चंचल
राहुल गांधी की सोच , जॉर्ज का जिगर और बीजू की कारीगरी इन तीनो का मिश्रण हो जाय तो यकीनन कई बड़ी दिखनेवाली समास्याएँ पल भर में समाप्त हो जायँ , मसलन हिंसा का विस्तार . वह किसी भी रूप में हो - माओ (?) वादी , मजहबी दहशतगर्दी , आवारा भीड़ की गलतख़्याली वगैरह , जो कुशिक्षा , कुपोषण , और कुडगर के चलते विस्तार पा चुकी है और दिनों रात फैलती जा रही है . यह भारत की ही नही , समूचे भारतीय उपमहाद्वीप का सबसे बड़ा और हैबतनाक मसायल बन चुका है .
ऊपर हमने तीन नाम दिए हैं . एक RG अभी आपके बीच हैं , बोल बतिया रहे हैं आपसे संवाद में हैं . दो दूसरे नाम माजी में जा चुके हैं लेकिन उनके कारनामे अभी भी सुर्ख है , बस उसपर से धूल झाड़ कर देखने की जरूरत है .
बहुत कम लोंगो को मालूम होगा कि राजनीति में राहुल गांधी के सक्रिय होने के साथ साथ , उनमे सियासत की सोच का क्रमिक विकास बहुत सलीके से हुआ है . राहुल गांधी जब सक्रिय होते हैं , उस समय केंद्र में मनमोहन की सरकार है और कश्मीर उग्रवाद चरम पर . राहुल गांधी की एक अंदरूनी टीम है, जिसमे सियासत से दूर खड़े कई ऐसे नाम हैं जो समाज के मसायल के हल पर संजीदा हैं . उस टीम के साथ बैठ कर राहुल गांधी ने बहुत ठोस काम किया जिसका फल दिखा वहां के लोकल चुनाव में कश्मीरी युवकों की भागीदारी से और उनकी बेरोजगारी को रोजगार देने की खुली डगर से . इसका प्रचार प्रसार कत्तई नही हुआ . आज दक्षिण में या पूर्वोत्तर राज्यों में जिस तरह राहुल संवाद चला रहे हैं और जो बोल रहे हैं , वह सब उसी कश्मीर के हल के साये में है . यानी भाषा और कर्म के बीच की खाई को पटना . आज की राजनीति में यही सबसे बड़ा मर्ज है .
जार्ज ( फर्नांडिस ) का एक हिस्सा बहुत कम लोंगो को मालूम होगा , बहुत 'छोटा' है पर है दमदार . वह है - खौफ से दूरी . महात्मा गांधी के बाद जार्ज सियासत में दूसरे शख्स है जिन्हें मौत से कत्तई डर नही था . वह एक वाहिद शख्स था जो मौत के कुंए में भी उतरने को तैयार रहता था . वह नक्सलवादियों से बेहिचक उसी तरह मिलता बतियाता था ,जैसे नागा विद्रोहियों या बोडो आंदोलनकारियों से कश्मीर के दहशतगर्दी के अड्डों पर बेखौफ घुसने के किस्से आम हैं . आज सियासत में बेखौफ नेता होना अजूबा बन चुका है . इसके पलट किसी भी छुटभैये को देखिए बगैर बन्दूक के एक भी कदम नही उठता .
मसायल को हल कर , विकल्प खड़ा करने का हुनर बीजू पटनायक के खून में था . जांबाज पायलट अपनी जान जोखिम में डाल कर , पंडित नेहरू के निवेदन पर भारीय सैनिकों की टुकड़ी लेकर कश्मीर पहुंचता है , उन्हें कश्मीर में क्या करना है इसका भी ब्लू प्रिंट देता है , पाकिस्तान की कपटी सेना जो कबीलाई खाल ओढ़े कश्मीर पर हमला कर रही थी ,उसे रोकने में शेख अब्दुल्ला और बीजू पटनायक दोनो ही हीरो बनते हैं . अनेक वाकयात हैं पंडित नेहरू के दोस्त सुकर्णो को उनके देश से भगा कर भारत लाना , उनके ,उनके परिवार की हिफाजत ही नही कर रहे थे , दो अहम मुल्कों के मुस्तकबिल को भी मजबूत कर रहे थे बीजू पटनायक . सुकर्णों की बेटी का नाम ' मेघना ' बीजू का दिया हुआ है . क्या अब ये सांचे बनने बन्द हो गए हैं ?
हम मुतमइन हैं राष्ट्र जब भी अपने आंतरिक गुलामी में जाता है ,उसमे उसी गति से आजादी के बीज जमने शुरू होते हैं . आज हम जिस घोर अंधेरे में आ गिरे हैं कल की रोशनी उतनी ही मोहक होगी .चलिए नई पीढ़ी गढ़ी जाए .
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