महादेवी वर्मा, मृणाल सेन और एक बांग्ला फिल्म

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महादेवी वर्मा, मृणाल सेन और एक बांग्ला फिल्म

जयनारायण प्रसाद 
 मृणाल सेन की फिल्मों के बारे में सोचना जितना सहज है, उनकी फिल्मों पर टिप्पणी करना उतना ही जटिल है.मृणाल सेन की ऐसी ही एक बांग्ला फिल्म है 'नील आकाशेर नीचे'.यह मृणाल सेन की दूसरी फिल्म है, जो बनीं तो बांग्ला भाषा में, लेकिन हिंदी की जानी-मानी कवयित्री महादेवी वर्मा की एक छोटी-सी कथा पर आधारित है‌.इस हिंदी कहानी का नाम है 'चीनी फेरीवाला'. 
 'नील आकाशेर नीचे' का हिंदी में मतलब है नीले आसमान के नीचे.'नील आकाशेर नीचे' कोलकाता में 20 फरवरी, 1958 को रिलीज हुई थीं.तब श्वेत-श्याम फिल्मों का जमाना था.जाहिर है, यह भी श्वेत-श्याम फिल्म है.मृणाल सेन बहुत पढ़ाकू थे.छात्र तो वे साइंस के थे, लेकिन भारतीय और विदेशी साहित्य में उनकी दिलचस्पी बेहिसाब थी.सिनेमा भी खूब देखते थे. 
सिनेमा की दुनिया में पूरी तरह उतरने से पहले मृणाल सेन उत्तर प्रदेश के कानपुर शहर में मेडिकल रिप्रेजेंटेटिव थे.उसी समय कवयित्री महादेवी वर्मा की इस कहानी से वे परिचित हुए.परिचित मतलब एक दोस्त ने महादेवी वर्मा की 'चीनी फेरीवाला' शीर्षक कहानी उन्हें पढ़कर सुनाई थी.तभी से यह कहानी उनका पीछा कर रही थीं. 
 मृणाल सेन ने शायद तभी मन बना लिया था कि एक दिन इस कथा पर वे फिल्म बनाएंगे.फिर, जब 1957 में इस फिल्म के लिए वे निर्माता ढूंढने लगे, तो आखिर में संगीतकार हेमंत मुखर्जी इसमें पैसा लगाने के लिए तैयार हुए.कई दौर की बातचीत के बाद हेमंत मुखर्जी और उनकी गायिका पत्नी बेला मुखर्जी राजी हुईं.उसके बाद 'हेमंत-बेला प्रोडक्शंस' नामक एक फिल्म कंपनी बनी.फिर, 'नील आकाशेर नीचे' का निर्माण शुरू हुआ.हेमंत और बेला मुखर्जी की दो संतान हैं.बेटा जयंत मुखर्जी और बेटी रानू मुखर्जी.रानू ने 1960 के दौर में संगीत की दुनिया में काफी नाम कमाया था.बेटा जयंत मुखर्जी की शादी अभिनेत्री मौसमी चटर्जी से हुई है.जयंत रवींद्र ‌संगीत के गायक भी रहे हैं और फिल्म निर्माता हैं. 
 बहरहाल, लेखिका महादेवी वर्मा की यह कहानी 'चीनी फेरीवाला' मूलतः एक ऐसी कथा है, जिसमें साम्राज्यवाद का विरोध है.इस कहानी में वांग लू नामक एक अप्रवासी चीनी फेरीवाला है, जो 1930 के आसपास कलकत्ता में फेरी का काम करता था.कहते हैं कि उसका एक चीनी दोस्त उसे अफीम के गोरखधंधे में लाना चाहता था, लेकिन अपनी मेहनत और ईमानदारी से वह डिगा नहीं.कोलकाता में फेरी करते-करते उसकी मुलाकात वासंती नामक एक महिला से हुई, जो उस समय साम्राज्यवाद विरोधी आंदोलन से जुड़ी हुई थी. 
 
 कालांतर में दोनों में बहन-भाई का रिश्ता बन जाता है. 

 लेकिन, वासंती आजादी की लड़ाई के लिए होने वाले आंदोलनों से जुड़ी रहती है.एक दिन वह जेल भी चली जाती है.दोनों में संबंध के कारण वांग लू भी शक के घेरे में आ जाता है.ब्रिटिश साम्राज्यवाद के खिलाफ हिंदुस्तान में चलने वाले आंदोलनों के प्रति यह चीनी फेरीवाला सहानुभूति भी रखने लगा था.लेकिन, किसी तरह बच-बचाकर आखिर में 1931 में वांग लू अपने देश चीन लौट जाता है.फिर, वह अपने देश में जाकर साम्राज्यवाद विरोधी आंदोलनों में जुट जाता है.उस समय जापान और चीन के बीच संघर्ष भी चल रहा था.वांग लू नामक इस चीनी फेरीवाले की कथा बस इतनी-सी है.छोटी-सी, लेकिन मारक ! एक बार पढ़ेंगे, तो जेहन में हमेशा तरोताजा बनी रहेगी.अच्छी कहानी पर बनीं बेहतरीन फिल्में हर पीढ़ी पर असर डालती हैं.ऐसा इस देश के जीनियस फिल्मकार सत्यजित राय भी मानते थे.दुर्भाग्य से अब यह 'शायद' में तब्दील होता जा रहा है ! 
 133 मिनट की यह ब्लैक एंड व्हाइट फिल्म जब रिलीज हुई, तो मृणाल सेन अचानक चर्चा में आ गए.इसे देखने के लिए लोगों की भीड़ लग गई.कुछ ही हफ्तों के बाद मृणाल सेन की इस बांग्ला फिल्म 'नील आकाशेर नीचे' पर प्रतिबंध लग गया. 
 बहुत कम लोगों को मालूम होगा मृणाल सेन की बांग्ला फिल्म 'नील आकाशेर नीचे' भारत की वह पहली फिल्म है, जिस पर प्रतिबंध लगा था.हालांकि, यह प्रतिबंध थोड़े समय के लिए था.बुद्धिजीवियों के हो-हल्ले के दो महीने के बाद ही इस फिल्म पर से प्रतिबंध हटा लिया गया.लेकिन, बंदिश की वजह से इस फिल्म की मांग बढ़ गई थी और कोलकाता और पूरे देश में मृणाल सेन एक जाना-पहचाना नाम बन गया था.इसे कहते हैं साहित्य और सिनेमा की ताकत ! बेहतरीन साहित्य पर जब 'कायदे का सिनेमा' बनता है, तो सत्ता भी सिहरने लगती है.हिंदी भाषा की कहानी, फिल्म बनी बांग्ला जुबान में और पूरी दुनिया उसके मर्म को जानने-समझने लगी.सुना है, कहीं आपने ! 
 'नील आकाशेर नीचे' की पटकथा मृणाल सेन और गीतकार गौरीप्रसन्न मजुमदार ने मिलकर लिखी थी.इस फिल्म में गीत गौरीप्रसन्न मजुमदार ने ही लिखे थे.संगीतकार थे हेमंत मुखर्जी.निर्देशक की कमान मृणाल सेन के जिम्मे थी.शैलजा चटर्जी की फोटोग्राफी अव्वल दर्जे की थी.अब भी इसके एक-एक दृश्य आंखों के सामने तैरते-से दिखते हैं. 
हेमंत मुखर्जी की पत्नी बेला मुखर्जी भी तब बड़ी गायिका थीं और लेखराज भाखरी की फिल्म 'सहारा' में गीत गाकर हिंदी सिनेमा में स्थापित हो चुकी थीं.'सहारा' वर्ष 1958 की फिल्म है, जिसमें मीना कुमारी, मनोज कुमार और लीला मिश्रा की यादगार भूमिका थी.तब तक हेमंत मुखर्जी की हिंदी सिनेमा में पहचान बन चुकी थी.गायक और संगीतकार दोनों रूपों में. 
  दो दफा राष्ट्रपति पुरस्कार पाए हेमंत मुखर्जी बीस साल बाद, कोहरा, राहगीर, खामोशी समेत अनेक हिंदी-बांग्ला फिल्मों के कामयाब संगीतकार रहे हैं.उन्होंने वर्ष 1972 में इंडो-अमेरिकन बैनर तले बनीं अंग्रेजी फिल्म 'सिद्धार्थ' में भी संगीत दिया था.हरमन हेश के इसी नाम के अंग्रेजी उपन्यास पर बनीं इस फिल्म में शशि कपूर, सिमी ग्रेवाल और रोमेश शर्मा ने अभिनय किया था.करनाड रुक्स ने इस फिल्म का निर्देशन किया था. 
 फिल्म 'नील आकाशेर नीचे' में काली बनर्जी, मंजू डे, स्मृति विश्वास और विकास राय ने अभिनय किया था.बांग्ला की मशहूर फिल्मों 'दादार कीर्ति' और 'गुरु दक्षिणा' जैसी फिल्मों में अमर किरदार निभाने वाले काली बनर्जी ने वर्ष 1972 में ऋषिकेश मुखर्जी की हिंदी फिल्म 'बावर्ची' में भी अभिनय किया है.उनके जैसा अभिनय का 'तोड़' अब बांग्ला सिनेमा में नदारद-सा है.ऐसे थे अभिनेता काली बनर्जी !  
 काली बनर्जी जन्मे थे कोलकाता में जरूर, लेकिन वर्ष 1993 में वे लखनऊ में गुजरे.एक हिंदी सिनेमा में अभिनय के सिलसिले में उनका वहां जाना हुआ था. 
 यादों के पन्ने पलटता हूं तो कई चीजें याद आती हैं.'नील आकाशेर नीचे' की‌ एक नायिका हैं स्मृति विश्वास, जो उस दौर में बांग्ला और हिंदी दोनों फिल्मों में अभिनय किया करती थीं.बाद में उस जमाने के सबसे पढ़े-लिखे फिल्मकार एसडी‌ नारंग से विवाह किया.एसडी नारंग अर्थशास्त्र में पीएचडी थे और पाकिस्तान के लायलपुर में जन्मे थे.लायलपुर तब के पंजाब प्रांत में था.वर्ष 1948 से‌ 1951 तक एसडी नारंग कलकत्ता में भी रहे.तब कलकत्ता में न्यू थिएटर्स का जमाना था और अच्छी फिल्में यहीं बनती थीं. 
 यादों का कारवां बताता है नायिका के‌ रूप में स्मृति विश्वास 1930 से 1960 तक सक्रिय थीं और एसडी नारंग की प्रायः हर फिल्म की हीरोइन थीं. 
 यहूदी की लड़की, रागिनी, नेक दिल, चांदनी चौक, दो ठग, एक औरत, दिल्ली का ठग आदि स्मृति विश्वास की यादगार फिल्में हैं.मेरी किस्मत अच्छी है कि स्मृति विश्वास ‌से मिला हूं.अपनी हिंदी फिल्मों से कभी उनका नाता था.अब‌ वह काफी दूर है.नायिका स्मृति विश्वास अब एक अतीत है- सुनहरी यादों का अतीत ! बेटे के साथ महाराष्ट्र के नासिक में रहती हैं, वहीं जहां कभी अभिनेता सदाशिव अमरापुरकर रहते थे. 
 एसडी नारंग 25 जनवरी, 1986 को बंबई में गुजरे, पर उनके निर्देशन में बनी 'शहनाई' समेत कई लाजवाब फिल्में अभी भी जेहन में हैं.

फोटो महादेवी वर्मा का रामगढ़ में घर 

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