डा शारिक़ अहमद ख़ान
मस्जिद में लाउडस्पीकर का कोई काम नहीं.मस्जिद में अज़ान के लिए मीनारें होती थीं.मीनार को अब मस्जिद की ख़ूबसूरती बढ़ाने के लिए इस्तेमाल किया जाने लगा है,लेकिन पहले मीनार इसी वजह से बनती कि मीनार पर चढ़कर मोअज्ज़िन मतलब अज़ान देने वाला अज़ान दे सके.मीनार में ऊपर जाने के लिए सीढ़ियाँ बनी होतीं.मीनार से अज़ान की आवाज़ दूर तक जाती.मोअज़्ज़िन उसे ही बनाया जाता जिसकी आवाज़ तेज़ हो और दूर तक जाए.अज़ान अल्लाह को सुनाने के लिए नहीं होती,जैसा कि इस्लाम की बेसिक समझ ना होने या दूसरी वजह से कबीर ने लिख दिया कि 'कांकर पाथर जोड़ के' और इस्लाम से सन्नाटा लोग उसे सही मानने लगे.
कबीर चतुर बैलेंसवादी थे,ताकि हर घान पढ़ाएं.कबीर ने 'पाथर पूजै हरि मिलै' लिखने के बाद अज़ान के बारे में लोगों को मिसगाइड कर बैलेंस बनाया.दरअसल अज़ान एक बुलावा है,अल्लाह को नहीं अल्लाह के बंदों को मतलब मुसलमानों को नमाज़ का वक़्त हो जाने की सूचना मात्र है.अज़ान का अर्थ ये है कि नमाज़ का समय हो गया,मस्जिद में आइये या नमाज़ पढ़ लीजिए.लाउडस्पीकर तो पहली बार सिंगापुर की मस्जिद में सन् उन्नीस सौ तीस के क़रीब लगा,फिर धीरे-धीरे हर जगह आ गया.हर धर्म के लोगों ने अपने धार्मिक काजों के लिए इसका इस्तेमाल शुरू कर दिया.पहले जब बिजली बहुत कटती और इन्वर्टर और बैटरी का सिस्टम भी मस्जिद में नहीं होता तो हमने ख़ुद मोअज़्ज़िन को बिना लाउडस्पीकर अज़ान देते देखा और सुना है.अज़ान ज़रूरी नहीं कि मीनार से ही दी जाए,मस्जिद की ऊँची जगह जाकर भी दी जा सकती है.आजकल ध्वनि प्रदूषण बढ़ गया है.मंदिरों और मस्जिदों समेत हर धार्मिक स्थल से लाउडस्पीकर हटा देना चाहिए,वजह कि इसकी वजह से कई लोगों को तकलीफ़ होती है.जैसे कि इविवि की वीसी को हुई.अगर लाउडस्पीकर हों भी तो उनका वाल्यूम बहुत कम होना चाहिए.हर व्यक्ति अपने मज़हब के हिसाब से पूजा-पाठ करने के लिए स्वतंत्र है.लेकिन ये आपका निजी मामला है,इसमें लाउडस्पीकर की वजह से या दूसरी किसी वजह से दूसरों को तकलीफ़ ना पहुँचे इसका ख़्याल रखना चाहिए.बहरहाल,एक बार भूकंप आया तो हमारे एक मुस्लिम पड़ोसी ने लाउडस्पीकर लगाकर दुआ पढ़नी शुरू कर दी.हम शाम को घर पहुंचे तो सुनी.
हमने पहले दिन कुछ नहीं कहा लेकिन दूसरे दिन टोक दिया कि लाउडस्पीकर हटा दीजिए,इसकी वजह से दूसरे मज़हब के लोगों की छोड़िए,हमें ख़ुद तकलीफ़ हो रही है,आप हमारी शांति में बाधा ना डालें,बिना लाउडस्पीकर दुआ पढ़े़ं.ये सुन उन्होंने लाउडस्पीकर हटा दिया,वरना उनका चालीस दिनों तक हर शाम लाउडस्पीकर पर दुआ पढ़ने का कार्यक्रम था,जो उन्होंने एतराज़ के बाद बिना लाउडस्पीकर किया.इसी तरह से हमारे मुस्लिम बाहुल्य मोहल्ले के एक हिंदू पड़ोसी ने हमसे एक दिन आकर कहा कि अखंड रामायण है.
हम अपने घर पर लाउडस्पीकर बांध लें,आपको तकलीफ़ तो नहीं होगी.हमने कहा कि बिल्कुल बांधिए,हमें तकलीफ़ नहीं होगी,कोई नहीं हटवाएगा,जो कुछ कहे उसे मेरे पास भेजिए.अब उन्होंने बांध लिया,फिर हल्के वाल्यूम में ही पाठ शुरू हुआ.हम अखंड रामायण का रस लेने लगे,मगन हो गए.ये देख लोगों ने हमसे कहा कि दो तरह का आपका पैमाना क्यों है,मुसलमान का लाउडस्पीकर हटवा दिया,हिंदू का नहीं हटवाया.हमने कहा क्योंकि हिंदू यहाँ मोहल्ले में अल्पसंख्यक हैं,अल्पसंख्यक को ये नहीं लगना चाहिए कि उसे दबाया जा रहा है,धार्मिक काज नहीं करने दिया जा रहा,इसलिए हिंदू को छूट दी.फोटो साभार
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