बोधगया के दूसरे बुद्ध द्वारिका सुन्दरानी का जाना

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बोधगया के दूसरे बुद्ध द्वारिका सुन्दरानी का जाना

आलोक कुमार 
बोधगया.बोधगया के दूसरे बुद्ध से विख्यात द्वारिका सुन्दरानी नहीं रहे.उन्होंने मंगलवार की रात राजधानी पटना के निजी अस्‍पताल में अंतिम सांस ली.वे पिछले कुछ दिनों से बीमार चल रहे थे.समन्वय आश्रम के संचालक गांधीवादी विचारक द्वारिको सुंदरानी का पार्थिव शरीर को समन्वय आश्रम परिसर के नेत्र ज्योति अस्पताल के हॉल में अंतिम दर्शन के लिए रखा गया.लगभग 100 वर्षों की उम्र पार कर चुकें थे. 

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने समाजसेवी द्वारिका सुन्दरानी को श्रद्धांजलि दी है.वयोवृद्ध गांधीवादी समाजसेवी द्वारिका सुन्दरानी के निधन पर गहरी शोक संवेदना व्यक्त की.उन्होंने कहा कि बोधगया वासियों के लिए पूरा जीवन समर्पित कर दिया और आंखों की मोतियाबिंद के ऑपरेशन ट्रस्ट के संचालन वर्ष 1984 से करते आ रहे थे. अबतक कुल लगभग 7 लाख 86 हजार लोगों के आँखों का 
ऑपरेशन करवा चुके थे. 

हिंदुस्तान-पाकिस्तान के बंटवारा से पहले सिंधु (सिंध प्रांत)के निवासी थे और वह भगवान बुद्ध के शरण में आए और महात्मा गांधी से शिक्षा लेने के बाद विनोबा   भावे के साथ काम किया.गाँव-गाँव में स्कूल खुलवाए अनगिनत गांव बसाए जिसके कारण उन्हें याद आज सभी नम आंखों से कर रहें हैं. 

इनका विनोबा भावे के नाम पर अनेको संस्थानों को बनाने में अहम योगदान रहा हैं.बुद्ध टेंपल मैनेजमेंट कमेटी के सचिव भी रह चुके और अनेकों अवार्ड से सम्मानित हुए हैं.1992 में जमनालाल बजाज पुरस्कार से सम्मानित किया गया.अटल बिहारी वाजपेयी के द्वारा भी इन्हें सम्मानित किया गया है.इनका समाज के लिये अहम योगदान रहा जिसे भुलाया नही जा सकता है. 
सुंदरानी जी का जन्म छह जून 1922 को पाकिस्तान के करांची व सिंध प्रांत के बीच लरकाना के मानजन गांव में हुआ था. उन्होंने बोधगया को अपनी कर्मभूमि बनाया था.हाईस्कूल की पढ़ाई भी वहीं से की.20 साल की आयु में वे गांधीवादी विचारों के प्रभाव में आए.इसके बाद जिंदगी बदल गई. लोगों के लिए जीने लगे.1953 में वे विनोबा जी के कहने पर बोधगया आए. 18 अप्रैल 1954 को बोधगया में समन्वय आश्रम की स्थापना हुई.मौन रहकर समाज में क्रांति की मशाल जलाने वाले सुंदरानी जी के निधन से पूरा बिहार मर्माहत है. 

संदरानी जी ने अपना पूरा जीवन महादलित और समाज के अंतिम पायदान पर रहे व्यक्तियों के उत्थान में लगा दिया.महादलित और मुसहर समाज के बच्चों के लिए वे आश्रम परिसर में आवासीय विद्यालय चलाते थे.बोधगया के पास उन्होंने बगहा में आश्रम बनाया था.वे पिछले चार दशक से गुजरात के भंसाली ट्रस्ट के महेश भाई भंसाली से मिलकर बोधगया में नि:शुल्क नेत्रदान शिविर के संचालन में सहयोग दे रहे थे.इस अस्पताल से लाखों आंखों को रोशनी मिल चुकी है.सुंदरानी जी 1984 से 1985 तक महाबोधि मंदिर प्रबंधकारिणी समिति के सचिव पद पर भी पदस्थापित थे. 

जमुनालाल बजाज पुरस्कार से सम्मानित द्वारिको सुंदरानी गया में समन्वय आश्रम और समन्वय विद्यापीठ के बच्चों को शिक्षित कर जीवन जीने की कला सिखाते थे. समन्वय आश्रम की स्थापना भूदान आंदोलन के जनक विनोबा भावे ने की थी.आश्रम परिसर और जिले के मोहनपुर प्रखंड के बगहा गांव में समन्वय विद्यापीठ में मुसहर और भोक्ता जाति के बच्चे पढ़ते हैं.आवासीय समन्वय विद्यापीठ में पढ़ाई कर रहे बच्चे जिले के सुदूर ग्रामीण सुदूर क्षेत्र के रहने वाले हैं.दोनों जगहों पर बालवाड़ी से लेकर आठवीं कक्षा तक की नैतिक शिक्षा देकर एक अलग समाज तैयार किया जा रहा है. 

महात्मा गांधी की समवाय शिक्षा से बदली तस्वीर 
सुंदरानी जी कहा करते थे कि उनके आश्रम में दी जाने वाली शिक्षा राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की समवाय शिक्षा पर आधारित है. इस शिक्षा का मकसद जीवन बदलना और संस्कार में बदलाव लाना है.सुंदरानी कहा करते थे कि आवासीय शिक्षा बेहतर है. समन्वय आश्रम द्वारा संचालित आवासीय स्कूल के बच्चों की दिनचर्या भी अलग है. प्रतिदिन सुबह चार बजे उठना, उसके बाद योगासन, प्रार्थना, नाश्ता व वर्ग संचालन, सफाई और गौशाला का कार्यक्रम के बाद भोजन, फिर दोपहर विश्राम.शाम में फिर से वर्ग संचालन, संगीत, खेल, प्रार्थना व रात्रि भोजन के बाद विश्राम। इस दिनचर्या से बच्चों के जीवन को संवारा. 

महात्मा गांधी, विनोबा भावे और जयप्रकाश नारायण के सान्निध्य में रहकर आजीवन समाज सेवा करने द्वारिको सुंदरानी को इलाके के लोग गरीबों का मसीहा मानते थे. उनके निधन से हर तरफ शोक की लहर है. बोधगया विधायक कुमार सर्वजीत ने बताया कि गुरुवार को शव का अंतिम संस्कार आश्रम परिसर में किया जाएगा.इधर, सुंदरानी जी के निधन की सूचना के बाद बीटीएमसी के सचिव एन दोरजे सहित विभिन्न मोनास्ट्री के भिक्षु उनके अंतिम दर्शन के लिए आश्रम पहुंचकर अपनी श्रद्धा सुमन अर्पित की. 

एकता परिषद के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष प्रदीप प्रियदर्शी ने कहा कि जब कभी भी एकता परिषद के संस्थापक पी.व्ही.राजगोपाल गया आते थे तो निश्चित ही गांधीवादी विचारक सुंदरानी जी से मुलाकात करते थे.हमलोग सुंदरानी जी को श्रद्धा पुष्प अर्पित करते हैं. 
 

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