क्या नीतीश और तेजस्वी साथ आने लगे हैं ?

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क्या नीतीश और तेजस्वी साथ आने लगे हैं ?

आलोक कुमार 
पटना.धीरे-धीरे मुद्धा आधारित राजनैतिक मंच पर चाचा नीतीश और भतीजे तेजस्वी साथ-साथ आने लगे हैं.बिहार विधानमंडल का मानसून सत्र हंगामेदार नहीं रहा.5 दिनों के मानसून सत्र में 8 विधेयक को पास किया गया.इस सत्र में 822 सवाल और 103 ध्यानाकर्षण प्रस्ताव पेश किया गया. 

पिछले सत्र के दौरान 23 मार्च को सदन में पुलिस प्रवेश कर 'माननीय' लोगों के साथ मार पिटायी पर विपक्षी चर्चा करवाने की मांग करते रहे.बांग्लादेशी शरणार्थी, कानून व्यवस्था,जातीय जनगणना आदि पर चर्चा की गयी.अगर अतिवाद की सियासत नहीं आई तो निश्चित तौर पर जातीय जनगणना और बिहार में वर्तमान में जो हालात हैं, उसको लेकर ऐसा तुरूप का पत्ता विपक्ष को हाथ लगा है जो बिहार से खेला होगा. यह निश्चित तौर पर तेजस्वी यादव की सियासत तय कर सकती है. जो पूरे बिहार के सामने रखी भी जा सकती है.क्योंकि चाचा की सियासत को भतीजे ने डोर की तरह बांध जो लिया है. 

इस संदर्भ में बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी ने कहा कि जाति आधारित जनगणना होनी चाहिए. अगर देश में जातीय जनगणना होती है तो जिसकी जितनी जनसंख्या रहेगी, उसे उतनी हिस्सेदारी मिलेगी.  बिहार विधानमंडल का मानसून सत्र का समापन हो गया है. अंतिम दिन पत्रकारों से बात करते हुए हम के प्रमुख जीतन राम मांझी ने कहा कि सत्र शुरू होने से पहले जिस तरह की चर्चा की जा रही थी, वैसा कुछ नहीं हुआ. सदन की कार्यवाही ठीक ढंग से चला. सदन के अंदर बहुत काम हुआ, उम्मीद है कि भविष्य में भी इसी तरह से सदन चलेगा. 

जातीय जनगणना पर HAM प्रमुख ने कहा कि 'मैं पहले से ही कह रहा हूं कि जाति आधारित जनगणना होनी चाहिए. सिर्फ SC-ST नहीं, बल्कि सभी जातियों की जनगणना होनी चाहिए. केन्द्र सरकार क्या सोच कर नहीं करवा रही है, ये वही बता सकते हैं.' 

पूर्व मुख्यमंत्री ने कहा कि जिसकी जितनी जनसंख्या रहेगी, उसे उतनी हिस्सेदारी मिलेगी. उन्होंने कहा कि जब हमारी जनसंख्या पर हिस्सा मिलना है तो जातीय जनगणना कराना ही चाहिए. जातिगत आधार पर जनगणना नहीं कराने का मतलब है कि जिसकी जनसंख्या कम है, वे हिस्सेदारी ज्यादा ले रहे हैं और जिसकी जनसंख्या ज्यादा है, उसकी हिस्सेदारी कम है.पूर्व सीएम ने कहा कि ऐसी परिस्थति में किस जाति के कितने लोग हैं, उनकी आबादी में कितने प्रतिशत हिस्सेदारी है और उन्हें कितनी भागीदारी मिलनी चाहिए. ये सब सरकार तभी तो तय कर पाएगी जब इनके आंकड़े उपलब्ध हों. उन्होंने कहा कि हर जाति की जनगणना जातीय आधार पर होनी चाहिए, सबकी जातीय जनगणना होनी चाहिए. 

यह कहा जाता है कि जब इस देश में पेड़ों, पशुओं, गाड़ियों और सभी अनुसूचित जाति व जनजाति के लोगों की गिनती हो सकती है तो भाजपा को OBC वर्ग के लोगों से क्यों इतनी घृणा है कि जनगणना में उनकी गिनती से कन्नी काटा जा रहा है?केंद्र सरकार पिछड़े वर्ग के लोगों की गिनती भी करवाए और आँकड़े सार्वजनिक भी करे!  

इस बीच विरोधी दलों के नेताओं द्वारा हस्ताक्षारित एक आवेदन पत्र को लेकर तेजस्वी यादव के नेतृत्व में एक बजे सीएम नीतीश कुमार के कक्ष में गये.पटना विधानमंडल में जहां जातिगत जनगणना को लेकर विपक्ष सदस्यों की एक टीम मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से मुलाकात की.बताया जा रहा है इस टीम में नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव सहित तेज प्रताप यादव, ललित यादव, कांग्रेस विधायक दल के नेता अजीत शर्मा और माले के विधायक महबूब आलम मौजूद थे. 

मुख्यमंत्री के नाम लिखित आवेदन पत्र में कहा गया कि समावेशी विकासात्मक कार्यों को बेहतर गति देने के लिए नीति निर्धारण एवं समाज के जो वर्ग युगों से अपेक्षित प्रगति नहीं कर पा रहे हैं उनकी जनसंख्या कितनी है इसकी जानकारी के लिए भारत सरकार के द्वारा प्रति 10 वर्षों में जनगणना की जाती है.वर्ष 2021 में जनगणना प्रस्तावित है परंतु भारत सरकार के द्वारा उक्त जनगणना में पिछड़े वर्गों एवं अति पिछड़े वर्गों की जातीय जनगणना नहीं कराये जाने की संसद में लिखित सूचना प्राप्त हुई है.यदि जातिगत जनगणना नहीं कराया जाता है तो पिछड़े/अति पिछड़े हिन्दुओं की आर्थिक व सामाजिक प्रगति का सही आकलन नहीं हो सकेगा और न ही समुचित नीति निर्धारण हो पायेगा. 

इस संबंध में देश के संपूर्ण राज्यों में संपूर्ण जातियों की जनगणना कराने के लिए राज्य के दलीय नेताओं की एक उच्चस्तरीय कमेटी माननीय प्रधानमंत्री से मिलकर अनुरोध करना उचित होगा. यदि भारत सरकार अड़ियल रवैया अपनाते हुए जातीय जनगणना नहीं कराती है तो अनुरोध है कि बिहार सरकार अपने संसाधन से बिहार राज्य में जातीय जनगणना कराये ताकि राज्य में निवासित सभी वर्गों की आर्थिक एवं सामाजिक स्थिति का सही पता चल सके एवं तदुनुसार उनकी उन्नति के लिए सरकार के द्वारा कदम उठाये जा सके. 

दानापुर विधान सभा के बाहुबली राजद विधायक रीतलाल राय ने कहा कि बहुत देखे अच्छे दिन, अब सच्चे दिन देखना हैं.एनडीए सरकार ने हमारी वर्षों की लंबित माँग जातीय जनगणना नहीं कराने की लिखित सूचना दी है. बिहार विधानसभा से हम दो बार सर्वसम्मिति से इस संबंध में प्रस्ताव पारित कर चुके है.बिहार विधान मंडल ने 18 फरवरी 2019 को और बिहार विधानसभा ने 27 फरवरी 2020 को सर्वसम्मित से यह जातीय जनगणना का प्रस्ताव पास किया था. नीतीश कुमार ने कहा कि यह प्रस्ताव केंद्र सरकार को भेजा गया था, केंद्र सरकार को इस संबंध में पुनर्विचार करना चाहिए.  

मुख्यमंत्री जी से मिलकर इस संदर्भ में उनके नेतृत्व में सर्वदलीय कमेटी का प्रधानमंत्री जी से मिलने का अनुरोध किया गया है.वंचित उपेक्षित और पिछड़े हिंदू विरोधी केंद्र सरकार अगर जातीय जनगणना नहीं कराती है तो हमारी पुरजोर माँग है कि राज्य सरकार अपने खर्चे से जातीय गणना करवाएं.तेजस्वी ने बताया कि हमने मुख्यमंत्री को कर्नाटक का उदाहरण दिया है, जहां की सरकार ने अपने खर्च पर जनगणना कराया है. सीएम ने भरोसा दिया है कि वह कर्नाटक मॉडल की जानकारी मंगाएगे, उसके बाद ही इस पर विचार किया जाएगा. 

मुख्यमंत्री जी से मिलकर इस संदर्भ में उनके नेतृत्व में सर्वदलीय कमेटी का प्रधानमंत्री जी से मिलने का अनुरोध किया गया.शुक्रवार को मुख्यमंत्री दिल्ली चले गये है.बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार दिल्ली पहुंचते ही कहा कि शनिवार को जदयू की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक होनी है. कई अहम मुद्दों पर उसमें चर्चा होगी. पार्टी के संगठन को लेकर भी उसमें बातचीत होगी. रात में सरकारी आवास पर पार्टी नेताओं के साथ बैठक कर लूंगा कि कार्यकारिणी में किन-किन विषयों पर मंथन होना चाहिए. अभी किसी भी संभावना पर विचार करना ठीक नहीं रहेगा.दिल्ली से लौटने के बाद प्रधानमंत्री को 2 अगस्त को पत्र लिखेंगे.बीजेपी को पीड़ा होने लगा है.जातीय जनगणना के बदले गरीबों का जनगणना पर जोर देने लगे हैं.

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