गिरीश मालवीय
नई दिल्ली .आने वाली नयी सरकार को मोदी सरकार पर सबसे पहला मुकदमा झूठे आंकड़ों से जनता को भरमाने का चलाना चाहिए.नेशनल सैंपल सर्वे ऑफिस यानी एनएसएसओ ने कॉरपोरेट अफेयर्स मिनिस्ट्री के उन आंकड़ो को सवालों के कटघरे में खड़ा कर दिया है जिसके आधार पर नरेंद्र मोदी सरकार के कार्यकाल के दौरान भारत की नयी जीडीपी सीरीज की गणना की गई थी.
दरअसल जीडीपी की पुरानी सीरीज कंपनियों के सर्वे के आधार पर तय होता था. यह सर्वे रिजर्व बैंक करता था. जबकि नई सीरीज MCA-21 डाटाबेस के आधार पर तय हुआ जो मिनिस्ट्री ऑफ कॉरपोरेट्स अफेयर्स मेंटेन करती है.
एनएसएसओने पाया है कि इस नए तरीके यानी 'MCA-21' डाटाबेस के लिए जिन कंपनियों को चुना गया था उनकी गलत तरीके से श्रेणीबद्ध किया गया था इस डाटाबेस में जिन कंपनियों को शामिल किया गया है, उनमें से एक तिहाई का कोई अता-पता ही नहीं है,डेटाबेस में कई काल्पनिक या शेल फर्म शामिल हैं जो केवल कागज पर मौजूद हैं.ये कंपनियां कुछ भी उत्पादन नहीं कर रही हैं.
NSC के पुराने मेंबर और पूर्व एनएसएसओ चीफ पीसी मोहनन जिन्होंने कुछ दिन पूर्व इस्तीफा दिया वह कहते हैं कि MCA-21 डाटाबेस की कोई जांच नहीं हुई है, जो कि जरूरी था.
फर्जी कंपनियों को चुनने के समर्थन में सांख्यिकीविद प्रणव सेन ने बिज़नेस स्टैंडर्ड के सामने एक अजीब सा कुतर्क रखा उन्होंने कहा, 'अगर जीडीपी की गणना में मैं इन मुखौटा कंपनियों को शामिल नहीं करता तो हम अर्थव्यवस्था के सभी क्षेत्रों को इसमें शामिल नहीं कर सकते थे. उन्होंने कहा कि अगर वैध कंपनी अपने लेनदेन का एक हिस्सा छिपाने के लिए बेनामी कंपनी का इस्तेमाल कर रही है, तो ये लेनदेन जीडीपी का हिस्सा हैं.अगर हम इन्हें शामिल नहीं करते हैं तो हम जीडीपी को कमतर करेंगे'
ये कुतर्क उन्होंने तब रखा है जब मोदीजी लाल किले की प्राचीर से तीन लाख शैल कम्पनियों को बन्द करने का दावा कर चुके हैं.सांख्यिकीविदों के बड़े वर्ग का मानना है कि भारत के राष्ट्रीय खातों में अप्रयुक्त डेटाबेस का उपयोग केंद्रीय सांख्यिकी कार्यालय (CSO) की गिरावट को दर्शा रहा है जो कभी विश्व स्तर का प्रसिद्ध संस्थान रह चुका है.मुंबई के इंदिरा गांधी इंस्टीट्यूट ऑफ डेवलपमेंट रिसर्च के प्रोफेसर आर. नागराज ने कह रहे हैं कि, "सीएसओ के लिए यह एक विनाशकारी झटका है.
अब समझ में आ रहा है कि 2015 में नरेंद्र मोदी की सरकार ने जीडीपी का बेस ईयर को 2004-2005 से बढ़ाकर 2011-2012 रिवाइज इसलिए किया कि जीडीपी के नए आंकड़ों के मुताबिक, UPA सरकार के दौरान ग्रोथ अनुमान में बड़ी गिरावट दिखाई जा सके और उसके बनिस्बत मोदी सरकार के वर्षों में उछाल आया ऐसा दिखलाया जा सके.फर्जी आधार पर जीडीपी के इन आंकड़ों के बनाए जाने से जॉबलेस ग्रोथ का भेद जरूर खुल गया है अब हमें यह समझ मे आ रहा है कि क्यो हम रोजगार विहीन प्रगति कर रहे हैं.
Copyright @ 2019 All Right Reserved | Powred by eMag Technologies Pvt. Ltd.
Comments