यह लखनऊ का पुराना दस्तरख्वान हैं

गोवा की आजादी में लोहिया का योगदान पत्रकारों पर हमले के खिलाफ पटना में नागरिक प्रतिवाद सीएम के पीछे सीबीआई ठाकुर का कुआं'पर बवाल रूकने का नाम नहीं ले रहा भाजपा ने बिधूड़ी का कद और बढ़ाया आखिर मोदी है, तो मुमकिन है बिधूड़ी की सदस्य्ता रद्द करने की मांग रमेश बिधूडी तो मोहरा है आरएसएस ने महिला आरक्षण विधेयक का दबाव डाला और रविशंकर , हर्षवर्धन हंस रहे थे संजय गांधी अस्पताल के चार सौ कर्मचारी बेरोजगार महिला आरक्षण को तत्काल लागू करने से कौन रोक रहा है? स्मृति ईरानी और सोनिया गांधी आमने-सामने देवभूमि में समाजवादी शंखनाद भाजपाई तो उत्पात की तैयारी में हैं . दीपंकर भट्टाचार्य घोषी का उद्घोष , न रहे कोई मदहोश! भाजपा हटाओ-देश बचाओ अभियान की गई समीक्षा आचार्य विनोबा भावे को याद किया स्कीम वर्करों का पहला राष्ट्रीय सम्मेलन संपन्न क्या सोच रहे हैं मोदी ?

यह लखनऊ का पुराना दस्तरख्वान हैं

हफीज किदवई  
यह लखनऊ के पुराने दस्तरख्वान हैं . जिसके किनारे हम साथ बैठकर खाना खाया करते हैं . जिनपर बर्तन सजते,उसमें लज़ीज़ पकवान होते और मेहमान जिसकी रौनक होते थे . इधर बहुत रोज़ बाद यह दस्तरख्वान नज़र से गुज़रा, इसके किनारे शेर लिखे हुए थे . एकदम से बचपन नज़र के सामने दौड़ गया .  
मेरे एक रिश्तेदार शायर थे,वह अपने दस्तरख्वान पर खुदके शेर छपवाया करते थे . हम लज़ीज़ खाने, मेज़बान की मोहब्बत और ख़ुलूस के साथ साथ अदब की सैर भी कर लिया करते . अब कहाँ यह दस्तरख्वान मयस्सर और कहाँ साथ बैठकर खाने के मुबारक मौके मिलते हैं . 
अक्सर ज़रद और बसंती रँगों में यह छपे हुए दस्तरख्वान घर मे लगते लगते अपने रंग को इतना हल्का कर लेते की देखकर ही उनसे मोहब्बत हो जाती की यह कितनी बार लगे होंगे,कितने लोगों ने इनके इर्द गिर्द बैठकर साथ में खाना खाया होगा,कितनी बातें हुईं होंगी,जिसे इसने खामोश सुना होगा,खाने की लज़्ज़त बढ़ाने वाले यह दस्तरख्वान उनके लिए खास ही रहेंगे,जो ज़िन्दगी में कभी इनके किनारे बैठे होंगे . 
इस दस्तरख्वान पर शेर दर्ज है ... 
हरदे आली ज़र्फ़ दस्तरख्वान का, 
फ़र्ज़ ये इंसान पे है इंसान का, 
दोनों आलम में रहेगा सुर्खरू, 
हक़ अदा जिसने किया मेहमान का .. 
यह शेर मेहमान की ख़िदमत दुहाई दे रहा है,ऐसी ख़िदमत जो कि मेहमान का हक़ है . इस दौर में यह शेर कितना असर करेगा,जब न ही मेहमान आते हैं और न ही हम मेहमान बन पाते हैं . ख़ैर पिछले दौर को याद करके हलक क्या ही खट्टी करें . लखनऊ के चौक- नक्खास में ऐसे दस्तरख्वान छपवाए जाते थे . हमने तो तकिया के गिलाफ़, लिहाफ़ की फरद पर शेर छपे देखे हैं बल्कि छपवाए भी हैं . अदब से यह मोहब्बत भला और कहाँ थी,जब यह आम अवाम की मोहब्बत थी,तो अदब भी आसमान की ऊँचाई पर था . 
ऐसे दस्तरख्वान एक सुनहरा इतिहास खुद में छिपाए हैं . जब भी यह खुलते हैं, मेज़बान और मेहमान की मोहब्बत, रग़बत और ख़िदमत के साथ जुड़ी हुई उंसियत कि खुशबू हवा में बिखर जाती है और हम माज़ी में खोते चले जाते हैं . यह दस्तरख्वान तारीख हैं, जिन घरों में यह अपनी खूबियों के साथ मौजूद हैं, उन घरों की खुशबू हर दौर में महसूस की जा सकती है.... आप भी इन्हें देखिये और अवध की रवायतों को याद करिए और कलम को ज़ायके सँग बतियाते हुए महसूस कीजिये... 
जब ब्रिटिश को नमक मिर्चेदार लगा था !!

  • |

Comments

Subscribe

Receive updates and latest news direct from our team. Simply enter your email below :