुक़द्दमा  सरकार वापस ले और फिर दुबारा उसी पूर्व गृहराज्य मंत्री पर एक अन्य महिला उसी तरह का आरोप लगाए तो उस महिला को जेल और पूर्व मंत्री को अस्पताल में आराम दिया जाए तो दूसरे वर्तमान गृहराज्य मंत्री का बेटा 4-6 को गाड़ी से कुचल देने की उम्मीद तो रख ही सकता है . 
जहाँ मुख्य मंत्री और उपमुख्यमंत्री अपने ऊपर लगे आपराधिक केस वापस ले लेते हो वहाँ एक केंद्रीय मंत्री को अपने पद के अनुसार केस वापसी का हक़ तो होना ही चाहिए . 
बुलन्दशहर हिंसा और इंस्पेक्टर सुबोध सिंह की हत्या के आरोपी योगेशराज , पंचायत चुनाव में एसपी को चांटा मारने के आरोपी , सीएए आंदोलनकारियों पर गोली चलाने के आरोपी सुमित गुज्जर को जो पार्टी सम्मानित करेगी और पदाधिकारी बनायेंगीं तो परिणाम लखीमपुर ही होंगे . 
जहाँ एक राज्य मंत्री देश के ग़द्दारों को गोली मारने का आह्वान भरी सभा में करने से प्रोन्नत हो सकता हो वहाँ कोई दूसरा राज्यमंत्री विरोधियों ( ग़द्दारों ) को बिना गोली ख़र्च किए  मार सकता है तो उसका हक प्रोन्नति के लिए अधिक मज़बूत हो जाना चाहिए . 
बंच आफ थॉट और वी, और अवर नेशनहुड डिफाइंड जिनकी गुरुवाणी हो , ब्लैक सर्ट्स व नेशनल सोशलिस्ट वर्कर्स पार्टी जिनके आदर्श संगठन , लोकतंत्र के प्रति उनके विचारों को समझना मुश्किल भी नहीं है . 
लोक तंत्र संविधान द्वारा प्रदत्त शासन व्यवस्था ही तो है अगर किसी के मन में संविधान के प्रति विश्वास नहीं है तो संविधान द्वारा उपलब्ध  कराई गई व्यवस्थाओं , प्रक्रियाओं और संस्थाओं के प्रति विश्वास कैसे हो सकता है ? इसी का परिणाम है कि भाजपा के पूर्ण बहुमत की सत्ता सम्भालने के बाद भारत में में लोकतंत्र लगातार कमज़ोर होता गया है . 
          
कहा जा सकता है कि न्यायिक सर्वोच्चता कुछ प्रश्नो के बावजूद अभी तक क़ायम है किंतु व्यवस्था के अन्य अंग अपनी प्रासंगिकता के लिए संघर्ष करते भी नहीं दिखाई देते . 
हाल ही मैं हरियाणा के माननीय मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर का विडियो सोशल मीडिया पर वाइरल है जिसमें वे अपने कार्यकर्ताओ को “सठे साठ्यम समाचरेत” को अपनाने और विरोधियों को लाठी से सुधारने का प्रवचन दे रहे है , वे ये भी बता रहे है कि “कुछ माह जेल हुई तो बड़े नेता बन जाओगे “ . 
कार्यपालिका हेड के इन संत वचनों से कार्यपालिका की हालत का अन्दाज़ लगाया जा सकता है और यह भी कि भविष्य में कार्यपालिका हेड या व्यवस्थापिका का अंग बनने के के लिए क्या मानदंड है और कैसे हेड और सदस्य कार्यपालिका को मिलने वाले है . 
व्यवस्थापिका पर अभी हाल ही में माननीय सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी प्रासंगिक होगी जिसमें उन्होंने बिना बहस देश के कानूनो के पास होने पर चिंता व्यक्त की है . 
लोकतन्त्र का चौथा स्तंभ कहा जाने वाला मीडिया सरकार के सामने बेहद शर्मनाक अन्दाज़ में समर्पण कर चुका है मुख्यधारा का अधिकांश मीडिया बिना घुँघरू और साज के ताली बजाकर नृत्य कर रहा है . 
स्वीडन की वी-डेम इंस्टीट्यूट  की 2021 की रिपोर्ट में  भारत में लोकतंत्र के क्षरण पर चिंता व्यक्त की गई है व देश में निर्वाचित निरंकुश तंत्र के होने की बात की गई है . उसके कुछ पहले अमेरिकी संस्था फ़्रीडम हाउस ने भी कुछ इसी तरह का निष्कर्ष दिया था और भारत को “स्वतंत्र लोकतंत्र” की श्रेणी से हटा कर ‘आंशिक तौर पर स्वतंत्र लोकतंत्र की श्रेणी में रखा था . 
किसी भी देश के राष्ट्राध्यक्ष या शासनाध्यक्ष  द्वारा कभी देश प्रधानमंत्री या राष्ट्रपति के समक्ष भारत के लोकतंत्र पर प्रश्नचिन्ह नहीं लगाया गया लेकिन अभी पिछले माह ही अमेरिकी उपराष्ट्रपति कमला हैरिश ने माननीय प्रधानमंत्री मोड़ी के समक्ष देश की लोकतांत्रिक संस्थाओं की मज़बूती की आवश्यकता को रेखांकित किया . 
पिछले सात साल से भारतीयों को राष्ट्र के प्रति उनके कर्तव्य याद दिलाए जाते रहे है .बैंक एटीएम की लाइन में लगना भी देश भक्ति का अहसास कराता है मगर जीवन की सुरक्षा जैसा मूल अधिकार हाँसिए पर पहुँचा दिया गया है . 
अब यह हमारा अपना निर्णय है कि हमें मज़बूत व्यवस्था चाहिए या मज़बूत नेता . 

 

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