फ़ज़ल इमाम मल्लिक
करीब बारह साल पहले किसी ने सोचा तक नहीं था कि सरकार की एक छोटी सी पहल बिहार में बेटियों के लिए नजीर बन जाएगी. लेकिन हुआ ऐसा ही. उस पहल ने लड़कियों की आंखों में पलते सपनों को आकार दिया और अब कंधे पर सितारे सजाए वे बेटियां दूसरी बेटियों के लिए मिसाल बन गईं हैं. शायद यही वजह है कि बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार इस उपलब्धि की वजह से हीको लेकर बमबम तो हैं लेकिन अब वे और भी जोर दे रहे हैं कि लड़कियां पढ़ाई-लिखाई करें और समाज की मुख्यधारा से जुड़ कर परिवार को ही नहीं समाज और सूबे को भी संचालित करें.
देखा जाए तो सरकार ने लड़कियों को स्कूल जाने के लिए साइकिल ही तो दी थी ताकि उनका घर से स्कूल जाना आसान हो. गरीब घरों की बच्चियां पढ़ना तो चाहतीं थीं लेकिन स्कूल की दूरी उनके सपनों के आड़े आतीं थीं. फिर लिबास भी ढंग का नहीं होता था. वंचित वर्ग की बच्चियों को लिबास और साइकिल मिली तो उनके सपनों को पंख लग गए. सपनों को पंख लगे तो उनके कंधे पर सितारे चमक उठे. बारह साल में बिहार में समाज की तसवीर बदल डाली. कुछ दिनों पहले यह तसवीर राजगीर में दिखाई दी. राजगीर में बिहार सरकार ने पुलिस प्रशिक्षण अकादमी बनाई है. प्रशिक्षण अकादमी में पासिंग आउट परेड का आयोजन किया गया था. परेड में बेटियों के बूटों की धमक से एक नई इबारत लिखी जा रही थी और उनके कंधे पर सजे सितारे कह रहे थे कि अब दुनिया उनकी मुट्ठी में होगी. छह सौ के करीब महिलाएं इस प्रशिक्षण अकादमी से निकली हैं जो बिहार के थानों में दारोगा के पद पर तैनात होंगी.
तसवीर किस तरह बदली है, उसे आंकड़ों से समझा जा सकता है. 1994 में 1640 आरक्षी अवर निरीक्षक (दारोगा) बहाल किए गए थे. इनमें महिलाओं की तादाद सिर्फ 53 थीं, लेकिन 2021 में यह तसवीर बदल गई. इस साल अकादमी से 1586 दारोगा निकले और इनमें महिलाओं की तादाद 596 हैं. बिहार सरकार ने पुलिस की नौकरी में 35 फीसद महिलाओं को आरक्षण दिया है. इसका लाभ तो मिला लेकिन आंकड़ों पर ध्यान दें तो लड़कियों का जनून भी सामने आता है क्योंकि आरक्षण से करीब दो फीसद ज्यादा पद उन्होंने अपने लिए हासिल कर नई राह गढ़ी. बड़ी बात यह है कि इनमें से ज्यादातर लड़कियां सामान्य परिवारों से आतीं हैं, जो सपने तो देख सकतीं थीं उसे पूरा नहीं कर सकतीं थीं. दरअसल कई तरह की विडंबनाओं और खामियों के बावजूद सरकारी स्कूलों के जरिए ही वे आज कामयाबी के शिखर पर हैं.
लेकिन यहां तक पहुंचने के लिए उन्हें एक लंबा रास्ता तय करना पड़ा है. सरकार की सोच थी कि महिलाओं के जरिए ही एक सशक्त समाज बन सकता है और इसकी एक बानगी भर देखने को मिली राजगीर पुलिस प्रशिक्षण अकादमी में. कंधे पर दो सितारे सजाए शान से खड़ी लड़कियां इसकी मिसाल हैं. पूजा कुमारी एक मिसाल हैं. वे शेखपुरा जिला के चेवारा के के जगन्नाथ प्रसाद साह की बेटी हैं. पढ़ाई लिखाई में रुचि थी. पिता उनके सपनों के आड़े नहीं आए. वे किसी बड़े स्कूल की छात्र नहीं रहीं. गांव के स्कूल में पढ़ीं और फिर दारोगा की परीक्षा पास कर अब दारोगा बन गईं हैं. इसी तरह लखीसराय के रंजन कुमार की बेटी संजना भी अब दारोगा बन गई हैं. सितारों की चमक की खुशी उनके चेहरे से बयां होती है. वे कहती हैं कि सूर्यगढ़ा के बालिका हाई स्कूल से स्कूली शिक्षा ली. स्कूल आना-जाने में परेशानी होती थी. साइकिल नहीं थी. बेटियों के लिए मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की योजना के तहत 2008 में साइकिल मिली तो फिर हौसलों की उड़ान को पंख मिल गए. उनका आत्मविश्वास बढ़ा और कुछ कर गुजरने की ललक को भी ताकत मिली. फिर शुरू हुआ एक नया सफर. 2009 में स्कूल में टाप किया. दस हजार रुपए की प्रोत्साहन राशि ने सपनों को और उड़ान दी. अब उनके या पूजा के कंधे पर सजे सितारे उसी साइकिल की देन है, जिसे लेकर बिहार में तब नीतीश कुमार को कई तरह के हमले भी झेलने पड़े थे. कमोबेश इसी तरह की कहानी अकादमी से निकलीं सभी लड़कियों की है.
यूं बिहार में तालीम या दूसरे सामाजिक सरोकारों को लेकर राष्ट्रीय स्तर पर न जाने क्या कुछ कहा जाता है. लेकिन बेटियों की पढ़ाई-लिखाई को लेकर समाज में बदलाव आया है, इस पासिंग आउट में इस बदलाव को देखा जा सकता है. पितृसत्ता की बात की जाती है और यह गलत भी नहीं है लेकिन बिहार में पुरुष प्रधान समाज में अब बेटियां गर्व हैं बोझ नहीं. राजगीर में पासिंग आउट परेड में 596 लड़कियां बदलते समाज की बड़ी पहचान भी हैं और नजीर भी. इन लड़कियों ने बिहार में आने वाली पीढ़ियों के लिए रास्ते हमवार किए हैं. वे कइयों के लिए उम्मीद की नई किरण हैं जिसे देख कर दूसरी लड़कियां भी अपने सपनों को हकीकत में बदलने के लिए प्रेरित होंगी.
खुशी से दपदपाते चेहरे पर कुछ कर गुजरने की ललक लिए पूजा कहती हैं कि कोई भी पीडि़त महिला एक महिला अधिकारी से अपनी बात बेझिझक कह सकती है. उनकी कोशिश होगी कि वे अपने फर्ज को निभाने में किसी तरह की कोताही न करें.
पूजा और संजना ही नहीं छपरा के शंकर राम की बेटी दीपशिखा और गया के ललन पासवान की बेटी ब्यूटी कुमारी की आंखों में बदलाव की लपलपाती लौ को देखा जा सकता है. बेटियां परेड का नेतृत्व कर रही हैं. प्रशिक्षु महिला सब इंस्पेक्टर की आवाज में रौब है. सब सावधान की मुद्रा में, आंखों में तेज, चेहरा पर गर्व और स्वाभिमान की झलक. यह बदलते बिहार की तसवीर है. इस बिहार की चर्चा बिहार से बाहर नहीं हो रही है या नहीं की जा रही है. तो इसकी वजह बिहार को लेकर नकारात्मक सोच है जो बिहार से बाहर का मीडिया भी पाले हुआ है और लोग भी. नीतीश कुमार इस तसवीर को देख कर खुश हैं तो उनके मंत्री जो कभी पुलिस के अधिकारी रहे थे सुनील कुमार भी कम खुश नहीं हैं, वे कहते हैं- राजगीर पुलिस प्रशिक्षण अकादमी मेरी देखरेख में बना है. एनडीए से ज्यादा खूबसूरत है. कभी जाकर देखें. हमने हर सुविधा वहां मुहैया कराई है. बेटियां आज वहां से प्रशिक्षित होकर निकलीं मेरे लिए यह दोहरी खुशी है. हालांकि वे भी इस बात से दुखी नजर आए कि इसकी चर्चा राष्ट्रीय स्तर पर उस तरह नहीं हुई जिस तरह गैरमतलब के बहसों में मीडिया उलझा रहता है. और सच भी है यह. बिहार देश का पहला ऐसा राज्य है, जहां इतनी बड़ी तादाद में लड़कियां पुलिस अफसर बनी हैं, लेकिन इसकी चर्चा तक नहीं, लेकिन बिहार की बदहाली की खबरें रष्ट्रीय स्तर पर खूब सुर्खियां बटोरतीं हैं।
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