यह महुआ का मौसम है

गोवा की आजादी में लोहिया का योगदान पत्रकारों पर हमले के खिलाफ पटना में नागरिक प्रतिवाद सीएम के पीछे सीबीआई ठाकुर का कुआं'पर बवाल रूकने का नाम नहीं ले रहा भाजपा ने बिधूड़ी का कद और बढ़ाया आखिर मोदी है, तो मुमकिन है बिधूड़ी की सदस्य्ता रद्द करने की मांग रमेश बिधूडी तो मोहरा है आरएसएस ने महिला आरक्षण विधेयक का दबाव डाला और रविशंकर , हर्षवर्धन हंस रहे थे संजय गांधी अस्पताल के चार सौ कर्मचारी बेरोजगार महिला आरक्षण को तत्काल लागू करने से कौन रोक रहा है? स्मृति ईरानी और सोनिया गांधी आमने-सामने देवभूमि में समाजवादी शंखनाद भाजपाई तो उत्पात की तैयारी में हैं . दीपंकर भट्टाचार्य घोषी का उद्घोष , न रहे कोई मदहोश! भाजपा हटाओ-देश बचाओ अभियान की गई समीक्षा आचार्य विनोबा भावे को याद किया स्कीम वर्करों का पहला राष्ट्रीय सम्मेलन संपन्न क्या सोच रहे हैं मोदी ?

यह महुआ का मौसम है

कभी अप्रैल में कांकेर से बस्तर की तरफ जाएं तो महुआ गमकता महसूस होगा .महुआ सिर्फ जंगली फल फूल नहीं है यह बस्तर समेत देश के विभिन्न आदिवासी अंचल की अर्थव्यवस्था चलाता है .पर लाक डाउन के चलते सिर्फ शहरों की ही दिक्कत नहीं बढ़ी है बल्कि दूर दराज के इलाके के आदिवासी भी परेशान हैं .कोंडागांव के एक आदिवासी परिवार की जीविका महुआ इमली पर ज्यादा निर्भर है .पर इस समय उन्हें कोई ठीक दाम नहीं दे रहा है .वे कहते हैं ,हम तो महुआ बेचते थे पर व्यापारी अब ठीक दाम नहीं दे रहा है जिसकी वजह से हम बहुत परेशानी में हैं .दरअसल इस समूचे अंचल में वे हाट बाजार भी बंद हो गए हैं जहां इनका वन उत्पाद आदि बिक जाता था .बस्तर का जिला मुख्यालय जगदलपुर का बाजार सूना पड़ा है . 
कोंडागांव के एक आदिवासी परिवार की जीविका महुआ इमली पर ज्यादा निर्भर है .पर इस समय उन्हें कोई ठीक दाम नहीं दे रहा है .वे कहते हैं ,हम तो महुआ बेचते थे पर व्यापारी अब ठीक दाम नहीं दे रहा है जिसकी वजह से हम बहुत परेशानी में हैं .दरअसल इस समूचे अंचल में वे हाट बाजार भी बंद हो गए हैं जहां इनका वन उत्पाद आदि बिक जाता था .बस्तर का जिला मुख्यालय जगदलपुर का बाजार सूना पड़ा है .यहां पर बड़ी संख्या में आदिवासी अपना सामान लेकर आते थे पर अब तो सब बंद है .ऐसे में आदिवासियों का संकट बढ़ रहा है .वे साहूकार से कर्ज ले रहे हैं .तो कई अपने जानवर बेच रहे हैं . 
एक समस्या उन आदिवासी मजदूरों की है जो बाहर से लौट रहे हैं .यहां भी कई जगह उन्हें रोका जा रहा है .छतीसगढ़ से भी मजदूरी करने लोग बड़ी संख्या में बाहर जाते हैं .हालांकि इनमे बस्तर से कम लोग जाते हैं .पर जो गए उन्हें शहर से लौटा दिया गया और अब वे इधर भी परेशान हैरान हैं .हालांकि कुछ इलाकों में सरकारी मदद से राशन की व्यवस्था की गई है पर वह नाकाफी है .प्रयास यह होना चाहिए कि आदिवासियों के वन उत्पाद की सरकारी खरीद हो जाए .वर्ना यह संकट और बढेगा .कोरोना के दौर में आदिवासी समाज को भी जागरूक किया गया है .जिसकी वजह से वे भी साफ़ सफाई को लेकर अब ज्यादा समझदारी दिखा रहे हैं .वैसे भी आदिवासी अंचल में स्वच्छता से जुड़ी परंपराएं भी हैं.

  • |

Comments

Subscribe

Receive updates and latest news direct from our team. Simply enter your email below :