आरएलएसपी का तीसरी बार जेडीयू में विलय हो गया

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आरएलएसपी का तीसरी बार जेडीयू में विलय हो गया

आलोक कुमार 

पटना.बिहार व देश की जनभावनाओं का सम्मान करते हुए रालोसपा के सभी समर्पित एवं संघर्षवान साथियों के साथ बड़े भाई, आदरणीय मुख्यमंत्री श्री नीतीश कुमार जी की उपस्थिति में घर वापसी.करीब आठ साल के बाद जदयू में वापस हो गए हैं.उन्‍होंने जदयू से ही अलग होकर रालोसपा का गठन किया था.इस तरह पूर्व प्रदेश अध्यक्ष बशिष्ठ नारायण  
सिंह का कथन आज पूरा हो गया.उन्होंने रालोसपा उपेंद्र कुशवाहा के बारे में कहा था कि वे नजदीक में रहे है.नजदीक में रहे थे.नजदीक में रहेंगे.  

सामाजिक न्याय एवं लोकसमतावादी विचारधाराओं के साथ लोगों का विकास हो, इसके लिए सदैव तत्पर और समर्पित रहेंगे.यह सोचकर कभी राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन में बीजेपी के सहयोगी रहने वाले और बाद में विरोधी बने उपेंद्र कुशवाहा  ने अपने राजनीतिक दल राष्ट्रीय लोक समता पार्टी का जनता दल यूनाइटेड में विलय कर दिया है. विलय के बाद ही कुशवाहा को जदयू संसदीय दल का चेयरमैन नियुक्त कर दिया गया.  

विलय समारोह में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने राजद की तरफ निशाना करते हुए कहा कि कुछ लोग कह रहे थे कि उपेंद्र कुशवाहा केवल अकेले रह जायेंगे, लेकिन ऐसा नहीं दिख रहा. उन्होंने कहा कि विधानसभा चुनाव के बाद रालोसपा का जदयू में विलय को लेकर कई बार चर्चा और बातचीत होती रही. जदयू के तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष बशिष्ठ नारायण सिंह से भी उपेंद्र कुशवाहा की बात हो रही थी. 

उन्होंने कहा कि सभी लोगों को प्रसन्नता हो रही थी कि रालोसपा का विलय होने के बाद मिलकर काम करेंगे. सबसे पहले अपने साथियों से जरूर बात कर लीजिए. सब लोगों की सहमति बनेगी तो बहुत अच्छा होगा. इन लोगों ने बैठक की और इसमें निर्णय के आधार पर रालोसपा का विलय जदयू में हो गया. पहले भी हमलोग एक थे और अब फिर से एक हैं. हमलोग मिलकर काम करेंगे. हालांकि, अब जो कुछ भी दृश्य उपस्थित हुआ, उससे बहुत खुशी हो रही है. 

इस बीच उपेंद्र कुशवाहा और नीतीश कुमार के साथ को लेकर बिहार के राजनीतिक हलके में जमकर बयानबाजी हो रही है. जदयू और भाजपा इसे स्‍वभावि‍क और बिहार के हित में लिया गया फैसला बता रही है तो दूसरी तरफ कांग्रेस और राजद ने इसे अवसरवाद की पराकाष्‍ठा बताया है. इधर, राजद नेता तेजस्‍वी यादव के मुताबिक यह पूरा विलय ही फर्जी है. उन्‍होंने एक ट्वीट कर कहा है कि उपेंद्र कुशवाहा को पहले ही रालोसपा से बाहर कर दिया गया था और इस पार्टी का विलय राजद में हो चुका है. 

इस प्रकार रहा है उपेंद्र कुशवाहा की राजनीति सफरनामा.उपेंद्र लोक दल के महासचिव 1985 से 1988 तक रहे.लोक दल के राष्ट्रीय महासचिव 1993 तक.1995 वैशाली के जंदाहा से विधानसभा चुनाव लड़े और हारे.2000 में पहली बार जंदाहा से ही विधायक बने.2004 में विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष बने.फरवरी 2005 का चुनाव जनता दल से हार गए.अक्टूबर 2005 का चुनाव समस्तीपुर के दलसिंगसराय से हारे.2008 में नीतीश कुमार से अलग होकर एनसीपी में शामिल हुए और प्रदेश अध्यक्ष बने.2009 राष्ट्रीय समता पार्टी का गठन करते हैं और उसी साल उसे जदयू में विलय कर देते हैं. उन्हें नीतीश कुमार ने राज्यसभा भी भेज दिया.2012 फिर नीतीश कुमार से झंझट हुआ और राज्यसभा के साथ पार्टी से भी इस्तीफा दे दिया. जबकि 3 साल से अधिक समय राज्यसभा का बचा हुआ था.2013 में उपेंद्र कुशवाहा ने रालोसपा नाम से नई पार्टी बनाई, 3 मार्च को गांधी मैदान में रैली भी की.2014 के लोकसभा चुनाव में एनडीए में शामिल हो गए और 3 सीटों पर चुनाव लड़े, तीनों पर जीत मिली.लेकिन 2015 विधानसभा चुनाव में केवल दो ही सीट पर जीत मिल सकी.नीतीश कुमार के महागठबंधन छोड़ एनडीए में आने के बाद से उपेंद्र कुशवाहा की मुश्किलें बढ़ी और 2019 के चुनाव में महागठबंधन के साथ हो गए.2019 लोकसभा चुनाव में एक भी सीट पर जीत हासिल नहीं हुई.रालोसपा के दोनों विधायक और एक विधान पार्षद जदयू में शामिल हो गए. पार्टी का बड़ा हिस्सा जदयू में शामिल हो गया.2020 विधानसभा चुनाव में महागठबंधन से भी अलग हो गया और नया गठबंधन बना लिया. जिसमें खुद मुख्यमंत्री उम्मीदवार बने लेकिन एक भी सीट जीत नहीं पाए. 

बिहार विधानसभा चुनाव के बाद नीतीश से नजदीकियां बढ़ीं. अब जदयू में एक बार फिर से अपनी महत्वपूर्ण पारी खेलने वाले हैं. आज 14 मार्च 2021 को आरएलएसपी का तीसरी बार जेडीयू में विलय हो गया. 

पिछले दिनों उपेंद्र कुशवाहा के फैसले को लेकर रालोसपा का एक बड़ा हिस्सा आरजेडी में शामिल हो गया तब नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ने कहा कि अब रालोसपा में केवल उपेंद्र कुशवाहा ही बच गए हैं. पार्टी के नेताओं ने उन्हें पार्टी से अलग कर पूरी पार्टी को आरजेडी में विलय कर दिया है. 


'आरजेडी उपेंद्र कुशवाहा से डर रही है. उपेंद्र कुशवाहा बड़े नेता हैं. पार्टी पदाधिकारी और कुछ नेताओं के जाने से उन पर कोई असर पड़ने वाला नहीं है. जदयू में विलय से जदयू की ताकत बढ़ेगी और इसी से आरजेडी घबराई हुई है'.- विनोद शर्मा, बीजेपी प्रवक्ता 

'नीतीश कुमार विधानसभा चुनाव के बाद जिस प्रकार से तीसरे नंबर पर पहुंचे हैं. तो दूसरे दलों के नेताओं को लाकर अपनी पार्टी मजबूत करने की कोशिश कर रहे हैं. लेकिन उपेंद्र कुशवाहा शामिल भी हो जाएंगे तो कुछ होने वाला अब नहीं है'.-मृत्युंजय तिवारी, आरजेडी प्रवक्ता  

'उपेंद्र कुशवाहा की विचारधारा हम लोगों से मिलती है और उनके आने से निश्चित रूप से पार्टी को मजबूती मिलेगी'.- वशिष्ठ नारायण सिंह, वरिष्ठ नेता जदयू 

लव-कुश समीकरण पर सबसे ज्यादा जोर 
बिहार में विधानसभा चुनाव के बाद से जदयू लव कुश समीकरण पर सबसे ज्यादा जोर दे रही है. लव-कुश समीकरण नीतीश कुमार का कोर वोट माना जाता रहा है. कुशवाहा समाज से आने वाले एक के बाद एक बड़े नेता नीतीश कुमार का साथ छोड़ते गए. जिसका असर इस वोट बैंक पर पड़ा और नीतीश को अब लग रहा है एक बार फिर से इसे मजबूत किया जाए. क्योंकि जहां लव यानी कुर्मी का वोट 2:5 से 3% है तो वहीं, कुशवाहा का चार से 5% और दोनों मिलाकर 7 से 8% के बीच वोट बैंक हो जाता है और नीतीश इसे एक बार फिर से अपने पक्ष में करने में लगे हैं और इसीलिए उपेंद्र कुशवाहा जो कुश यानी कुशवाहा समाज के बड़े नेता माने जाते हैं, उसे अपने साथ जोड़ने की कोशिश कर रहे हैं.  

रालोसपा सबसे अधिक टूटने वाली पार्टी है.बिहार में रालोसपा सबसे अधिक टूटने वाली पार्टी है. उपेंद्र कुशवाहा ने 2013 में पार्टी का गठन किया था. उसके बाद से कई बार पार्टी टूट चुकी है. पार्टी के सांसद सभी विधायक और सभी विधान पार्षद उपेंद्र कुशवाहा को छोड़कर जदयू में शामिल हुए थे. पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष पिछले विधानसभा चुनाव में आरजेडी में शामिल हुए थे. अभी हाल में कार्यकारी अध्यक्ष महासचिव सहित पार्टी का बड़ा हिस्सा फिर से आरजेडी में शामिल हुआ है .उससे पहले भी कई दफा पार्टी टूटी और जदयू में रालोसपा के लोग शामिल हुए. कुल मिलाकर देखें तो रालोसपा में अब उपेंद्र कुशवाहा अकेले बचे दिखते हैं. ऐसे में देखना दिलचस्प है कि शामिल होने के बाद इस बार जदयू को कितनी मजबूत कर पाते हैं. साथ ही उपेंद्र कुशवाहा महत्वाकांक्षी नेताओं में से माने जाते हैं. ऐसे में इस बार शामिल होने के बाद कितने दिन जदयू में टिके रहेंगे यह भी देखना दिलचस्प होगा. 

उपेंद्र कुशवाहा को 2004 में पहली बार विधायक बनकर आने के बावजूद नीतीश कुमार ने कई वरिष्ठ विधायकों की अनदेखी करके बिहार विधानसभा में प्रतिपक्ष का नेता बनाया था। 2005 में बिहार में जब एनडीए की पूर्ण बहुमत की सरकार बनी तो चुनाव हार चुके उपेंद्र कुशवाहा नीतीश कैबिनेट में अहम मंत्री पद चाह रहे थे। लेकिन ऐसा नहीं हुआ. उपेंद्र कुशवाहा को मंत्री पद दिए जाने के बजाय उनसे सरकारी आवास तक छीन लिया गया. घर खाली करने में देरी हुई तो उनका सामान तक फेंक दिया गया.इसके बाद उपेंद्र कुशवाहा ने एनसीपी ज्वाइन कर लिया. वहीं इस दौरान ललन सिंह और नीतीश कुमार में काफी नजदीकियां दिखी.

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