डा श्यामाप्रसाद मुखर्जी को भी पढना चाहिए !

गोवा की आजादी में लोहिया का योगदान पत्रकारों पर हमले के खिलाफ पटना में नागरिक प्रतिवाद सीएम के पीछे सीबीआई ठाकुर का कुआं'पर बवाल रूकने का नाम नहीं ले रहा भाजपा ने बिधूड़ी का कद और बढ़ाया आखिर मोदी है, तो मुमकिन है बिधूड़ी की सदस्य्ता रद्द करने की मांग रमेश बिधूडी तो मोहरा है आरएसएस ने महिला आरक्षण विधेयक का दबाव डाला और रविशंकर , हर्षवर्धन हंस रहे थे संजय गांधी अस्पताल के चार सौ कर्मचारी बेरोजगार महिला आरक्षण को तत्काल लागू करने से कौन रोक रहा है? स्मृति ईरानी और सोनिया गांधी आमने-सामने देवभूमि में समाजवादी शंखनाद भाजपाई तो उत्पात की तैयारी में हैं . दीपंकर भट्टाचार्य घोषी का उद्घोष , न रहे कोई मदहोश! भाजपा हटाओ-देश बचाओ अभियान की गई समीक्षा आचार्य विनोबा भावे को याद किया स्कीम वर्करों का पहला राष्ट्रीय सम्मेलन संपन्न क्या सोच रहे हैं मोदी ?

डा श्यामाप्रसाद मुखर्जी को भी पढना चाहिए !

कनक तिवारी  
डा श्यामाप्रसाद मुखर्जी ने अल्पसंख्यक अधिकारों की उपसमिति में 17 अप्रेल 1947 को सुझावों  का एक नोट दिया था. मौजूदा भाजपा नेतृत्व को ये सुझाव चुनौती के साथ पेश किए जाएं तो दुनिया का अपने को सबसे बड़ा कहता कथित दल अपने पितृपुरुष को तर्पण तक नहीं कर पाएगा. डा. मुखर्जी ने मुख्यतः भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के 1931 के प्रस्तावों को समर्थन देते अपनी सिफारिशें लिखी थीं. उन्होंने उस देश के संविधान पर भी ज़्यादा भरोसा किया जो भारत में नरेन्द्र मोदी की अगुवाई में हमलावर बनकर घुस आया है. डा. मुखर्जी ने चीन के संविधान सहित सोवियत संविधान और कैनेडा तथा आयरलैंड के संविधानों की कंडिकाओं का भी उद्धरण और समर्थन दिया.  
डा. मुखर्जी के लिखित नोट में है किसी व्यक्ति को किसी अदालत के आदेश या मुनासिब तौर पर बनाए गए कानून के अभाव में गिरफ्तार, प्रतिबंधित, निरोधित या दंडित नहीं किया जाए और न ही उसकी कोई संपत्ति ऐसे आरोप लगाकर सरकार द्वारा जप्त की जा सके. उत्तरप्रदेश की योगी सरकार इसके ठीक उलट आचरण मूंछों पर ताव देकर कर रही है और डा. मुखर्जी की याद भी उसे नहीं होगी. नागरिक अधिकारों पर डकैती करते कानून उत्तर प्रदेश में बना है. जो पार्टी भारत को हिन्दू राष्ट्र बनाने का शोशा छोड़ती रहती है, क्या उसने पढ़ा है डाॅ. मुखर्जी ने लिखा था कि भारत का कोई एक खास (राष्ट्रीय) धर्म नहीं होगा. यह राज्य की जवाबदेही है कि वह सभी धर्मों से बराबरी का बर्ताव करेगी. क्या भाजपा में हिम्मत है कि कहे वह डा मुखर्जी से असहमत है? यह भी कहा कि हर नागरिक को सरकार को सम्बोधित याचिका और शिकायत देने का अधिकार होगा और उसके खिलाफ मुकदमा करने का भी. (ब्रिटिश तथा चीनी संविधान से उद्धृत).  
यह भी मुखर्जी ने लिखा कि हर नागरिक को अपने पत्र व्यवहार की गोपनीयता बनाए रखने का अधिकार होगा. कोई नरेन्द्र मोदी सरकार से पूछे कि पूरी दुनिया में अपनी फजीहत भी कराते मौजूदा सरकार नागरिकों की आज़ादी की गोपनीयता को किस तरह तार तार कर रही है. आधार कार्ड का प्रकरण हो. बैकों से संव्यवहार हो. सोशल मीडिया हो. इंटरनेट हो या अन्य जो भी तकनीकी ज्ञान के अवयव होते हैं. वहां घुसकर मोदी सरकार ने निजता के कानून का क्रूर उल्लंघन कई बार किया है और अब भी आमादा है. सुप्रीम कोर्ट तक को इस संबंध में संविधान पीठ बनाकर फैसला करना पड़ा है. सरकार का यह कृत्य तो डा मुखर्जी के अनुसार चीनी संविधान के अनुच्छेद 12 के खिलाफ है.  
दिलचस्प है भाजपा सरकार और पार्टी संगठन को बताना ज़रूरी है कि डा मुखर्जी ने अपने नोट में लिखा था कि कोई लोकसेवक गैरकानूनी तरीके से किसी व्यक्ति की आज़ादी या अधिकार में दखल देता है तो उसके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्यवाही तो हो. इसके अलावा उसे फौजदारी और दीवानी कानून में भी आरोपी बनाया जाए. पीड़ित नागरिक चाहे तो ऐसे कृत्यों के लिए वह संबंधित सरकार से हर्जाने का दावा कर सकता है. (अनुच्छेद 26 चीनी संविधान). देश में एक तो क्या लाखों प्रकरण हैं जिनमें मौजूदा केन्द्र सरकार की नकेल डाॅ. मुखर्जी के नोट की इमला में कसी जा सकती है. चाहे किसान आंदोलन हो. श्रमिक यूनियनों का खात्मा हो. आदिवासियों का विस्थापन हो. महिलाओं का रसूखदार नेताओं द्वारा बलात्कार हो या कोरोना पीड़ित लाखों गुमनाम देशवासियों की बेबसी और लाचारी के सरकारी कारण हों. मीडिया और नागरिक अधिकारों के कार्यकर्ताओं की जबरिया गिरफ्तारी हो. क्या हो रहा है डा0 मुखर्जी? हिन्दू-मुसलमान करने वाली भाजपा के पितृपुरुष ने कांग्रेस के प्रस्तावों पर निर्भर होकर कहा था कि अल्पसंख्यकों की संस्कृति, भाषा और लिपि की पूरी रक्षा की जाएगी. उन्हें अपनी शिक्षण और अन्य संस्थाएं चलाने और धर्म का पालन करने की पूरी आज़ादी होगी. क्या कहती है भाजपा उर्दू भाषा और मदरसों को लेकर? अब तो गुरुमुखी पढ़ने वालों को आतंकी और खालिस्तानी भी कहा जा रहा है!  
मुखर्जी ने तो यह भी कहा था कि सरकारी नौकरी के 50 प्रतिशत पदों को योग्यता के आधार पर भरा जाए और बाकी पदों को प्रत्येक समुदाय से आबादी के अनुपात में उम्मीदवार लेकर भरा जाए. क्या देश नौकरियों में यह अनुपात भाजपा लाने का वचन दे सकती है? यह भी डा मुखर्जी ने अपने नोट में लिखा था कि विधायिका और अन्य स्वायत्तशासी संस्थाओं में अल्पसंख्यकों का मुनासिब आनुपातिक संख्या में निर्वाचन या मनोनयन किया जाए. भाजपा तो कभी कभी पूरे राज्य में लोकसभा या विधानसभा चुनाव में एक भी टिकट अल्पसंख्यकों को नहीं देती. 14 वर्ष तक बच्चों को मुफ्त शिक्षा देने के अधिकार की सिफारिश करते उन्होंने लिखा था प्रदेश, जिला या नगरपालिक संस्थाओं के बजट में हर हालत में शिक्षा पर कुल बजट का 30 प्रतिशत खर्च किया जाए. है हिम्मत किसी भी सरकार की जो शिक्षा पर बजट का लगभग तिहाई तो क्या चौथाई खर्च करने की कहे भी? यह भी कि राज्य किसी को कोई उपाधि नहीं देगा. सावरकर जी का क्या होगा? राष्ट्रीय राजमार्ग पर धार्मिक भावना या भवन आदि बना रहा हो तो लोगों के यातायात में कोई दिक्कत पैदा नहीं करे. (कांग्रेस प्रस्ताव).  
महत्वपूर्ण है उन्होंने यह भी लिखा था कि भारत के हर नागरिक को हथियार रखने का अधिकार उस संबंध में बनाए गए विनियमों और आरक्षण आदि के आधार पर दिया जाएगा. सोचिए आज हर नागरिक के हाथ में हथियार होता! सरकारी अनुदान प्राप्त शिक्षण संस्थाओं में किसी भी विद्यार्थी को अपना धर्म छोड़कर अन्य धर्म संबंधी शिक्षा या औपचारिकता को लेकर कोई प्रतिबंध नहीं होगा. भारत में यदि रहना होगा, वन्देमातरम् कहना होगा का क्या होगा? महत्वपूर्ण है उन्होंने कहा था कि अल्पसंख्यकों द्वारा स्थापित स्कूल, काॅलेज, तकनीकी और अन्य संस्थाओं को राज्य से सहायता पाने का बराबर का अधिकार होगा जितना अन्य उसी तरह की सार्वजनिक संस्थाओं या बहुसंख्यक वर्ग की संस्थाओं के लिए दिया जा सकता है. किसी धार्मिक समुदाय को लेकर कोई विधेयक या प्रस्ताव विधायिका में प्रस्तुत किया जाना है, तो यदि उस प्रभावित धर्म के विधायकों में तीन चौथाई विरोध करें तो उस पर कोई कार्रवाई नहीं होगी. 

 

  • |

Comments

Subscribe

Receive updates and latest news direct from our team. Simply enter your email below :