भाजपा प्रेम महंगा पड़ सकता है आरसीपी सिंह और हरिवंश को

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भाजपा प्रेम महंगा पड़ सकता है आरसीपी सिंह और हरिवंश को

फ़ज़ल इमाम मल्लिक 
जदयू में नेतृत्व परिवर्तन का असर दिखने लगा है. पार्टी के नए राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह ने जदयू नेताओं को जो संकेत दिए, उसका संदेश साफ है. भाजपा से गठबंधन है, लेकिन दोस्ती का मतलब जदयू को भाजपामय नहीं करना है. जदयू राष्ट्रीय परिषद के सदस्यों के बीच जो कुछ भी कहा गया उससे भविष्य की तसवीर साफ होती है. सियासी इबारत को सामने तो रखा ललन सिंह ने लेकिन उसे लिखा है बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने. राष्ट्रीय परिषद की बैठक में यूं तो सब बोले लेकिन केंद्रीय मंत्री आरसीपी सिंह और राज्यसभा के डिप्टी चेयरमैन हरिवंश ने पार्टी से अलग लाइन ली. ललन सिंह का संदेश इन दोनों नेताओं के लिए ही था, ऐसा माना जा रहा है. जातीय जनगणना पर न तो आरसीपी सिंह ने अपने विचार रखे और न ही हरिवंश ने. जाहिर है कि पार्टी से इतर दोनों नेताओं का रुख न तो नीतीश कुमार को पसंद आया और न ही ललन सिंह या उपेंद्र कुशवाहा को. जातीय जनगणना पर पार्टी का रुख साफ है और अगर केंद्रीय मंत्री इस मुद्दे पर कुछ न बोल कर आंय-बांय-शांय बोलते रहें तो इससे पार्टी का नेतृत्व असहज तो होगा ही. हुआ भी ऐसा ही. फिर नीतीश कुमार में प्रधानमंत्री बनने की काबलियत का मुद्दा भी राष्ट्रीय परिषद में उठा. बातें की गईं. लेकिन इस पर भी न आरसीपी सिंह बोले न ही हरिवंश. शायद यही वजह रही कि न तो आरसीपी सिंह को बहुत तवज्जो दी गई और न ही हरिवंश को. बैठक खत्म होने के बाद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार देर तक रुके. कुछ खाया-पिया. लेकिन उनके साथ न आरसीपी सिंह दिखे न हरिवंश. आरसीपी सिंह चुपके से छोटी कार में बैठ कर फौरन निकले. हरिवंश का तो किसी ने नोटिस भी नहीं लिया. यह संकेत साफ है. दोनों नेताओं का भाजपा प्रेम उन पर भारी पड़ने वाला है. हरिवंश और आरसीपी सिंह दोनों को दो-दो बार राज्यसभा भेज चुकी है. केंद्र की सियासत में दोनों ऐसे रमे कि मूल पार्टी की बजाय भाजपा के नजदीक होते चले गए. सीएए पर राज्यसभा में आरसीपी सिंह के भाषण और कृषि कानूनों पर हरिवंश की भूमिका को देख कर इसे समझा जा सकता है. भाजपा की साथ की वजह से भले नीतीश कुमार ने खुल कर कुछ नहीं बोला था, लेकिन वे दोनों के भाजपा प्रेम से आहत हुए थे. विधानसभा चुनाव में मुसलमानों ने नीतीश कुमार से किनारा किया तो इसकी वजह सीएए पर दिया आरसीपी सिंह का भाषण ही है. जदयू के मुसलिम नेता तो खुल कर इस पर अपनी राय देते है. फिर कृषि कानूनों पर हरिवंश की भूमिका भी परेशान करना वाली रही, पार्टी के लिए. पार्टी के प्रधान महासचिव केसी त्यागी के बयानों से इसे समझा जा सकता है. जदयू को इससे बहुत नुकसान हुआ है. बिहार के मुख्यमंत्री बनने के बाद नीतीश कुमार को पहली बार भाजपा ने परेशान किया तो इसकी वजह जदयू के लोग ही रहे. 

मंत्री बनने के बाद आरसीपी सिंह बिहार आए तो जिलों में घूम रहे हैं. लेकिन उनके लिए जदयू से ज्यादा उत्साहित भाजपा है तो सवाल उठेंगे ही. उनके स्वागत में कई जगहों पर भाजपाई पार्टी का झंडा उठाए नजर आए. सवाल उठ रहा है कि आरसीपी सिंह भाजपा की पसंद क्यों बन गअ हैं. नीतीश कुमार बिहार में एनडीए के सर्वमान्य नेता हैं. वे भी किसी जिले में जाते हैं तो उनके स्वागत में शायद ही भाजपा के लोग पहुंचते हैं. इसकी जवाब खुद आरसीपी ही देते हैं. उनके बयानों से इसे समझा जा सकता है. पिछले कुछ दिनों आरसीपी सिंह ने भाजपा के पक्ष में खड़े दिखाई दिए जबकि उस दौरान नीतीश कुमार का रुख भाजपा के खिलाफ था. जातीय जनगणना पर वे और जदयू के दूसरे नेता लगातार भाजपा को घेर रहे हैं. लेकिन आरसीपी सिंह का जातीय जनगणना पर उनका रुख हैरान करने वाला है. पेगासस फोन टैपिंग मामले पर नीतीश कुमार ने विपक्षी पार्टियों के सुर में सुर मिलाते हुए जांच की मांग की थी लेकिन आरसीपी सिंह पार्टी के रुख के खिलाफ भाजपा के पक्ष में बयान देते रहे थे. 

मंत्री बनने के बाद आरसीपी सिंह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का ही गुणगान करते रहे. शपथ लेने के बाद पहली बार पत्रकारों से बात करते हुए नीतीश कुमार का जिक्र तक उन्होंने नहीं किया था. लेकिन प्रधानमंत्री को बड़प्पन, बड़ा दिल दिखाने के लिए उनका कई बार आभार जरूर जताया था. 
जातीय जनगणना जदयू के लिए बड़ा मुद्दा है. लेकिन आरसीपी सिंह लगातार इस मुद्दे को अनदेखा कर रहे हैं और अजब-गजब तरीके से तर्क देकर भाजपा प्रेम को प्रदर्शित कर रहे हैं. पार्टी लाइन से अलग वे अपना स्टैंड ले रहे हैं और जदयू को दूसरे नेता इसे अनुशासनहीनता मान रहे हैं. वैसे वह इतना जरूर कहते हैं कि यह पार्टी की मांग है. लेकिन फिर उनका रुख भाजपामय हो जाता है. अगली लाइन में ही वे भाजपा प्रेम प्रदर्शित करते हुए कहते हैं कि बिहार से लेकर केंद्र में जो सरकारें हैं. वह समावेशी विकास के जरिए उस मकसद को हासिल कर रही हैं. आरसीपी सिंह आरक्षण को भी अब कोई मुद्दा नहीं मानते. उनका मानना है कि देश में सत्तर और अस्सी के दशक में आरक्षण की जिस तरह बात होती थी. अब वह दौर खत्म हो चुका है. आरसीपी सिंह के मुताबिक जातीय जनगणना को लेकर जो लोग सवाल और राजनीति कर रहे हैं, उन्हें सात निश्चय का मॉडल अच्छे से समझना चाहिए. इस बयान से वे आरक्षण और जातीय जनगणना पर जदयू पर भी सवाल उठाते हैं और नीतीश कुमार पर भी क्योंकि दोनों मुद्दे पार्टी का कोर मुद्दा है. आरसीपी सिंह जातीय जनगणना के सवाल पर तर्क कुछ इस तरह से देते हैं जो समझ से परे है. सवाल आम का किया जाता है और वे इमली की चर्चा करते हैं. जातीय जनगणना पर वे कहते हैं कि आज समाज के हर तबके को विकास की धारा मिल रही है. केंद्र की मोदी सरकार हो या फिर बिहार की नीतीश सरकार दोनों सरकारें समावेशी विकास के मॉडल पर आगे बढ़ रही हैं. ऐसे में आरक्षण का मुद्दा भी खत्म हो गया है. यानी आरसीपी सिंह का मानना  कि बिना जातीय जनगणना के भी विकास तक के समाज के हर तबके की पहुंच है. आरसीपी सिंह ने कहा कि अनुसूचित जाति जनजाति के लिए जनगणना आज भी होती है इसका मकसद सभी जानते हैं. वे पार्टी लाइन से अलग लगातार बोल रहे हैं. भाजपा को उनकी बातें पसंद आ रहीं हैं. राष्ट्रीय परिषद की बैठक में भी अपने भाषण में उन्होंने जो भी कहा वह पार्टी के रुख के विपरीत ही कहा जा सकता है. फिर केसी त्यागी की बातों पर जिस तरह से खुल कर उन्होंने असहमति जताई, उससे भी बहुत कुछ साफ हो जाता है. लेकिन ललन सिंह ने उनका उल्लेख करते हुए उनके भाजपा प्रेम पर तंज कसा और सभी सदस्यों के सामने कहा कि आप यूपी चुनाव पर भाजपा से जल्द बात करें फाइनल करें कि सम्मानजनक समझौते पर वे राजी हैं या नहीं. ललन सिंह ने अक्तूबर तक का समय आरसीपी सिंह को देकर कड़े और तल्ख तेवर में जो कहा उससे साफ है कि पार्टी आरसीपी के रुख से नाराज है. यह नाराजगी आरसीपी सिंह को भी भारी पड़ेगी और हरिवंश को भी. क्योंकि राज्यसभा की सदस्यता अगले साल खत्म होने वाली है. जदयू दोनों को तीसरी बार उच्च सदन में भेजेगी, ऐसा अब लगता नहीं है. भाजपा अपने कोटे से राज्यसभा भेज दे, यह हो सकता है. 

 

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