भाजपा से सीखे अख़बारों से चुनावी प्रचार करना

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भाजपा से सीखे अख़बारों से चुनावी प्रचार करना

संजय कुमार सिंह 

दिल्ली के अखबारों में बंगाल का चुनाव छाया हुआ है. 12 मई को छठे चरण के मतदान के बाद बाकी बची 59 सीटों के लिए मतदान 19 मई को है. छठे चरण में पश्चिम बंगाल की आठ सीटें थीं. इस बार नौ सीटों के लिए मतदान है. 2014 में ये नौ सीटें टीएमसी ने जीती थी. इसके अलावा पंजाब में 13, उत्तर प्रदेश में 13, मध्य प्रदेश और बिहार में आठ-आठ, झारखंड में तीन और चंडीगढ़ की एक सीट पर भी मतदान होना है लेकिन दिल्ली के अखबारों में बंगाल ही छाया हआ है. मेरा मानना है कि ममता बनर्जी से भिड़कर, उन्हें बदनाम करके भाजपा को दूसरी जगह भी चुनावी लाभ मिलने की उम्मीद है. इसीलिए ममता बनर्जी ने आरोपों पर कहा है कि साबित करें नहीं तो जेल भेज दूंगी. जवाब में नरेन्द्र मोदी ने कहा है कि दीदी इतना हताश हो गई हैं कि मुझे सलाखों के पीछे डालने की धमकी देने लगी हैं (हि्दुस्तान). 

यह खबर दिल्ली के पाठकों के लिए नहीं है और मैं जो अखबार देखता हूं उनमें राजस्थान पत्रिका में बंगाल चुनाव से संबंधित कोई भी खबर पहले पन्ने पर नहीं है. दूसरी ओर, दैनिक जागरण में बंगाल चुनाव को तो प्राथमिकता मिली है पर साध्वी प्रज्ञा ने गोडसे को देशभक्त बताया यह खबर पहले पन्ने पर दो लाइन के शीर्षक और छह लाइन में निपटा दी है. विस्तार अंदर है पर यह पहले पन्ने की खबर और इसीलिए लगभग सभी अखबारों में पहले पन्ने पर है भी. राजस्थान पत्रिका ने इस खबर को लीड बनाया है. आपने पढ़ा होगा कि कोलकाता में अमित शाह के रोड शो में हिंसा और ईश्वर चंद विद्यासागर की मूर्ति तोड़े जाने के बाद भाजपा ने आरोप लगाया है कि मूर्ति तृणमूल वालों ने ही तोड़ी पर तृणमूल ने मूर्ति तोड़े जाने को मुद्दा बना लिया है. 

जवाब में कोई 40 घंटे बाद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इसपर चुप्पी तोड़ी और कहा कि पंचधातु की मूर्ति बनवा देंगे (दैनिक भास्कर). आज के अखबारों में यह खबर प्रमुखता से है. सवाल उठता है कि मूर्ति जब तृणमूल वालों ने ही तोड़ी तो भाजपा क्यों बनवाएगी और पंचधातु का क्यों - अष्टधातु का क्यों नहीं. कायदे से, कहना चाहिए था कि हमें मूर्ति टूटने का अफसोस है और इससे हुए नुकसान और भावनाओं को जो ठेस लगी है उसकी भरपाई तो नहीं हो सकती लेकिन भाजपा कोशिश करेगी कि हम वैसी ही मूर्ति (असल में बुत) बनवा दें. 

मूर्ति तोड़ने का आरोप लगने पर मूर्ति बनवा देने की बात करना वह भी तब जब अयोध्या में मंदिर तोड़कर  बनवाने का दावे अभी तक पूरा नहीं हुआ है और इसमें भाजपा की बहुमत वाली सरकार के पांच वर्षों का पूरा  कार्यकाल निकल गया तो समाज के एक और वर्ग के लोगों की भावनाओं के खिलवाड़ का जवाब भव्य मंदिर की जगह अष्ठधातु की मूर्ति से दिया गया है जबकि पहले का वादा अभी पूरा नहीं हुआ है. मुझे नहीं दिखा कि किसी अखबार ने इसे इस तरह याद किया है. असल में पश्चिम बंगाल में मुकाबला तृणमूल कांग्रेस और भाजपा में है. हिन्दी पट्टी में चुनाव को निरहुआ और रवि किशन जैसे कलाकारों के भरोसे करने के बाद भाजपा तृणमूल कांग्रेस से सीटें झकने की कोशिश में है. 

उधर, ममता बनर्जी अपनी पार्टी के लिए अच्छा खासा प्रचार कर रही थीं और इनमें नरेन्द्र मोदी पर प्रहार भी कर रही थीं. इसे आप उनकी परेशानी मान सकते हैं और यह भी कि चौकीदार चोर है जैसे नारे के कारण भाजपा और नरेन्द्र मोदी आसान निशाना हैं. इसके अलावा पिछले चुनाव में भाजपा को 42 में से केवल दो सीटें मिली थीं. इस बार 23 सीटें जीतने का दावा कर रही है तो जाहिर है, भाजपा को सीटें जीतने के लिए और तृणमूल को सीटें बचाने के लिए आक्रामक होना पड़ेगा. मतदान के पिछले चरण तक ऐसा ही था  ऐसे में भाजपा ने अखबारों की सेवा लेने का इंतजाम किया है और अखबार यह सेवा मुहैया कराते नजर आ रहे हैं. 

यह काम सिर्फ हिन्दी अखबार नहीं कर रहे हैं. अंग्रेजी वाले भी इसमें पीछे नहीं हैं. हिन्दुस्तान टाइम्स और इंडियन एक्सप्रेस में बंगाल चुनाव लीड है पर टाइम्स ऑफ इंडिया में यह खबर पहले पन्ने पर ही नहीं है. हिन्दुस्तान टाइम्स में बंगाल की हिंसा पर चुनाव आयोग की कार्रवाई पर उसका स्पष्टीकरण भी है. आप जानते है कि बंगाल हिंसा पर चुनाव आयोग की कार्रवाई को भी पक्षपातपूर्ण कहा गया है पर आरोप आपने चाहे न पढ़ी हो, चुनाव आयोग का स्पष्टीकरण उपलब्ध है. 

अमर उजाला ने लिखा है कि उत्तर प्रदेश के मऊ में प्रधानमंत्री मोदी ने आरोप लगाया कि ईश्वर चंद्र विद्यासागर की प्रतिमा तृणमूल कांग्रेस के गुंड़ों ने तोड़ी. हमारी सरकार उसी जगह पर पंचधातु की भव्य प्रतिमा स्थापित कर गुंडों का जवाब देगी. मूर्ति तोड़ना कानून व्यवस्था का मामला है. गुंड़ों के खिलाफ कार्रवाई कार्रवाई होनी चाहिए – वे भाजपा के हों या तृणमूल के. प्रधानमंत्री दूसरी भव्य और पंचधातु की (बेहतर) प्रतिमा लगाने की बात कर रहे हैं मऊ में - किस लिए?


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