केसरिया साफे में मुंह डाल कर कदमताल करना

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केसरिया साफे में मुंह डाल कर कदमताल करना

चंचल  
कई लोग  केसरिया साफे में मुंह डाल  कर ,हाथ पीछे बांध  , कदमताल कर रहे हैं .  इस वाकये पर कई बन्द खिड़कियां खुल रही है और तेजी से अंदेसा ,  अशुभ , टूट , बगावत वगैरह की ख़ुसूरफुसुर हो रही है . सियासत के लिए , समाज के लिए , बाद में कांग्रेस के लिए यह शुभ है , अभी या तो बोला नही जा रहा या फिर सुनाई नही पड़ रहा . जो भी हो , हमारे जैसे लोंगो के लिए यह शुभ है .  
     कांग्रेस के लिए यह कोई नई बात  नही है . दुनिया की अकेली जनतांत्रिक पार्टी है जो बार बार लांछन से घिरती है ,  यहां तक कि उस पर एक परिवार के एकाधिकारवाद का भी आरोप लगता आया है और वह टूटती है , बिखरती है , अब  डूबी , तब डूबी लेकिन थोड़े से अंतराल पर फिर खड़ी . कुछ ज्यादा ही ठसक के साथ . इसे टूट भर कह कर नही हटा जा सकता . इस टूट का स्थायी भाव है दलीय जनतंत्र . जो इस हद तक उभरता है कि अलग का एक  विचार अलग छटक कर खड़ा हो जाता है .  यह होता है परिमार्जन . यह परिमार्जन ही दल की रूह है .  
    गांधी प्रवेश के पूर्व की कांग्रेस बाल , गोपाल , पाल में ( बाल गंगाधर तिलक , गोपाल कृष्ण गोखले ,  विपिन चंद पाल )  बंटी चल  रही थी . गांधी जी के प्रवेश के बाद एक मजबूत स्तम्भ मोहम्मद अली जिन्ना  विचारों के चलते दूरी   बनाने लगे और अंत मे वहां चले गए जिसमे उनका कोई यकीन ही नही था . लेकिन गांधी बड़ी खूबसूरती से  धार्मिक दूरी पाटते रहे और अपने साथ मौलाना आजाद , डॉ जाकिर  हुसैन , रफी अहमद किदवई जैसे मूल्यवान शख्सियतों के साथ बने रहे . चौरी चौरा कांड के बाद कांग्रेस में बड़ी टूट हुई . मोती लाल नेहरू , मदन मोहन मालवीय , वगैरह कांग्रेस से अलग जाकर नई पार्टी बना लिए . बापू की हत्या के बाद 48 में फिर बड़ी टूटन हुई . सरदार पटेल ने कांग्रेस के अंदर के तमाम समाजवादियो को बाहर का रास्ता दिखा दिया . जे पी  , डॉ लोहिया , अशोक मेहता , आचार्य नरेंद्र देव ,  अच्युत पटवर्धन वगैरह बाहर हो गए . 63 में पंडित नेहरू ने प्रकारान्तर से कांग्रेस के अंदर की  सूबेदारी को तोड़ा जिसे कामराज प्लान कहा गया . 69 नेकीराम नगर कांग्रेस में बड़ी टूट हुई और कांग्रेस की स्थापित ताकत ने श्रीमती इंदिरा गांधी को बाहर कर दिया और पार्टी टूट गयी . कांग्रेस के विशाल विस्तार से बाहर फेंकी गई इंदिरागांधी अपने छोटे से कारवां को गति दी और पांच यंग टर्क बढ़ कर हुकूमत तक जा पहुंचे . यह आखिरी  सैद्धांतिक टकराव था . बाद में तो जो छोटे मोटे भगदड़ हुए वे सैद्धांतिक कम व्यक्तिगत ज्यादा रहे .  
     डॉ लोहिया कहते है - कांग्रेस तब टूटती है जब वह सत्ता के बाहर रहती है और समाजवादी तब बिखरता है जब वह सत्ता में आता है .  
    एक दिन हम भाई सलमान खुर्शीद के घर बैठे थे , गपिया रहे थे . सलमान भाई बहुत मजाकिया हैं जानता हूँ . बोले कांग्रेस टूटेगी क्या ? हमने कहा कांग्रेस का नुकसान नही होगा , तोड़क का नुकसान होगा .  
    वो कैसे ?  
 पहाड़ सी मशीन में आधे इंच का नोजल होता है जो मशीन को गति देता है उसे ईंधन पहुचाता है , बाज दफे उसे गलतफहमी हो जाती है कि हमारी वजह से मशीन है और वह छटक जाता है . आधे इंच का नोजल जब तक मशीन में है तभी तक उसकी अहमियत है बाहर गया तो तो कबाड़ के भाव जाता है .  
    - समाजवाद नही छूट रहा ?  
    - अब क्या छूटेगा . लेकिन कांग्रेस जिंदा रहेगी .  
    सलमान भाई मुस्कुराए - कैसे ?  
       -  हम देवकांत बरुआ नही है , लेकिन उसी मदरसे का तालिबे इल्म हूं  जिससे बरुआ साहब बावस्ता थे . काशी विश्व विद्यालय से . कांग्रेस के साथ देश का मुस्तकबिल बंधा है .  
     पुरानी बात है एक हफ्ते बाद राज्यसभा चैनल पर , भाई ज्ञानेंद्र पांडे के साथ बातचीत में इस पर विस्तार से चर्चा हुई है . राज्यसभा चैनल ने इस साक्षात्कार को बीसियों बार चलाया .  
         आज  कांग्रेस परिमार्जन में है . 
 

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