चंचल
भारत के एक गवर्नर थे जिन्हें , बिहार , जम्मू कश्मीर , और मेघालय जैसे सूबों में बहैसियत गवर्नर के काम करने का मौका मिला . हर सूबे में उनका कार्यकाल किसी न किसी वजह से धारा के विरुद्ध खड़े होकर अपनी अलग की छाप छोड़ता रहा . भारत मे आजादी के बाद शुरू हुए सत्ता के गणतांत्रिक ताने बाने में हर सूबे का प्रथम नागरिक गवर्नर यानी राज्यपाल को माना गया क्यों कि यह पद सीधे राष्ट्रपति के प्रतिनिधि के रूप में स्थापित है . भारतीय गणतंत्र में इस सूबेदारी की व्यवस्था पर अक्सर उंगीलिया उठती रही कि यह ओहदा ' रबड़ स्टाम्प हैं ', 'हिज मास्टर्स वायस है ', यह 'शोभा का ओहदा' है वगैरह वगैरह . लेकिन बाज दफे इतिहास के पन्ने कुछ और कहने लगते हैं और यह ओहदा केवल ' शोभा ' भर नही है इसका अलग का वजूद है . नाम बहुत हैं पर यहां हम कुछ ही नाम गिना सकेंगे . डॉ संपूर्णा नंद , श्रीमती सरोजनी नायडू , वी सत्यनारायण रेड्डी , वगैरह जो अपने काम की वजह से आज भी याद किये जाते हैं . मेघालय के मौजूदा गवर्नर इसी फेहरिस्त में आते हैं .
कल जब मेघालय के राज्यपाल महामहिम सतपाल मलिक का अपने गृह जनपद मेरठ के बागपत में दिया गया भाषण चर्चा में चला तो कई मित्रों को इस भाषण के मजमून पर शक हुआ - ' कोई सरकारी चाल तो नही ? ' सरकार का भेजा गया कोई दूत तो नही जो आंदोलन में बैठे किसानों और सरकार के बीच संबंध तय करने की पहल कर रहा है ? वगैरह वगैरह .
जो लोग भी मलिक साहब को जानते हैं वे उनकी उस शख्सियत से वाकिफ हैं कि सतपाल मलिक सामने से जितना सरल , लचीला , मधुर , वगैरह दिखते हैं यह सच है और इतना ही सच यह भी है कि मलिक अंदर से अपने उसूल पर उतने ही दृढ़ और अडिग भी रहते हैं . कल बागपत की सभा मे सतपाल मलिक एक गवर्नर नही बोल रहा था , वह भाषण और उद्गार एक पके हुए सियासतदां का था , जो मुद्दे की गहराई , माजी का तसव्वुर और भविष्य की गति बता रहा था . यहां मलिक साहब न किसी उत्तेजना में हैं न ही उनपर जन दबाव है कि क्या बोलना है . मलिक जी बहुत शांत मन से देश मे चल रहे किसान आंदोलन के साथ खड़े होने की सार्वजनिक घोषणा कर रहे थे - हम किसान मांग के साथ हैं , हमने सरकार को समझाया कि टिकैत को गिरफ्तार मत करो . अव्वल तो किसान जायगा नही , और अगर खाली हाथ गया तो वह इसे याद रखेगा (?) सरदार तीन सौ साल तक याद रखता है . उसकी बात सरकार को मान लेना चाहिए . वगैरह . ' जनतंत्र में , गवर्नर केवल शोभा या हिज मास्टर्स वायस नही होता , यह बात एक गवर्नर बोल रहा है जनता के लिए , ओहदे के लिए , रवायत चलती रहे उसके लिए . तो कौन हैं ये सतपाल मलिक साहब ?
सतपाल मलिक बागपत के एक छोटे से गांव में , एक सामान्य परिवार में पैदा हुए विद्रोही तेवर के सियासतदां हैं . विधायक रहे , सांसद रहे , मंत्री रहे अब राज्यपाल हैं . जद्दोजहद इनकी जिंदगी के साथ चली है . गांव के प्राइमरी स्कूल से चलकर मेरठ कालेज तक पहुचना फिर समाजवादी युवन सभा के रूप में विद्यार्थी नेता की अगली कतार में खड़ा होना . छात्र संघ अध्यक्ष रहे . और भी बहुत कुछ .
नोट - यह आज की पोस्ट नही है , कल जब राज्यपालों का इतिहास लिखा जाएगा , यह उस इतिहास का हिस्सा है और इसे इसी दृष्टिकोण से पढ़ा जाना चाहिए . वरना हम यह भी तो लिख सकते थे कि युवजन राजनीति की भाग दौड़ में मेरठ के भाई सतपाल मलिक ने हमारे जैसे कितनो को भोजनपानी किराया तक मुहैया कराते रहे हैं , उधार ही मांग जांच कर . मिजाज अब भी वही है .
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