धर्म नहीं अस्तित्व बचाना है

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धर्म नहीं अस्तित्व बचाना है

डा रवि यादव 
एक प्रतिष्ठित चेनल पर यूपी की राजनीति पर परिचर्चा में एक संघ समर्थक सम्मानित पत्रकार सपा बसपा पर सिर्फ़ 40 फीसद लोगों को अप्रोच करने का आरोप लगाते हुए भाजपा द्वारा 80 फीसद को एप्रोच करने व समावेशी राजनीति करने की तारीफ़ कर रहे थे और यह दावा भी कि अगर एप्रोच ही 40 फीसद को कर रहे है तो 20/25 या अधिकतम 30 फीसद वोट मिल जाएगा तो भी भाजपा को कैसे हराएँगे ? उन्होंने योगी जी की तारीफ़ में कहा कि  योगी जी हिंदुत्व के प्रति समर्पित है , हिंदुत्वको लेकर उनके अंदर संदेह या शर्म नहीं , उन्होंने सदन में कहा कि मैं ईद नहीं मनाता , मैं हिंदू हूँ . 
सपा - बसपा के भगवान परशुराम की मूर्ति स्थापना की घोषणा और प्रबुद्ध वर्ग सम्मेलन की भी आलोचना कर रहे थे लेकिन  उन्होंने भाजपा के प्रबुद्ध वर्ग सम्मेलनों पर आपत्ति दर्ज नहीं की .  विडंबना यह है कि ये वही लोग है जो इन पार्टियों पर हिंदू विरोधी/ सवर्ण विरोधी होने का आरोप लगाते रहे है. 
यह सच है कि  ब्राह्मण आमतौर पर कभी भी इन पार्टियों का समर्थक नहीं रहा , तो ऐसे में इन पार्टियों द्वारा ब्राह्मण सम्मेलन अपने वोट विस्तार का प्रयास है जो हर दल का अधिकार है और कर्तव्य भी ,साथ ही इन पार्टियों द्वारा ब्राह्ममणों के नज़दीक जाना और उन्हें साथ लाने की कोशिश करना एक स्वस्थ्य लोकतंत्र की ज़रूरत क्यों नहीं माना जाना चाहिए ? क्यों न इसे समावेशी राजनीति के लिए आवश्यक पहल माना जाना चाहिए । हॉ भाजपा द्वारा प्रबुद्ध वर्ग सम्मेलनों का आयोजन ज़रूर यह सिद्ध करता है कि उसे डर है कि ब्राह्मण उतनी सिद्दत से उसके साथ नहीं है जितना पिछले चुनाव में था . 
स्वस्थ्य लोकतंत्र और समावेशी राजनीति की माँग है कि इसी तरह भाजपा द्वारा मुस्लिम सम्मेलन किए जाए और उन्हें साथ लाने की कोशिश की जाए . 
 बसपा अपने प्रारम्भिक काल में सवर्ण विरोधी राजनीति करती रही है अतः उस की विचारधारा में बदलाव पर बहस हो सकती है मगर डाक्टर लोहिया , जय प्रकाश नारायण , मधुलिमये , रघुठाकुर , चौधरी चरण सिंह , जनेश्वर मिश्र सहित अधिकांश समाजवादी सवर्ण रहे है . भगवान परशुराम का आँकलन यदि उनके भगवान या अवतार रूप से हटकर किया जाय तो “ बड़े सामंतो से ज़मीने छीनकर ग़रीबों में बाँट देने “ वाले शख़्स को क्रांतिकारी समाजवादी के अलावा कुछ और कहा जा सकता है ? 
      मेरे अपने मत में उनको उचित सम्मान भी इसी लिए नहीं मिल सका क्योंकि उन्होंने उस वर्ग को दुश्मन बना लिया जो साधन सम्पन्न था और इसलिए सामाजिक धारणा बनाने में सक्षम था । ऐसे में सपा द्वारा एक प्रखर और क्रांतिकारी समाजवादी के सम्मान की घोषणा से उन लोगों को आपत्ति है जो लेनिन को गाली देते है और लेनिनवादी राजा महेंद्र प्रताप सिंह को आदर्श बताते है . 
मार्क्स को गाली देते है और मार्क्सवादी भगत सिंह को आदर्श बताते है . 
गांधी को गाली देते है और गांधीवादी और संघ पर प्रतिबंध लगाने वाले सरदार पटेल  को आदर्श बताते है । अम्बेडकरवादियों को गाली देते है और अम्बेडकर को आदर्श बताते है ।जिन्ना को गाली देते है और लीग के साथ सरकारें बनाते है ।जिस संविधानधान की बदौलत संवैधानिक पदों पर बैठे है उसी को जलाते रहे है . 

     भाजपा और समर्थक अपने द्वारा बनाए गए अफ़सानो के बिखरजाने से डरते है वे समावेशी सोच से , भाई चारे से डरते है । वे नहीं चाहते हिंदू मुस्लिम एकता हो , उन्हें दलित सवर्ण की सामाजिक ग़ैरबराबरी से ऊर्जा मिलती है , वे वर्गवाद के ख़त्म होने में अपनी जन्म आधारित श्रेष्ठता के ख़तरे में पड़ने से भयाक्रांत रहते है . 
     वे राहुल गांधी या अखिलेश यादव के मंदिर जाने पर सबाल उठाते है कि कही उनके द्वारा पैदा किया गया हिंदू विरोधी का टेग ख़त्म न हो जाय . 
यदि हिंदुत्व का प्रसार या लोकप्रियता से ख़ुशी होती है तो न केवल राहुल गांधी के वैष्णोदेवी जाने पर उनका स्वागत करना चाहिए वरन कोई अब्दुल्ला या एंटोनि मंदिर जाय तो उसका स्वागत करना चाहिए ।मेरे कई मुस्लिम मित्रों ने कहा है कि यदि उन्हें चितपावन ब्राह्मण बनाया जाय तो वे हिंदू बन सकते है . है कोई तरीक़ा तो बताया जाय ? 
      मैं धर्म पर टिप्पणी करने के लिए ख़ुद को अधिकृत नहीं पाता अतः किसी धर्म पर अपनी राय ज़ाहिर नहीं करता किंतु मैंने जिस धर्म में जन्म लिया है और जिसे मानता हूँ उसमें सर्वाधिक प्रचलित और लोकप्रिय ग्रंथ राम चरित्रमानस में गोस्वामी तुलसीदास के हवाले से धर्म के मर्म को समझता हूँ जिसमें गोस्वामी जी ने लिखा है -  परहित सरस धरम नहि भाई , पर पीड़ा सम नहि अधमाई  
गोस्वामी जी की कसौटी पर - 
मैं हिंदू हूँ ईद नहीं मनाता  या  .....पहले सब अब्बाजान वाले ले जाते थे '  किसी लोकतांत्रिक पद पर बैठें व्यक्ति द्वारा इस तरह के बयानों की निंदा की जानी चाहिए न कि तारीफ़ और  वर्ग विशेष को पीड़ा पहुँचाने के लिए इस तरह की शाब्दिक हिंसा किसी हिंदू धार्मिक व्यक्ति के द्वारा संभव नहीं । अतः यह सब क़वायद धर्म बचाने के लिए नहीं राजनैतिक अस्तित्व बचाने के के लिए है जो बतौर गोस्वामी यह “अधमाई “ के अंतर्गत आती है . 
 

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