पंकज चतुर्वेदी
गाज़ियाबाद को दिल्ली से उत्तर प्रदेश का प्रवेश द्वार कहा जाता है, गाज़ियाबाद की हिंडन पार के इलाकों में अधिकाँश लोग दिल्ली में नोकरी या व्यापार करते हैं और आवास उनका इस तरफ है , वसुंधरा, वैशाली, कौशाम्बी, इंदिरापुरम, राजनगर एक्सटेंशन , शालीमार गार्डन , राजेन्द्र नगर .कोई अठारह लाख आबादी होगी .
जिले में कर्मठता से काम करने वाले कलेक्टर अजय शंकर पाण्डेय व् उनका पूरा परिवार संक्रमित, एसएसपी भी, बहुत तन्मयता से काम करने वाले सीएमओ डॉ गुप्ता भी संक्रमित -.इस पूरे इलाके का चिकित्सा तन्त्र जिस निजी अस्पतालों के हाथों हाँ वहां पहलेसे बिस्तरों की कमी रही है -.कल 45 साल की सीमा त्यागी को ले कर उनका परिवार 12 अस्पतालों में गया लेकिन कहीं इलाज नहीं मिला , इंदिरापुरम गुरूद्वारे में उन्हें निशुल्क ऑक्सीजन भी दी गयी, ब्काचाया नहीं जा सका .
यहाँ अंतिम संस्कार के लिए कम से कम दस घंटे में नम्बर आ रहा है, यहाँ आँख चुकी तो कुत्ते लाश के साथ छेड़छाड़ कर देते हैं , सारा प्रशासन बस आंकड़े कम कर दिखाने में लगा हैं . कल ही पंचायत ड्यटी कर लौटे सिपाही पुष्पेन्द्र की भी मौत हुयी . अकेले एक जिले में 225 पुलिस वाले संक्रमित हैं और उनके परिवार वालों की संख्या पञ्च सौ से पार है .
सारा उत्तर प्रदेश सरकारी लापरवाही , उजड्डता, सरकारी गुंडई और शून्य- प्रशासन का शिकार है .पंचायत चुनाव न केवल सरकारी कर्मचारियों के लिए मौत का रवन्ना सिद्ध हो रहे हैं बल्कि गाँव में संक्रमण का कारक बन रहा हैं .१३५ तो शिक्षक मारे जा चुके हैं .कई शिक्षक तो ऐसे जिनकी नियुक्ति हुयी और चुनाव में ड्यूटी लगा गयी .पहला वेतन तक नहीं मिला और मौत हो गयी .
कहा गया कि कोर्ट के आदेश पर चुनाव हुए- जब लॉक डाउन के हाई कोर्ट के आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील को जाने के लिए राज्य सरकार को जल्दी थी फिर इस मामले में क्यों नहीं गये ?
यहाँ लाश का फोटो दो. मदद का सन्देश दो , प्रतिरोध व्यक्त करो .पुलिस को आगे किया जा रहा है .यही नहीं सरकार के भक्त किस्म के लोग इनबॉक्स में आ कर गालियाँ देते हैं केवल इस बात से खफा हो कर कि आप लोगों की मदद करने वालों की प्रशंसा कर रहे हैं -.
पुलिस का सांप्रदायिक चेहरा, स्वविवेक का अभाव और महज लाठी चलाने या मुकदमा दर्ज कर लोगों को दबाने की निरंकुश प्रापर्टी ने राज्य की हालत खराब कर दी है- सत्ताधारी दल के कई सांसद और विधायक इस अव्यवस्था पर अपना रोष जता चुके हैं .
कोविड की पहली लहर के समय हमने आदित्यनाथ की मेहनत की तारीफ़ की थी लेकिन इस बार शुरूआती समय में वे केवल बंगाल में सत्ता लूटने के खेल में लिप्त रहे, फिर खुद बीमार हो गए.अब वे केवल चापलूस, अधूरी सूचना देने वाले अफसरों के भरोसे बैठे हैं .
उत्तर प्रदेश में लाखों लोग धर्म- सम्प्रदाय से परे लोगों की मदद को तैयार हैं - यहाँ भवन और संसाधनों की कमी नहीं हैं - जरूरत है कि प्रशासन के क्रूर और कुचलने वाले चेहरे को परे रख कर संवेदनशील, पहल की .सरकारी मशीनरी और नागरिक समाज को जोड़ने की .दुर्भाग्य है कि यहाँ प्रशासन यदा कदा जब नागरिक प्रशासन के साथ मीटिंग करता है तो केवल संघ से जुड़े लोगों के संगठनों की , जो इन दिनों घर से नहीं निकल रहे . खासकर मुसलामानों के मन में प्रशासन को ले कर डर है , जबकि रमजान के अकारण वे लोग बड़ी संख्या में सहयोग को राजी हैं .
आने वाले दिन और कठिन हैं .लोगों को कुचलने, भयभीत करने की शासन निति से आगे चल कर जन सहयोग लें उत्तर प्रदेश को बचाएं
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