संजय रोकाड़े
अटलजी का राज कुमारी कौल से इश्क़ वो जिन्दगी ही क्या जिसमें प्यार , मोहब्बत और इश्क़ ना हो मैं अविवाहित हूं लेकिन कुवारां नहीं. स्वर्गीय पूर्व प्रधानमन्त्री अटल बिहारी वाजपेयी के इस बयान का हम मर्म चाहे जो भी निकाले लेकिन इस कुवारें राजनेता की जिन्दगी का एक हिस्सा ग्वालियर के विक्टोरिया कॉलेज में पढ़ी राजकुमारी कौल से गहरे से जुड़ा रहा है. हालाकि भारतीय समाज में प्यार, मोहब्बत और इश्क़ करने वाले इन्सान को हमेशा से मक्कार, आवारा और बेकार माना गया है. समाज ने हमेशा उसको हेय भरी नजरों से देखा है, फिर चाहे इन्सान कितना भी काबिल और गुणवान क्यों ना हो. हालाकि समाज कि इस दकियानुशी धारणा को अटलजी ने पूरी तरह से झूठलाया है. उनने इस बात को बड़े ही साफगोई से सच साबित किया है कि जो इन्सान प्यार, मोहब्बत और इश्क़ में होता है वो बेकार व नाकारा नही होता है. ये बात बहुत ही कम लोग जानते होगें कि कभी इश्क़ के रोग में अटलजी भी रोगी बन चुके थे. अटल जी के जीवन में भी एक राजकुमारी आयी थी जिसका नाम ही- राजकुमारी कौल था. अटलजी और राजकुमारी कौल के बीच प्रेम प्रसंग लम्बे समय तक चला. इस प्रेम कहानी की शुरुआत कालेज के दिनों से ही परवान चढ़ने लगी थी और कालान्तर में यह एक खूबसूरत रिश्ते में बुनती चली गयी. इससे साफ है कि इन्सान चाहे कोई भी हो हर किसी के दिल में किसी न किसी के लिये एक दिल धडकता है. अटलजी और राज कुमारी के दिल में भी एक दूजे के लिये दिल धड़क रहा था. उनकी प्रेम कहानी के किस्से एक समय के बाद तो देहली के राजनीतिक गलियारों में भी खासे चर्चित होने लगे थे. कुछ समय बाद राजकुमारी कौल को मिसेज कौल के नाम से ही पुकारा जाने लगा था. बहरहाल ये प्रेम प्रसंग इस बात को सच साबित करता है कि हर इन्सान की जिन्दगी एक खूबसूरत यात्रा होती है. क्या पता कौन सा लम्हा जिन्दगी बदल दे. जिन्दगी को बदलने का ऐसा ही एक लम्हा अटलजी के जीवन में भी आया था. हालाकि प्रेमियों के लिये यह एक ऐसा दौर ऐसा था कि बातें केवल आंखों ही आंखों में होती थी. इन दिनों में लड़के और लड़की की दोस्ती को भी अच्छी निगाह से नही देखा जाता था. इसलिये आमतौर पर प्यार होने पर भी प्रेमी अपनी भवनाओं का इजहार नही कर पाते थे. ये करीब 40 के दशक का दौर था. अटलजी ग्वालियर के विक्टोरिया कालेज में पढ़ रहे थे उसी दौरान युवा मैन ने एक प्रेम पत्र राजकुमारी कौल के नाम लिख कर लायब्रेरी में एक किताब के अन्दर रख दिया. लेकिन उन्हें इस प्रेम पत्र का जवाब नही मिला. वो इसको लेकर बहुत मायूस-उदास, निराश और दुखी:हुए. एक पल के लिये उन्हें लगा सब कुछ खत्म सा हो गया. दरअसल राजकुमारी ने इस प्रेम पत्र का जवाब तो दे दिया था लेकिन वह उन तक पहुंच नही पाया था. जवाब किताब के अन्दर ही रखा था. इसी बीच राज कुमारी के अधिकारी पिता ने कालेज में पढ़ाने वाले एक युवा शिक्षक के साथ उसका ब्याह रचा दिया. जबकि राजकुमारी अटल को अपना जीवन साथी बनाना चाहती थी. हालाकि राजकुमारी ने इसको लेकर घर में जबरदस्त विरोध किया और विवाद भी हुआ. बेशक अटल ब्राह्मण थे लेकिन कौल अपने आपको कहीं बेहतर मानते थे. हालाकि इस प्रणय प्रस्ताव के बाद अटलजी ने कभी शादी नही की. बाद में यही प्यार दोनों की जिन्दगी में खूबसूरत प्रेम कहानी बन कर सामने आया. अटलजी इस बात को लेकर कभी आशान्वित नही रहे कि एक - दो दशक के बाद उनकी जिन्दगी हमेशा-हमेशा के लिये बदल जायेगी. करीब ढ़ेड से दो दशक के बाद जब अटलजी सांसद बन गये तब फिर दोनों प्रेमियों में मेल मिलाप बढने लगा. राजकुमारी कौल भी देहली चली आयी थी. कौल के पति दिल्ली युनिवर्सिटी के रामजस कालेज में दर्शन शास्त्र के प्रोफेसर थे. ये करीब 60 के दशक की बात है. इस दौर में आते-आते फिर से दोनों के रिश्तें में काफी गर्मी आ गयी थी. देहली के राजनीतिक हल्कों में भी हर कोई ये जानने लग गया था कि मिसेज कौल और अटलजी के बीच प्यार की केमिस्ट्री फिर से परवान चढ़ने लगी है. यही वो दौर था जब मिसेज कौल अटलजी के लिये सबसे प्रिय बन गयी थी. एक जाने-माने अखबार टेलीग्राफ में पत्रकार कुलदीप नैयर ने लिखा भी कि- संकोची मिसेज कौल अटलजी की सब कुछ थी. जिस तरह से उनने उनकी सेवा की शायद ही कोई कर पाये. वह हमेशा उनके साथ ही रहती थी. मिसेज कौल का महत्व हर कोई रखता था. हकीकत में वह अटलजी के जीवन का सब कुछ थी. सही मायने में मिसेज कौल अटलजी के जीवन की डोर थी. उनके घर की सबसे अहम सदस्य और सबसे घनिष्ठ भी. कुलदीप नैयर ने तो ये भी लिखा कि आजादी के बाद जितने भी प्रधानमन्त्री हुए उनके घर में रहने वालों में सबसे शिस्ट और लो-प्रोफ़ाइल रहने वाली महिला कौल ही थी. काबिलेगौर हो कि दक्षिण भारत के पत्रकार गिरीश निकम ने भी एक साक्षात्कार में अटल और राजकुमारी के प्रेम प्रसंग और उनके रिश्तें को लेकर अनुभव साझा किये थे. गिरीश अटलजी के सम्पर्क में तब से थे जब वे प्रधानमन्त्री नही थे. गिरीश कि माने तो जब भी वे अटलजी के निवास पर फोन करते थे तो अक्सर फोन मिसेज कौल ही उठाया करती थी. एक बार जब उनकी मिसेज कौल से बात हुई तो उनने परिचय कुछ यूं दिया कि- मैं मिसेज कौल, राज कुमारी कौल हूं. इस दौरान ये भी बताया कि अटल और मैं लम्बे समय से दोस्त रहें है. चालीस से अधिक सालों से हमारा यह रिश्ता है. बता दे कि सन 1980 में मिसेज कौल ने जब एक महिला पत्रिका को इंटरव्यू दिया था तब भी उनने अटलजी और उनके सम्बन्धों को लेकर बडी ही बेबाकी के साथ सवालों के जवाब दिये थे. वे एक सवाल के जवाब में बोली कि मुझे अटल और मेरे बीच रिश्ते को लेकर कभी भी मेरे पति के सामने कोई स्पष्टीकरण नही देना पड़ा. काबिलेगौर हो कि अटलजी पर लिखी किताब- अटल बिहारी वाजपेयी ए मैन ऑफ़ ऑल सिजन्स के लेखक और पत्रकार किंग शुक नाग ने भी राजकुमारी और अटल के प्रेम प्रसंग पर बहुत कुछ लिखा है. मिसेज कौल के निधन पर ओबीचुएरी लिखते हुए अटलजी के पूर्व सहायक सुधीन्द्र कुलकर्णी ने भी इस रिश्ते को लेकर काफी कुछ कहा है. हालाकि ये सब कोई जानते है कि एक महिला को लेकर अटलजी पर आरोप भी जगजाहिर हो चुके है. बहरहाल राजकुमारी कौल और अटलजी के रिश्तें के बारे में करीब से वही लोग जानते थे जो अटलजी के निजी जीवन के बारे में दखल देते थे. बता दे कि मिसेज कौल अन्तिम समय तक अटलजी के साथ रही,जब तक कि हार्ट अटेक से उनका निधन नही हो गया. मिसेज कौल का निधन मई 2014 में हुआ था तब आम चुनाव का प्रचार अभियान जोरों पर चल रहा था. तब भी कौल के अन्तिम संस्कार में उस समय लालकृष्ण अडवाणी, राजनाथ सिंह, सुषमा स्वराज यहां तक कि ज्योतिरादित्य सिंधिया भी पहुंचे थे. श्रीमति सोनिया गांधी अटलजी के निवास पर पहुंची थी. हालाकि इस रिश्तें को लेकर अटलजी को अपने राजनीतिक जीवन में इसका खमियाजा भी उठाना पड़ा है. बता दूं कि सन 1968 में दीन दयाल उपाध्याय के अचानक निधन के बाद जनसंघ के अध्यक्ष पद के लिये अटलजी के नाम पर विचार किया गया था, लेकिन तब पार्टी में उनके मजबूत विरोधी बलराज मधोक थे. मधोक ने राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सर संघ चालक एम एस गोलवलकर के साथ लाबिंग शुरु की, जिनका जनसंघ पर जबरदस्त प्रभाव था. उस समय मधोक ने अटलजी की अनैतिक जीवनशैली पर ना केवल आरोप लगाये बल्कि ये भी कहा कि ऐसी शिकायतें है कि एक महिला उनके पास आती है. ये मिसेज कौल की तरफ ही इशारा था. इसी तरह अटलजी को अपने दामाद को लेकर भी जलालत उठानी पड़ी थी. दो दत्तक बेटियों नमिता और नम्रता को लेकर भी उन उंगलियाँ उठी है. बहरहाल वे अपना जीवन जी कर खुदा को प्यारे हो गये लेकिन उनने जमाने की परवाह किये बिना अपने प्यार को नही खोया. प्यार, मोहब्बत और इश्क़ करने वालों को भी एक सन्देश देकर गये कि गर तुम्हारा प्यार सच्चा है तो जीवन की तरक्की में भी ये बाधक नही है.