सतीश जायसवाल
अब यह खब्त है या सनक कि किसी उस बस्ती के किसी चौक चौराहे पर चाय की कोई गुमटी ढूंढी जाए और चाय के बहाने थोड़ी देर ठहरकर अपनी आमद दर्ज़ करना और अपना पता छोड़कर वहाँ से निकल आना ! क्या पता.लेकिन मैं ऐसा करता हूँ.यहां भी अपनी इस सनक में मैंने सिद्धेश्वर और सुनील भट्ट को लपेट लिया.सिद्धेश्वर ने सुबह सुबह पहाड़ पर चहलकदमी की बात की.मैंने चौराहे पर चाय जोड़ दी.सिद्धेश्वर को यहां की जलेबी की सबसे पुरानी दुकान की याद आ गयी.वह चाय की दुकान के बगल में ही मिली.अभी बंद है.अभी यहाँ टूरिस्ट सीज़न ठीक से शुरू नहीं हुआ है.टूरिस्ट आने लगेंगे तो जलेबी वाला अपने आप चला आएगा.और पुरानी दुकान नए सीज़न के ग्राहकों के लिए खुल जाएगी.
कल का दिन तो बड़ी व्यस्तताओं का रहा.सारा दिन वहीं, महादेवी सृजनपीठ में निकल गया.और शाम को लौटने में सर्दी ने घेर लिया.सीधे व्हिस्परिंग पाइन्स के अपने कमरे में घुसना ही ठीक लगा.विनीता जोशी ने तो आगाह किया था कि अभी यहां भारी सर्दी पड़ रही है.गरम कपडे साथ रखूं.रखा.लेकिन अब समझ आया की कम हैं.कम से काम गरम टोपी और मफलर तो होना ही था.मैंने सिद्धेश्वर से कहा कि नैनीताल में मुझे ये दोनों चीजें खरीदनी हैं.
सोचा था कि आज यहाँ से दोपहर में ०३ बजे निकलना हो सकेगा.यही कार्यक्रम बताया भी गया था.लेकिन निकलते-निकलते देर हो ही गई.फिर भी नैनीताल का हमारा अपना
कार्यक्रम तो हमारी अपनी जेब में यथावत था.इस बार काफी दिनों बाद मैं यहां आया हूँ.थोड़ी देर भटकने का मन था.किसी सैलानी की तरह.गरम टोपी और मफलर खरीदना और भुट्टे खाना उसमें बना हुआ है.सिद्धेश्वर ने रामलाल की किसी दुकान का नाम लिया.यहाँ की कोई बड़ी और प्रसिद्ध दुकान है.हमने झील में नौका विहार भी किया.और पैदल-पैदल कैपिटल सिनेमा की तरफ भी गए.यहाँ नैनीताल में मेरी जान-पहिचान की जगहों में यह कैपिटल सिनेमा शामिल है.इसका अपना इतिहास है और यह नैनीताल की एक पहिचान है.इस बीच काफी कुछ इसका बदला है फिर भी काफी कुछ बचा हुआ है, जो इसका अपना पुराना है.पुराने का बचा रहना जरूरी है.हालाँकि पुरानेपन को बचाये रखने में दिक्कतें भी बड़ी हैं.नैनीताल का "आहार विहार" भी नैनीताल की मेरी पहिचान में शामिल था.और अपनी समझ में मैंने अपना पता वहाँ भी छोड़ा था.लेकिनवह भी बदला हुआ मिला.अब वहाँ "कैफे कॉफी डे" के नियोन चमक रहे थे.
शाम का नैनीताल रंगीन हो जाता है.वह रंगीन होने लगा था.इस हद तक कि झील के पानी पर भी रंग तैरने लगे थे.लेकिन अभी तक सिगड़ी पर सकते हुए भुट्टे का कोई अड्डा मुझे नज़र नहीं आया था.लेकिन वह सिद्धेश्वर की नज़र में आ गया.भुट्टे के बिना नैनीताल की शाम कितनी अधूरी-अधूरी लगती ? फिर भी ३० रुपये का एक भुट्टा कुछ महंगा लगा.भुट्टे वाली ने बताया कि इस बारिश में यहाँ पानी कमज़ोर रहा.फसल कम हुयी है.भुट्टे दूर से आ रहे हैं इसलिए कुछ महंगे हैं.कमज़ोर बारिश की बात तो हमारे बोट वाले ने भी की थी.उसने अपनी चिन्ता भी जताई थी कि झील में पानी कम हो रहा है.
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