आलोक कुमार
पटना.सत्ताधारी लालू प्रसाद यादव का और विपक्ष अंग्रेजी राज का आयना दिखाकर राजनीतिक कर रहे हैं.हाल में बिहार विधानसभा में पुलिसिया गुंडागर्दी से विपक्षी विधायकों की प्रतिष्ठा दांव पर है. यह विपक्षी विधायकों को अपमानित करने का नीतीश कुमार द्वारा संचालित अतिनिंदनीय व्यवहार था, वस्तुतः इसके जरिए विधायिका व सदन की गरिमा को गिराया गया. विधायिका के ऊपर पुलिसिया तानाशाही को प्रश्रय देकर तमाम स्थापित लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं की धज्जियां उड़ाई गईं, जिसका उदाहरण इतिहास में अन्यत्र नहीं मिलता. अंग्रेजी राज में भी शायद ही ऐसा बर्ताव विधायिका के साथ किया गया हो. नीतीश कुमार ने विधानसभा के अंदर पुलिस के जोर पर काला कानून पास करवाया, जिसकी आज सर्वत्र थू-थू हो रही है.
संसदीय व्यवस्था में कानूनों पर सर्वसम्मति बनाने की परंपरा रही है. विरोध की स्थिति में उसपर गहन विचार-विमर्श करवाने अथवा समीक्षा के लिए प्रवर व अन्य समितियों के सुपुर्द कर देने का प्रावधान रहा है. लेकिन सरकार ने ऐसा कुछ नहीं किया और आनन-फानन में विधायकों को पुलिस के जरिए सदन से खींचवाकर व लात-घूंसों से पीटवाकर बिल पास करवाया. यह लोकतंत्र की जननी को लोकतंत्र की कब्रगाह बनाना नहीं तो और क्या है? विधानसभा अध्यक्ष का घेराव विधायकों का लोकतांत्रिक अधिकार है, जिसकी आड़ में 23 मार्च को विधानसभा के इतिहास को कलंकित कर दिया गया.
यह तानाशाही दरअसल मोदी सरकार द्वारा पूरे देश में थोपी जा रही तानाशाही का विस्तार भर है. अपने को भाजपा से अलग रखने का दिखावा करने वाले नीतीश कुमार भाजपाइयों के ही एजेंडे को आगे बढ़ाने में लगे हैं. हमने देखा कि कैसे संसद से जबरदस्ती तीन कृषि कानून पास करवाये गए और अब मोदी सरकार दिल्ली सरकार के अधिकारों में कटौती करके तमाम अधिकार एलजी के हाथों में देने को बेचैन है.
बिहार में नीतीश कुमार ने उस सिलसिले को आगे बढ़ाते हुए पहले सोशल मीडिया को प्रतिबंधित किया, फिर आंदोलनों में शामिल समूहों को नौकरी अथवा ठेका न देने का फरमान जारी किया. बजट सत्र के दौरान माले व विपक्ष के सवालों के सामने असहज रहे मुख्यमंत्री ने तू-तड़ाक की भाषा का इस्तेमाल किया और महज नसीहतें देते रहे. 23 मार्च को तो उन्होंने संसदीय इतिहास में एक काला अध्याय ही जोड़ दिया. विधानसभा अध्यक्ष ने अपने बयान में विधायकों को एक बार फिर से दोषी ठहराया है, इसके जरिए वे अपने दामन पर लगे काले दाग को छुड़ाना चाहते हैं, लेकिन पूरी दुनिया उनके कृत्य को देख रही है.
भाकपा-माले, भाजपा-जदयू की इस तानाशाही और लोकतंत्र की धरती बिहार को पूरी दुनिया में बदनाम करने वाली इस लोकतंत्र विरोधी कार्रवाई को लेकर जनता के बीच जाएगी और नीतीश कुमार के माफी मांगने तक पूरे राज्य में अभियान संगठित करेगी. *लोकतंत्र हुआ शर्मसार - माफी मांगो नीतीश कुमार*, नारे के साथ सभी विधायक अपने-अपने इलाकों में अभियान चलायेंगे, जिसके दौरान ग्रामीण बैठकें व सभायें आयोजित की जाएंगी. भाकपा-माले तीनों काले कृषि कानूनों व पुलिस राज कानून के खिलाफ बिहार में नए सिरे से आंदोलन संगठित करेगी और पूरे राज्य में अप्रैल महीने में विधानसभा स्तर पर महापंचायत का आयोजन किया जाएगा.
माले विधायक दल ने विधानसभा में अपनी कार्रवाइयों व भूमिका पर अपनी समीक्षा भी की. 12 विधायकों के साथ माले विधायक दल की भूमिका जनता के बीच चर्चा का विषय बना. जनता से जुड़े सवालों को सदन में मजबूती से उठाया गया, लेकिन अधिकांश सवालों का जवाब सरकार के पास था ही नहीं. आशा, रसोइया, स्कीम वर्कर, अतिथि शिक्षक, आंगनबाड़ी, मदरसा शिक्षक, 19 लाख रोजगार, समान स्कूल प्रणाली, कंप्यूटर शिक्षक, कार्यपालक सहायक आदि तबकों के सवालों को सदन में लगातार उठाया गया.
यह माले विधायक दल का दबाव ही था कि सरकार को कुछेक घोषणाएं भी करनी पड़ीं. माले विधायक दल ने तय किया है कि इन तबकों के सवालों पर आगे भी कार्रवाई जारी रहेगी और इनके बीच संगठन निर्माण को बढ़ाया जाएगा. सभी तबकों के सवालों को लेकर माले विधायक दल ने मंत्रियों व सचिवों से जल्द ही मिलने का फैसला किया है.
संवाददाता सम्मेलन को पार्टी के *पोलित ब्यूरो सदस्य राजाराम सिंह, विधायक दल के नेता महबूब आलम, विधानसभा के अंदर पार्टी सचेतक अरूण सिंह, वीरेन्द्र प्रसाद गुप्ता, गोपाल रविदास, सुदामा प्रसाद* आदि विधायकों ने संबोधित किया.
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