लखनऊ, . भाकपा (माले) ने मोदी सरकार के तीन कृषि कानूनों को रद्द करने के लिए जारी किसान आंदोलन के चार माह पूरे होने पर शुक्रवार को आहूत भारत बंद का सक्रिय समर्थन करने का ऐलान किया है. पार्टी व जनसंगठनों के कार्यकर्ता प्रदेश के जिलों में सड़कों पर उतरेंगे और बंद को सफल बनाएंगे.
यह जानकारी राज्य सचिव सुधाकर यादव ने गुरुवार को देते हुए कहा कि केंद्र सरकार को अन्नदाताओं की कोई परवाह नहीं है. एक तरफ वह सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों व कंपनियों का निजीकरण कर रही है, दूसरी तरफ कृषि क्षेत्र को भी कारपोरेट को सौंप देने की पूरी तैयारी कर रही है. तीनों कृषि कानून इसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए लाए गए हैं, जिनके खिलाफ दिल्ली बार्डर सहित देश भर में किसान आंदोलित हैं.
माले नेता ने कहा कि केंद्र की राजग सरकार एमएसपी को लेकर दोहरी बातें कर रही है. एमएसपी जारी रहेगी, लेकिन व्यवहारतः मिलेगी नहीं. यदि सरकार किसानों का हित चाहती है, तो उसे एमएसपी की गारंटी देने के लिए जुबानी जमाखर्च के बजाय कानूनी प्रावधान करना चाहिए और किसान भी यही मांग कर रहे हैं.
कामरेड सुधाकर ने कहा कि आवश्यक वस्तु अनुरक्षण (संशोधन) कानून को लागू करने के पक्ष में संसदीय समिति की हालिया सिफारिश किसानों और देशवासियों के हित में कत्तई नहीं है. इससे सिर्फ जमाखोरी और कालाबाजारी को ही बढ़ावा मिलेगा जिसका फायदा अडानी-अंबानी जैसे पूंजीपति ही उठाएंगे.
उन्होंने कहा कि ठेके पर खेती के कानून को लागू करने पर किसान धीरे-धीरे पूंजीपतियों के चंगुल में फंसता जाएगा और उनका गुलाम बन जायेगा. सरकारी मंडी व्यवस्था भी नए कानून से धीरे-धीरे मौत के मुंह में समा जाएगी और अनाजों की सरकारी खरीद बंद होने का सर्वाधिक बुरा प्रभाव सरकारी राशन की दुकानों पर पड़ेगा, जिससे गरीबों के राशन पर आफत आएगी. कुल मिलाकर ये तीनों कानून देशहित में नहीं हैं. लिहाजा सरकार को इन्हें वापस लेना ही होगा.
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