बज्जू भाई अब अपनी दुनिया मे मुहावरा बन चुके हैं

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बज्जू भाई अब अपनी दुनिया मे मुहावरा बन चुके हैं

चंचल  
आज एक जुलाई है .बज्जू भाई का जन्मदिन .  बज्जू भाई अब अपनी दुनिया मे मुहावरा बन चुके हैं , रंगमंच , फ़िल्म , या अदब का कोई भी कोना हो बज्जू भाई की मौजूदगी खुद में एक ताजा हवा का झोंका है .बज्जू भाई,  रामगोपाल बजाज हैं .ये बजाज साहब  राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के निदेशक रहे , रंगमंडल के सदर रहे , अनेक अलंकारों से सुशोभित हैं .नित नए प्रयोग , विधाओं की विविधता और उससे उपजनेवाले  सम्भावित  
अनर्थ ने बज्जू भाई को कभी दुविधा में नही खड़ा किया बल्कि वे बे हिचक जोखिम लेते रहे .रंगमंच की दुनिया मे बज्जू भाई की शख्सियत इस तरह के अनेक कारणों से कत्तई अलहदा दिखते हैं .उतार चढ़ाव की यह यात्रा आज उस पड़ाव पर आ चुकी है जब बज्जू भाई एक मुहावरा बन चुके हैं . 
    81 / 82  की बात होगी .बज्जू भाई दिल्ली आ गए .हम बंगाली मार्केट के ठीक बगल दस कदम की दूरी पर महावत खान रॉड पर रह रहे थे .बज्जू भाई बंगाली मार्केट की रेलवे कॉलोनी में ठीक नाथू स्वीट के पीछे गली में रहते थे .बज्जू भाई बादशाह मिजाज के हैं .खीसे में कुछ हो या न हो इसका अक्स  चेहरे पर कत्तई नही उभरेगा .हमारी आदत थी , अल सुबह उठे और सीधे नाथू में जाकर बैठ गए .एक एक कर लोग आते रहते चाय कटती रहती .रंगमंच , फ़िल्म , संगीत ,साहित्य , चित्रकार इन सब का अड्डा रहा नाथू .नाथू स्वीट की खूबी रही - आज पैसे नही है .काउंटर मुस्कुरा देता - कोई बात नही .कभी नाथू की टेबल पर हाथ मार कर देखिये - गाठिया दंपत्ति . दूर से ही आते दिख जाते , बैरे मुस्कुरा देते - गाठिया आ रहा है .बैग टेबुल पर रखते ही आवाज उठती - दो चाय एक गाठिया .ये रहते रंगमंच का बेहतरीन सितारा  ओम शिवपुरी और उनकी पत्नी सुधा शिवपुरी जी .यूँ ही रंगमंच से उखड़ कर फ़िल्म में नही गए .नाटक ताली का उत्साह तो दे सकता है लेकिन  तिजोरी में बंद रोटी का ताला नही खोल सकता .रंगमंच से निकल कर फिल्मों में गए सत्तर फीसद कलाकार शौकिया नही गए हैं , जिंदगी का जद्दोजहद सुलझाने की मजबूरी में गए हैं .आज जब हम इन्हें दौलत से खेलते देखते हैं और इनके मुस्कुराते चेहरे से कल्पना का बिम्ब बनाते हैं तो भूल जाते हैं इस चेहरे के पीछे कुछ और भी तो है .बहरहाल संजीदा होने का वक्त नही है .बज्जू भाई का जन्मदिन है .बज्जू भाई आज फिल्मों में हैं . दो कदम  पीछे चलिए नेपथ्य में -  
  हमको भी अच्छा नही लग रहा , बज्जू भाई ! नही है ओम पुरी .नही तो जम कर ठहाका लगता .हम क्या करें जब  भी तसव्वुर में आप आते है आपकी  'यह' दास्तां आगे आ जाती है . 
   - ओम भाई ! एक टोस्ट बटर , एक काफी , आपको जो मंगाना हो आप अपना बता दीजिए . 
 - पैसे कौन देगा ?  
 - हॉलीवुड , बॉलीवुड की एक अजीम शख्सियत जनाब ओमपुरी . 
  - में नही देता  
  - आज हम  'सारिका ' में लिखने जा रहे हैं दो ऐक्टर एक कबाड़ी . 
   हम हंसते .मिल कर .ओम मुस्कुराते - बज्जू भाई भी गजब के जीवट वाले हैं .बता ही दिए .तय था इस बात को गुप्त रखा जाएगा .कुंदन ! दो काफी दे दो . 
सारिका में लिख चुका हूं आज फिर .बज्जू भाई इस याद पट खूब हंसते हैं - पुदनी के !  
   संक्षेप में कथा ये है -  
 बज्जू भाई और ओम पुरी दोनो दिल्ली के गोल मार्केट में रहते थे .पहले तल पर .खुशबुओं के दिन थे लेकिन कड़की का झंझावात भी था .पैसे दोनो जन के पास नही था .गोल बाजार से मंडी हाउस पहुचना था .दोनो जन उधेड़ बुन में लगे थे - कैसे हो इंतजाम .इतने में नीचे से कबाड़ी की आवाज आई .आइडिया मिल गया .ओम पुरी ने सुझाया कबाड़ बेचा जाय .कबाड़ी को ऊपर बुलाया गया .सारी खाली बोतलें , पुराने अखबार वगैरह तौलाये गए .अस्सी रुपये का कबाड़ बिका .पैसे की गारंटी होते ही बज्जू भाई बाथरूम की ओर चले .तैयार होने .कबाड़ी वाले ने सौ का नोट निकाला  
        - साब ! अस्सी ले लीजिए बीस दे दीजिए .  
        - यहां भी सब सौ सौ के नोट हैं भाई .एक काम करो नीचे मार्केट से चेंज करा लो . और सुनो जब नीचे जा ही रहे  हो तो एक पैकेट ब्रेड , एक बड़ी टिक्की मक्खन और चार अंडे लेते आना , सौ का चेंज भी हो जाएगा .' कबाड़ी ने मासूमियत से पूछा - साब ! बोरा लेते जांय ? हाँ  हां लेते जाओ .और कबाड़ी बोरा समेत नीचे उतर गया . 
   बज्जू भाई तैयार होकर बाहर आ गए , अब ओम पुरी तैयार होने गए , बज्जू भाई को बताते हुए की कबाड़ी अभी ये सामान के साथ फुटकर भी लेकर आएगा .कुछ देर बज्जू भाई इंतजार किये .फिर ओम भी तैयार होकर आए .दोनो ने मिल कर इंतजार किया .खिड़की से झांका .अभी तक यानी 1 जुलाई 2021 तक कबाड़ी नही लौटा है .आएगा ससुरा चलो जन्मदिन मनाएं  
    जन्मदिन मुबारक  हो बज्जू भाई

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