आलोक कुमार
पटना.प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई में बुधवार को हुई केंद्रीय कैबिनेट की बैठक में कई अहम फैसले लिए गए. देशभर के सरकारी और सह-सरकारी स्कूलों में बच्चों के लिए चलाई जा रही मिड-डे मील योजना को अब नया रूप दिया गया है, इस योजना को अब प्रधानमंत्री पोषण योजना के रूप में जाना जाएगा. केंद्र सरकार अगले पांच साल में इस योजना पर 1.31 लाख करोड़ रुपये खर्च करेगी. बिहार राज्य विद्यालय रसोईया संघ(ऐक्टू) ,बिहार राज्य विद्यालय रसोईया संघ (ऐटक) व बिहार राज्य मिड डे मील वर्कर्स यूनियन -रसोईया (सीटू) ,बिहार राज्य मध्यान्ह भोजन योजना कर्मचारी यूनियन (एआईयूटीयूसी) के नेताओं ने संयुक्त रूप से बयान जारी कर मध्यान्ह भोजन योजना का नाम बदल कर प्रधानमंत्री पोषण योजना करने का विरोध किया है.
बता दें कि मध्याह्न भोजन स्कीम देश के 2408 ब्लॉकों में एक केन्द्रीय प्रायोजित स्कीम के रूप में 15 अगस्त, 1995 को आरंभ की गई थी. वर्ष 1997-98 तक यह कार्यक्रम देश के सभी ब्लाकों में आरंभ कर दिया गया.वर्ष 2003 में इसका विस्तार शिक्षा गारंटी केन्द्रों और वैकल्पिक व नवाचारी शिक्षा केन्द्रों में पढ़ने वाले बच्चों तक कर दिया गया.अक्तूबर, 2007 से इसका देश के शैक्षणिक रूप से पिछड़े 3479 ब्लाकों में कक्षा VI से VIII में पढ़ने वाले बच्चों तक विस्तार कर दिया गया है.वर्ष 2008-09 से यह कार्यक्रम देश के सभी क्षेत्रों में उच्च प्राथमिक स्तर पर पढने वाले सभी बच्चों के लिए कर दिया गया है.राष्ट्रीय बाल श्रम परियोजना विद्यालयों को भी प्रारंभिक स्तर पर मध्याह्न भोजन योजना के अंतर्गत 01.04.2010 से शामिल है.
इस बीच बिहार राज्य विद्यालय रसोईया संघ(ऐक्टू) ,बिहार राज्य विद्यालय रसोईया संघ (ऐटक) व बिहार राज्य मिड डे मील वर्कर्स यूनियन -रसोईया (सीटू) ,बिहार राज्य मध्यान्ह भोजन योजना कर्मचारी यूनियन (एआईयूटीयूसी) के नेताओं ने संयुक्त रूप से बयान जारी कर मध्यान्ह भोजन योजना का नाम बदल कर प्रधानमंत्री पोषण योजना करने का विरोध किया,साथ ही इस योजना को पांच साल बढ़ाने की बात पर आश्चर्य व्यक्त किया.
बिहार राज्य विद्यालय रसोईया संघ, ऐक्टू की महासचिव सरोज चौबे, बिहार राज्य विद्यालय रसोईया संघ , ऐटक के राज्य संयोजक डाक्टर रमाकांत अकेला, बिहार राज्य मिड डे मील वर्कर्स यूनियन , सीटू के विनोद कुमार, बिहार राज्य मध्यान्ह योजना कर्मचारी यूनियन, एआईयूटीयूसी के सूर्यकर जितेंद्र ने सरकार से सवाल किया कि क्या पांच साल में बच्चों का कुपोषण दूर हो जाएगा? नेताओं ने यह भी सवाल किया कि इस प्रस्ताव जिसे आर्थिक मामलों की समिति ने मंजूरी दी है मध्यान्ह भोजन योजना चलाने के लिए स्वयं सहायता समूहों को प्राथमिकता दी जाएगी.तो फिर पूरे देश में लाखों की संख्या में कार्यरत रसोईया का क्या होगा, इसके बारे में मौन साध लिया गया है.सरकार को इनके आर्थिक भविष्य की गारंटी करनी होगी.
24 सितंबर को आल इंडिया स्कीम वर्कर्स प्लेटफार्म के बैनर से आयोजित हड़ताल में रसोईया संगठनों ने मध्यान्ह भोजन योजना के एनजीओ करण न करने के लिए हड़ताल किया था और प्रधानमंत्री को ज्ञापन भेजा गया , उसपर विचार करने की बजाय रसोईया को ही बाहर करने का फरमान जारी कर दिया गया.
विद्यालय 16 अगस्त से ही खुल गए लेकिन विद्यालयों में भोजन बनना शुरू नहीं हुआ.मध्यान्ह भोजन योजना सुप्रीम कोर्ट के आदेशानुसार शुरू हुई थी और और बिहार में ढाई लाख रसोईया इस योजना में कार्यरत थीं , कोविड काल में उन्होंने जान की कुर्बानी देते हुए जनता की सेवा की , कोरेन्टाईन सेन्टरों में खाना बनाया जिसका भुगतान अभी तक नहीं किया गया.अब सरकार उनके भविष्य के साथ खिलवाड़ कर रही है.कई -कई महीने तक मानदेय के अनियमित भुगतान को झेलते हुए उन्होंने बच्चों व विद्यालय की सेवा की.
आगे नेताओं ने कहा कि यदि कहा कि सरकार यदि रसोईया के भविष्य के साथ खिलवाड़ करेगी तो रसोईया संगठन चुप नहीं रहेंगे, निर्णायक आंदोलन करने को बाध्य होंगें.
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