लममरदार कहते भये
चंचल
लममरदार की दुकान का आज उद्घाटन है .ठीक आठ बजे सबेरे .चौराहे पर लाल साहब के दुकान के ठीक बगल .' हर घर के दरवाजे पर सुल्ताना नाई गठिया से परेशान ,भचकते हुए सब को सूचित करते जा रहे हैं .बीच बीच मे हंसी , मजाक , ठिठोली साथ साथ चल रही है .यह पुराना रिवाज है , अब भी चला जा रहा है .
निमंत्रण बट गया .सुल्ताना लौट कर लममरदार के पास बैठ गए ।दोनो ने 'पैसल ' चाय पिया .दो चाय का भुगतान करना पड़ा - ई ससुरा उपी कभी न सुधरी .गुजरात गए हो सुल्ताना ? पैसल वहां मिलती है .एक पैसल लो दो जन आधा आधा करके पियो , और गुजराती ऐसे नही पीता , सुरुक सुरुक कर पिता है .पियेगा हिंया सुनाई पड़ेगा हुगली तक .
- लेकिन लममरदार दुकान कहाँ है ? - जहां राम , उन्हीं अजोधा .ई नई दुकान है .गुजरात मॉडल .- गुजरात मॉडल ?
- अबे जा परधान के घर से एक तख्ता उठाए आओ .कुछ तो भासन भूसन होगा .किसपे खड़े होकर फीता कटेगा ? ज बेटा , आहिस्ता आहिस्ता उठा लाओ .
गरज ये की सारे लुहाड़े , लुच्चे -लफंगे , चोर , चमचोर , बातूनी , गप्पी ,गंजेड़ी , शराबी सब के सब सो के उठे नही कि चौराहे की तरफ चल पड़े .आठ बजते बजते चौराहा फुल .
टीन उपधिया भाषन दे रहे हैं .हूबहू भाजपा .खड़ा होगा राजनाथ माफिक , आंख बंद करेगा अटल की तरह , बोलते बोलते मुह खुला रखेगा आडवाणी जैसा .पूरा गुण है .तिलकु सिंह जो खुद भाजपा के एजेंट हैं भुन भुनाए .
खामोस ! भाइयो और बहनों !
नवल उपधिया ताली पीट कर हंसे - बहनों कहाँ हैं ?
बोलो भाइयो और भाइयो ।' लममरदार ने रोका - बिघ्न न डाला जाए .बोलिये टीन ।'
टीन उपधिया बहुधंधी हैं .लकड़ी का व्यापार किये , मजा न मिला तो छोड़ दिये .हैंड पम्प की मरम्मती में लगे , सलाई रिंच कहीं गुम हो गई , मजा बिगड़ गया . चुनाव में एजेंट बने , मजा आ गया तब से मुतवातिर नेता बने घूम रहे हैं .वक्त बे वक्त भाषण दे कर गांव की इज्जत रोके पड़े है , वरना कौन है .
इस तरह लममरदार की दुकान खुल गयी .
- लममरदार ! दुकान किधर है बरखुरदार , जान रहें कहें , मगर साहब के बेटा जिये .(यह जो 'जान रहें , कहें , मगर साहेब क बेटा जिये ' कयूम मियां का तकिया कलाम है जो हर तीसरे सतर के बाद अपने आप मुह से चू पड़ता है .)
लममरदार ने ओसारे में बिछे बोरे पर करीने से फैलाई गई पुरानी गोरखपुरी चादर पर एक झाड़ू , प्लास्टिक की एक झिल्ली में गोबर और एक किनारे पुरानी फ़टी बही और धागे से बंधी पेंसिल रखी हुई थी .उसे दिखा कर बताया कि यह है दुकान ।और जनता जनार्दन पशोपेश में - यह दुकान है ?
अब बारी थी लममरदार की - टीन उपधिया के बगल खड़े हुए हाथ मे बही और पेंसिल . लममरदार खांसे , गला ठीक किया - यह देख रहे हैं यह बही है .बहीपार दूसरे होते है , यह है असल बही .और यह है पेंसिल .क्या है ? भोला जोर से बोला पिंसिन .उमर दर्जी ने जोरदार चपत लगाया - पेंसिल ना बोल सकते ? लममरदार ने हाथ उठाया ,अभय मुद्रा में - सांत सांत ! बदअमनी ना होए के चाही - सुना जाय ! ई बही आयी है मध्यप्रदेश के शिवपुरी से .बिल्कुल अलादीन का चिराग माफिक .सुनो मदमस्तो! बारुणि श्रोत का उद्गम स्थल खोज लिया गया है .साछात बारुणी देवी अपने हाथ की बनी देसी उपलब्ध कराती हैं .मध्य भारत मे किसी से भी पूछो ललिता राजे से मिलना है .घर तक पहुंचा देगा .कुछ लोंगो ने अनर्गल प्रचार किया कि इस देसी के चलते कई लोग प्राण त्याग दिए गलत बात है .शराब से होनेवाली मौत की जांच की जाय तो नतीजा क्लियर कट बताएगा कि यह मौत गलत पानी से हुई है .शराब से नही .
इस दुकान से जुड़कर आप सीधे बारुणि के संपर्क में आ सकते हैं .
- और यह गोबर का हौ ?
- किसने कहा गोबर है ? इसे लीद कहते हैं .लीद गोबर की उन्नति प्रजाति है जिन्हें गोबर खाने से परहेज है उनके लिए यह लीद बहुत मुफीद साबित हुई है .इसका सफल प्रयोग हाथरस भाजपा पार्षद जनाब अनूप वार्ष्णेय ने किया है .गधे और खच्चर की लीद से जायकेदार मसाला पूरे हिंदी पट्टी में बिक रहा है और लोग बहुत रुचि के साथ सेवन कर रहे हैं .हम यहां इसके मूल रूप में बेचेंगे .
- और यह झाड़ू ?
- किसने कहा झाड़ू ? अब तक यह झाड़ू था लेकिन खोज देखो इस झाड़ू से जीरा बनता है .
- वो कैसे ?
इसे बता रहे हैं जलालाबाद सहारनपुर के हरिनंदन सेठ .भारत माता की
जय .
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