भोजपुरी भाषा का सवाल उठाते जगदम्बिका पाल

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भोजपुरी भाषा का सवाल उठाते जगदम्बिका पाल

यशोदा श्रीवास्तव 
लखनऊ. डुमरियागंज के बीजेपी सांसद लगातार भोजपुरी भाषा को आठवीं अनुसूची में दर्ज करने की आवाज संसद में उठाते रहे हैं. उनका तर्क था कि भारत के सिक्किम व दार्जिलिंग में नेपाली भाषा बोली जाती और यह आठवीं अनुसूची में दर्ज है जबकि भोजपुरी कई प्रदेशों में भोजपुरी खूब बोली जाती है, इसका कहीं कोई स्थान नहीं है.  
सांसद पाल के भोजपुरी के बाबत उठाए गए मुद्दे का क्या हुआ,इसका पता नहीं लेकिन भाषा की लड़ाई लड़ रहे सांसद पाल ने बुधवार को संसद में हिंदी के व्यापक इस्तेमाल की भी आवाज बुलंद की. उन्होंने उच्च और उच्चतम न्यायालय में हिंदी में कामकाज होने की अनिवार्यता की मांग करते हुए कहा कि यह हिंदी की गरिमा को और मजबूत बनाने की दिशा में सार्थक कदम होगा. 
लोक सभा के शून्य काल के दौरान भारतीय जनता पार्टी के सांसद जगदम्बिका पाल ने संविधान के अनुच्छेद 348 में संशोधन की मांग को उठाते हुए कहा कि भारतीय संविधान और कानून व्यवस्था में सभी को समान रूप से न्याय मिले इसके लिए संविधानविदों ने भारतीय संविधान को द्विभाषी बनाया था जो हिंदी और अंग्रेजी भाषा में लिखित था. आज 2011 की जनगणना के अनुसार भारत के 43.63% लोगों की मातृभाषा हिंदी है जो संख्या में 52,83,47,193 है, तथा 57.05फीसद लोगों को हिंदी भाषा का ज्ञान है. कमिश्नर फार लिंग्विस्टिक माइनारटीज इन इंडिया की 50वीं रिपोर्ट में भी भारत के 11 राज्यों (बिहार ,छत्तीसगढ़, हरियाणा,हिमाचल प्रदेश, झारखंड, मध्य प्रदेश, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और केंद्र शासित प्रदेश चंडीगढ़ और दिल्ली) को हिंदी भाषी लोगों की अधिकता वाला राज्य माना है .परंतु हमारे उच्चतम न्यायालय के समस्त निर्णय एवं कार्य पूर्णता अंग्रेजी भाषा में होते हैं .न्यायिक प्रक्रिया में राजभाषा हिंदी का प्रयोग केवल कुछ प्रदेशों के जनपद न्यायालय में होता है तथा कुछ राज्यों जैसे- राजस्थान, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, बिहार के उच्च न्यायालय में कुछ हद तक प्रयोग की जाती है. लेकिन उच्चतम न्यायालय में राजभाषा हिंदी के प्रयोग का कोई प्रावधान नहीं है, जो जनपद न्यायालय से उच्चतम न्यायालय के बीच के सफर में एक प्रकार का भाषाई अवरोध साबित होता है. 
संसदीय राजभाषा समिति ने भी कहा है कि संविधान के अनुच्छेद 348 में संशोधन किया जाए ताकि विधाई विभाग प्रारूपण का कार्य हिंदी में कर सकें जो हमारी शासन दर्शन की मूल भावना "सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास" को चरितार्थ करेगा. उच्च न्यायालय और उच्चतम न्यायालय में दूसरी वैकल्पिक भाषा के रूप में हिंदी को स्वीकार करना आम जनता के लिए न्यायिक प्रक्रिया को आसान बनाने की दिशा में किया गया एक सार्थक कदम होगा.

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