रफाल घोटाले से कैसे बचेंगे मोदी ?

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रफाल घोटाले से कैसे बचेंगे मोदी ?

हिसाम सिद्दीकी 
नई दिल्ली! कांग्रेस लीडर राहुल गांद्दी ने रफाल सौदे में घोटाले की बात उठाई और अपने इल्जाम पर मुसलसल कायम रहे हैं कि रफाल सौदे में घोटाला किया गया है. तब अपोजीशन का कोई भी लीडर राहुल गांद्दी के साथ खड़ा दिखाई नहीं दिया था. अब फ्रांस में इस सौदे में हुए घोटाले की जूडीशियल जांच के लिए बाकायदा एक जज को मुकर्रर किया गया है. उसकी जांच रिपोर्ट आने के बाद सिर्फ वजीर-ए-आजम नरेन्द्र मोदी ही नहीं बल्कि फ्रांस के साबिक सदर ओलांद मौजूदा सदर इमैनुअल मैक्रो और उनकी सरकार में वजीर खारजा जौं-ईवल द्रीया की भी मुश्किलों में इजाफा होने का इमकान है. फ्रांस के जज हमारे मुल्क के चीफ जस्टिस रहे रंजन गोगोई जैसे नहीं होते जो राज्य सभा की एक सीट के लिए अपना ईमान भी बेच दें. राहुल गांद्दी ने रफाल में घोटाले का मामला जोर-शोर से उठाया था. मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा तो सरकार ने कहा कि वह सौदे की तफसील अवाम के सामने नहीं ला सकती क्योकि इससे मुल्क के डिफेंस का मामला जुड़ा हुआ है. मोदी सरकार ने बंद लिफाफे में तफसील सुप्रीम कोर्ट को सौंप दी थी. उस वक्त के चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने बंद लिफाफे में मिली तफसील को पूरी तरह सच मान कर मामला बंद कर दिया था. इसके बावाजूद कि बंद लिफाफे में जिस कागज पर पूरे सौदे की तफसील दर्ज थी उसपर किसी के न तो दस्तखत थे और न ही उसके साथ कोई हलफनामा था. उसी कागज में लिखा गया था कि इस मामले में सीएजी रिपोर्ट आ चुकी है जिसपर पार्लियामेंट में भी गौर किया जा चुका है. बाद में पता चला कि उस वक्त तक सीएजी की की तो कोई रिपोर्ट आई ही नहीं थी. उस वक्त के चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने इतनी जहमत नहीं उठाई थी कि बंद लिफाफे में दिए गए कागज में दर्ज बातों की तस्दीक करा लेते. रफाल मामला भारत में तो बंद हो गया था मगर फ्रांस में सौदे में फाइनेंशियल करप्शन होने की जांच शुरू होने से भारत पर दोबारा जांच का दबाव बढ सकता है. राहुल गांद्दी ने जेपीसी से जांच कराने का मुताबला किया है. 
भारत और फ्रांस के दरम्यान हुए मुतनाजा रफ़ाल सौदे को लेकर फ्रांस में लिए गए हालिया कदम के बाद देश में फिर से इस सौदे को लेकर आजाद जांच की मांग उठ सकती है. पेरिस की वेबसाइट मेदियापार की आई एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत को 7.8 बिलियन यूरो में बेचे गए 36 लड़ाकू विमानों के मामले में मुबय्यना घोटाले और तरफदारी की जूडीशियल जांच के लिए एक जज को  मुकर्रर किया गया है. वेबसाइट के इनवेस्टिगेटिव रिपोर्टर यान फ़िलिपैं ने खुलासा किया कि 2016 के इस सौदे में इंतेहाई हस्सास जांच चौदह (14) जून को फ्रेंच पब्लिक प्रासिक्यूशन सर्विसेस- पीएनएफ की मआशी क्राइम ब्रांच के एक फैसले के बाद शुरू हुई है. यह जांच सौदे के बारे में मेदियापार के जरिए अप्रैल 2021 में शाया कई खोजी रिपोर्टों के मद्देनजर शुरू की गई है, जिसमें एक बिचौलिए का रौल भी शामिल है, जिसके खुलासे से भारत का इंफोर्समेंट डायरेक्ट्रेट (ईडी) मुबय्यना तौर पर बाखबर है, लेकिन उसने अब तक इसकी जांच करने की जहमत नहीं उठाई है. वेबसाइट के खुलासे के बाद फ्रांस के बदउनवानी मुखालिफ एनजीओ शेरपा ने बदउनवानी असर का फायदा उठाकर पेडलिंग’, ‘मनी लान्ड्रिग’, ‘जानिबदारी’ और सौदे को लेकर गैरमुनासिब टैक्स छूट का हवाला देते हुए पेरिस के ट्रीब्यूनल में शिकायत दर्ज कराई है. मेदियापार के मुताबिक पीएनएफ ने इस बात की तस्दीक की है कि इन चारों जरायम को मरकज में रखकर जांच की जाएगी. 
पीएनएफ का जांच का मतालबा करना उसके साल 2019 में लिए गए फैसले से पलटना है. उस वक्त इसकी चीफ एलियान ऊलेट ने अपने एक मुलाजिम की सलाह के खिलाफ जाते हुए बगैर किसी जांच के शेरपा की शिकायत को ख़ारिज कर दिया था. अपने फैसले को सही ठहराते हुए उन्होंने कहा था कि ऐसा ‘फ्रांस के मफाद की हिफाजत’ के लिए किया गया. फ़िलिपैं लिखते हैं, ‘अब दो साल बाद पीएनएफ के मौजूदा चीफ ज़ौं-फ्रांस्वा बोनैर ने शेरपा की शिकायत में मेदियापार की हालिया इनवेस्टिगेटिव सीरीज जोड़े जाने के बाद जांच करवाने की हिमायत की.’ दीगर पहलुओं के अलावा इस क्रिमिनल  जांच में साबिक फ्रांसीसी सदर फ्रांस्वा ओलांद, जो रफ़ाल सौदे के वक्त ओहदे पर थे, मौजूदा सदर इमैनुअल मैक्रों जो तब ओलांद के फाइनेंस मिनिस्टर थे, के साथ-साथ उस वक्त के डिफेंस मिनिस्टर ज़ौं-ईव लाद्रीयां (जो अब मैक्रों के फारेन मिनिस्टर हैं) के फैसलों पर उठे सवालों को लेकर भी जांच की जाएगी. जांच की कयादत एक आजाद मजिस्ट्रेट- एक जांच जज के जरिए की जाएगी. मेदियापार को दिए बयान में शेरपा के बानी और वकील विलियम बोर्डन और वैंसैं ब्रेनगार ने कहा कि जांच की शुरुआत जरूरी तौर पर सच्चाई को सामने लाएगी और उन लोगों की शिनाख्त करेगी, जो सरकारी घोटाले के तौर पर सामने आ रहे इस मामले के जिम्मेदार हैं.’ दासो एविएशन के जरिए हालिया इकदामात पर रद्देअमल जाहिर नहीं किया गया है, लेकिन कंपनी इससे पहले मुसलसल किसी भी गलत काम को करने की बात से इनकार करते हुए कहती रही है कि वह ‘ओईसीडी रिश्वत-मुखालिफ कन्वेंशन और कौमी कवानीन पर सख्ती से पाबंदी करती रही है.’मेदियापार ने बताया कि दासो ने कहा था, ‘फ्रांसीसी बदउनवानी-मुखालिफ एजेंसी समेत सरकारी इदारों के जरिए कई बंदिशें लगाई जाती हैं. किसी भी किस्म की खिलाफवर्जी, खासकर भारत के साथ हुए 36 रफ़ाल तय्यारों के सौदे के मामले में, की बात सामने नहीं आई है.’ 
अनिल अंबानी के रिलायंस ग्रुप, जो 36 रफ़ाल तय्यारों के सौदे में दासो का भारतीय साझेदार है, के जरिए निभाए गए मरकजी रोल को देखते हुए क्रिमिनल जांच में दोनों कंपनियों के बीच तआवुन की शक्ल की भी जांच की उम्मीद है. भारत और दासो सरकारी तौर पर 126 रफ़ाल जेट की खरीद और बनाने के लिए शर्तों पर तब तक बातचीत कर रहे थे, जब तक 10 अप्रैल 2015 को वजीर-ए-आजम नरेंद्र मोदी के जरिए 36 लड़ाकू तय्यारों की एकमुश्त खरीद के अवामी एलान में पिछले सौदे को रद्द करते हुए नए सौदे से तब्दील नहीं किया गया. उस वक्त भारत के डिफेंस मिनिस्टर मनोहर परिकर आखिर तक मोदी के फैसले से बेखबर थे, लेकिन अब ऐसा लगता है कि अनिल अंबानी को इसका अंदाज़ा था. 
मेदियापार का यह सनसनीखेज खुलासा बताता है कि दासो और रिलायंस के दरम्यान पहला मेमोरेंडम आफ अंडरस्टैंडिंग (एमओयू) असल में 26 मार्च 2015 को हुआ था. वेबसाइट की रिपोर्ट कहती है, ‘मेदियापार के जरिए देखे गए दस्तावेज दिखाते हैं कि दासो और रिलायंस के दरम्यान पहला एमओयू 26 मार्च 2015 को साइन हुआ था. यह मोदी के सौदे में तब्दीली के एलान और हिंदुस्तान एयरोनाटिक्स लिमिटेड (एचएएल) के बाहर होने से पंद्रह दिन पहले की बात है. 
इससे यह सवाल उठता है कि क्या दोनों कंपनियों को पहले से इस बारे में जानकारी दी गई थी.’ इस एमओयू में दोनों कंपनियों के दरम्यान ‘प्रोग्राम और प्रोजेक्ट मैनेजमेंट’, ‘रिसर्च और डेवलपमेंट’, ‘डिजाइन और इंजीनियरिंग’, ‘असेंबल करना और बनाना’, ‘रखरखाव’ और ‘ट्रेनिंग’ को शामिल करने के लिए ‘मुतवक्के मुश्तरका सनअत’ की इजाजत दी गई थी. हालांकि दासो अब भी 126 रफ़ाल के बुनियादी कांटै्रक्ट पर अमल के लिए एचएएल के साथ बातचीत कर रहा था, लेकिन नए एमओयू में एचएएल के साथ किसी भी जुड़ाव या हिस्सेदारी के बारे में कोई बात नहीं कही गई थी. मेदियापार ने दासो एविएशन और अनिल अंबानी की रिलायंस के दरम्यान हुए पार्टनरशिप के समझौते, जिसके तहत 2017 में नागपुर के पास एक सनअती कारखाने की तामीर के लिए दासो रिलायंस एयरोस्पेस लिमिटेड (डीआरएएल) नाम की एक साझेदार कंपनी बनाई थी, इसके सिलसिले में भी नई मालूमात का खुलासा किया है. फ्रांसीसी वेबसाइट के जरिए हासिल किया गया खुफिया दस्तावेज दिखाते हैं कि दासो को सियासी वजूह के अलावा रिलायंस के साथ किसी भी तरह की साझेदारी करने में कोई दिलचस्पी नहीं थी और रिलायंस से इनकी खास उम्मीद ‘भारत सरकार के साथ प्रोग्रामों और खिदमात की मार्केटिंग की थी.’ ‘दस्तावेजों से मालूम होता है कि दासो ने रिलायंस के साथ हुए सौदे के अपने ज्वाइंट वेंचर के लिए काफी आसान माली शरायत रखी थी. आम तौर पर, मुश्तरका मिलकियत वाली सब्सिडरी में साझेदार बराबर रकम देते हैं, लेकिन डीआरएएल के साथ ऐसा नहीं था. ‘दोनों साझेदारों में इस सब्सिडरी में 169 मिलियन यूरो की सरमायाकारी पर एक राय बनी थी. इसमें से दासो, जिसका डीआरएएल में 49 फीसद हिस्सा है, ने 150 मिलियन यूरो देने की बात कही थी, जो कुल रकम का 94 फीसदþ है, जबकि रिलायंस को बचे हुए दस मिलियन यूरो देने थे.’ ‘इसका मतलब यह हुआ कि रिलायंस को निस्बतन बहुत मामूली रकम के बदले में मुश्तरका सनअत में 51 फीसद हिस्सेदारी दी गई थी.’ ‘जबकि रिलायंस ने न तो रकम लगायी और न ही मुश्तरका फैक्ट्री के लिए कोई अहम जानकारी दी, इसने जो दिया वह था सियासी असर. 
मेदियापार को मिले रिलायंस और दासो के बीच हुए करार से मुताल्लिक दस्तावेज बताते हैं कि अनिल अंबानी ग्रुप को ‘भारत सरकार के प्रोग्रामों और खिदमात की मार्केटिंग’ का जिम्मा सौंपा गया था.’ दासो और रिलायंस के दरम्यान सौदे की शरायत के सिलसिले में ताजा खुलासों से वह सवाल फिर से उठेंगे, जो फ्रांस्वा ओलांद के 2018 के एक इंटरव्यू के बाद उठे थे, जिसमें उन्होंने कहा था कि दासो के साझेदार की शक्ल में रिलायंस का इंतखाब भारत सरकार के दबाव में था और फ्रांस के पास ‘कोई मुतबादिल’ नहीं था. जहां मोदी सरकार, रिलायंस और दासो ने ओलांद की कही बातों से इंकार कर दिया था. 
36 रफ़ाल तय्यारों की बिक्री को आखिरी शक्ल देने वाले इंटर-सरकारी समझौते पर सितंबर 2016 में दस्तखत हुए थे. इसके दो महीने बाद 28 नवंबर 2016 को दासो और रिलायंस ने एक शेयर समझौता किया, जिसके जरिये मुस्तकबिल की मुश्तरका कंपनी को लेकर उनके रिश्तों का खाका खींचा गया. लेकिन मेदियापार की रिपोर्ट में कहा गया है कि इसकी माली तफसील इतनी हस्सास है कि कान्ट्रैक्ट में इसका कहीं जिक्र तक नहीं है. इसके बजाय एक पोशीदा साइड लेटर में इसकी मालूमात थी, जिस पर उसी दिन दस्तखत हुए थे. ‘यह वह साइड लेटर है, जिसमें दासो के जरिए रिलायंस को तोहफे में दी गई रकम शामिल है.’ रिपोर्ट में कहा गया, ‘तकरीबन बराबर की साझेदारी की शक्ल में दोनों कंपनियों ने मुश्तरका कम्पनी की पूंजी के लिए एक करोड़ यूरो फराहम कराने की पाबंदी जाहिर की थी. इस वक्त तक सब व्यापार के तौर तरीकों के मुताबिक ही हुआ था. लेकिन दासो ने शेयर प्रीमियम देने का भी वादा किया, जो दरअसल शेयरों की कीमत पर एक बेशी रकम होती है. यह प्रीमियम 43 मिलियन यूरो का है, साथ में कर्ज की तफसील भी है, जिसमें कहा गया है कि 106 मिलियन यूरो से ज्यादा नहीं.’ रिपोर्ट में कहा गया, ‘इसका मतलब है कि दासो ने कुल सरमायाकारी रकम 169 मिलियन यूरो में से 159 मिलियन यूरो की रकम फराहम कराने की पाबंदी जताई थी, जो कुल रकम का 94 फीसद है.जदीद मरकज़

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