नयी दिल्ली.देश में कोई भी वयस्क अपने मन मुताबिक धर्म को अपना सकता है और उसे ऐसा करने की पूरी आजादी है. धर्मातरण पर रोक लगाने की मांग वाली याचिका को खारिज करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने यह बात कही है.अधिवक्ता और बीजेपी लीडर अश्विनी उपाध्याय ने अपनी अर्जी में शीर्ष अदालत से काला जादू, अंधविश्वास और धोखाधड़ी से धर्मांतरण कराने पर बैन लगाने की मांग की थी.अदालत ने इस याचिका को खारिज कर दिया और उपाध्यय को फटकार भी लगाई.कोर्ट ने कहा, '18 साल से अधिक आयु के व्यक्ति को धर्म चुनने से रोकने की हम कोई वजह नहीं मानते.' इसके साथ ही अदालत ने कहा कि यह पीआईएल पब्लिसिटी इंटरेस्ट लिटिगेशन जैसी हो गई है, जिसका मकसद लोकप्रियता हासिल करना है.
देश में जबरन धर्मांतरण, काला जादू के मामलों का उदाहरण देते हुए अश्विनी उपाध्याय ने यह मांग की थी.यही नहीं उन्होंने 1995 के सरला मुद्गल केस का भी जिक्र किया, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को धर्मांतरण रोधी कानून लाने पर विचार करने को कहा था. सरला मुद्गल केस में सुप्रीम कोर्ट के उद्धरण का उपाध्याय ने जिक्र किया.इस फैसले में शीर्ष अदालत ने कहा था, ‘इस कानून में यह प्रावधान किया जा सकता है कि जो भी व्यक्ति अपना धर्म बदलता है, वह पहली पत्नी को तलाक दिए बिना दूसरा विवाह नहीं कर सकता.यह प्रावधान सभी लोगों पर लागू होना चाहिए, भले ही वे हिंदू, मुस्लिम, ईसाई, सिख, जैन या बौद्ध कोई भी हों. इसके अलावा मेंटनेंस और उत्तराधिकार को लेकर भी कानून बनाया जाना चाहिए.’
उच्चतम न्यायालय ने 9 अप्रैल को कहा कि लोग अपने धर्म का चयन करने के लिए स्वतंत्र हैं और उसे ऐसा करने की पूरी आजादी है. धर्मातरण पर रोक लगाने की मांग वाली याचिका को खारिज करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने यह बात कही है.अधिवक्ता और बीजेपी लीडर अश्विनी उपाध्याय ने अपनी अर्जी में शीर्ष अदालत से काला जादू, अंधविश्वास और धोखाधड़ी से धर्मांतरण कराने पर बैन लगाने की मांग की थी।
न्यायमूर्ति रोहिंटन एफ. नरीमन के नेतृत्व वाली बेंच ने कहा कि लोगों को धर्म के प्रचार, अभ्यास और प्रचार के लिए संविधान के तहत एक अधिकार है. उन्होंने इस याचिका को खारिज कर दिया और उपाध्यय को फटकार भी लगाई. कोर्ट ने कहा, ʺ18 साल से अधिक आयु के व्यक्ति को धर्म चुनने से रोकने की हम कोई वजह नहीं मानते.ʺ इसके साथ ही अदालत ने कहा कि यह पब्लिसिटी इंटरेस्ट लिटिगेशन (पीआईएल) जैसी हो गई है, जिसका मकसद लोकप्रियता हासिल करना है.
शीर्ष अदालत ने संविधान का जिक्र करते हुए कहा कि अनुच्छेद 25 में प्रचार की बात कही गई है, जो धर्म की आजादी देता है.सुप्रीम कोर्ट की ओर से सुनवाई से इनकार के बाद उपाध्याय ने अपनी अर्जी को वापस ले लिया. उपाध्याय का कहना है कि वह इस संबंध में कानून मंत्रालय और विधि आयोग के समक्ष अपनी बात रखेंगे.अधिवक्ता ने अपनी अर्जी में सुप्रीम कोर्ट से मांग की थी कि वह केंद्र और राज्य सरकारों को अनुसूचित जाति/जनजाति के सामूहिक धर्मांतरण को रोकने के लिए आदेश जारी करे.
इसके अलावा, याचिका में कहा गया है कि अनुच्छेद 46 के तहत संघीय और राज्य सरकार अनुसूचित जाति/जनजाति के सामाजिक अन्याय और शोषण के अन्य रूपों से बचाने के लिए बाध्य है.याचिका में मांग की गई थी कि धर्मांतरण विरोधी कानूनों के पालन के लिए एक कमिटी के गठन का आदेश दिया जाना चाहिए, जिसका काम धोखाधड़ी से धर्मांतरण के मामलों की निगरानी करना होगा.
इस संदर्भ में पटना महाधर्मप्रांत के प्रवक्ता अमल राज ने 'जनादेश' से बातचीत में कहा कि न्यायमूर्ति रोहिंटन एफ. नरीमन के नेतृत्व वाली बेंच ने जो कहा है कि लोगों को धर्म के प्रचार, अभ्यास और प्रचार के लिए संविधान के तहत एक अधिकार है.उसे बरकरार रखा है, जो स्वागतयुक्त है.उन्होंने कहा कि सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि 18 साल के बाद हर कोई अपने धर्म का चयन करने के लिए स्वतंत्र है.बहुत अच्छा फैसला है. सर्वोच्च न्यायालय ने यह भी कहा कि किसी की पसंद को रोकने के लिए मैं कौन हूं जो एक प्रमुख विचार है.
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