चिखुरी चिचियाने -1
चंचल
चिखुरी की इस श्रृंखला का , प्रभात खबर में छपे चिखुरी से कोई रिश्ता नही है.वो चिखुरी बिहार में घूमते थे , भाई शिवानंद तिवारी के यहां जाकर ' भौजी ' से बनारस वापसी का किराया मागते थे , जेल में बंद लालू यादव की बिटिया पर घटिया और ओछी बात बोलकर जब मोदी ताली पिटवा रहे थे तब चिखुरी 'मीसा' बिटिया के पास खड़े उसे हौसला दे रहे थे , .जगदा भाई , लालमुनि चौबे , रामवचन पाण्डे के पुराने किस्से पर हंसते हंसते एड़ी रगड़ने लगते थे .ये सब पुरानी बातें हैं .चिखुरी बिहार से बाहर हैं का मतलब यह न लगाया जाए कि वे अब बिहार भूल गए हैं , चर्चा होगी .आज से जो चिखुरी आपसे मिलने आएंगे ये पूरालाल वाले हैं .पूरालाल एक गांव है, देश के हर गांव की तरह , बस कपड़ा लत्ता , बोली भाषा , रहन सहन भले ही बदल जाए पर बेलौस बात का रस और उसकी तासीर एक ही होगी .आज तक चिखुरी चिल्लाये जा रहे हैं , हर गांव से , उन्हें सुने तो सही .चिखुरियों की चीख जनतंत्र का कोई भरतू या लिजलिजा पाया नही है लेकिन जम्हूरी निजाम की खिसकाई जा रही हर ईंट पर दस्तक है .)
कल सुना आपने -
पारस नाथ सिंह ग्राम सेवक हैं .सरकार ने भेजा है , गांव में बिकास लगाएंगे .बिकास शब्द नया नही था लेकिन यह केवल दर्जा सात की किताब में दर्ज मिला रहा एक दो जगह वो भी पेड़ पौधे के साथ .मुंशी जी वही तो पढा रहे थे -
' एक छोटा सा बीज जब मिट्टी में पड़ता है और उसे उपयुक्त हवा पानी मिलने लगता है तो उसका विकास होता है और वह विकसित होकर बरगद बन जाता है .' क्या समझे ?
मुंशी गिरधारी लाल का सवाल दर्जा सात के बच्चों से था जो महुआ के पेड़ के नीचे, अपनी अपनी बोरी पर बैठे , बरगद को सुन रहे थे, लेकिन समझे का पूरक, मेड़ से गुजरती बुझारत बो ने दिया - है मुंशी जी ! जा घरे नाति भ बा , सोहर गवैया बोलाव .' मुंशी जी चौंके और लोग कहते हैं , उसी एन वक्त उन्होंने किताब पलट कर- 'राई से बीज से , पहाड़ सा बरगद' ? सब विकास .बस विकास .और मुंशी जी के नाती का नाम करन हुआ विकास .और विकास आगे चल कर बिकास हुआ .
नोट किया जाय पूरबी उत्तर प्रदेश की बोली में 'स श ष ' को बराबर कर दिया गया है .छोट , बड़ का फर्क नही है , इसी तरह व और ब भी बराबर मिलेंगे .यही बिकास अपने आठवें साल में पेचिस से परेशान हलाकान है ,इसे पूरा गांव जानता है . लेकिन ' ई बिकास का है ' जो ग्राम सेवक के झोले में है ? लममरदार कंजूस हैं लेकिन इसका मतलब ये तो नही कि मेहमान की खातिरदारी भूल गए हों .बगल में इशारा किये - 'लखन के भेज के कुछ दाना पानी का बंदोबस्त ' इस बात को अकबाल समझते उसके पहले ही मोख्तार साहब ने लोक लिया -
- ' सरकार का भेजी , खुद सरकार होती है , हम जानती है , कलकत्ते की बरन कम्पनी में काम करते बख्त सरकार की रुतबा देखी है .गुड़ पानी लाओ .'
मुख्तार साहब नाम से मुख्तार है मुख्तारी पेशे से कोई लेना देना नही .असल नाम कुछ और है लेकिन उस नाम को कोई नही जानता , मुख्तार साहब भी नही .दो कलम भी नही पास कर पाए थे कि कलकते भाग गए .कमा के लौटे तो भाषा स्त्री लिंग हो गयी मिली और भूषा में बंगाली मोड़ .धोती की एक फुकती कुर्ते के खीसे में और गर कुर्ता नही है तो दाये हाथ की चुटकी में .मुख्तार साहब जब भी किसी पढ़े लिखे से बात करेंगे , खड़ी भाषा मे, और जब भषा खड़ी होगी, तो वह कायदन स्त्री लिंग होगी .यह उनका अपना दर्शन है .आप को लग रहा होगा , कमबख्त क्यों इतना समय और शब्द दौड़ा रहा है एक चरित्र पर ?
- मित्र ! ये लोग दूर तक साथ चलेंगे , अगली बार हम मुख्तार के लिए बस मुह खोले नही कि आप के सामने मुख्तार साहब धोती की फुकती पकड़े खड़े हो जांयगे .और मुख्तार ही क्यों यहां गांव की खूबी है , पुरानी सिफत है हर चेहरा एक अलग की शख्सियत है , शहर की तरह वह भीड़ नही है .उसकी अलग की दास्तां हैं , तुर्रा यह कि हर दास्तां एक दूसरे से जुड़ी चिपकी हुई चलती चली जा रही है .इस गांव में सिपाही , कलेट्टर , जज , प्रिंसिपल , ररा , बोफोर्स , टुन्नी , वगैरह अनेक चरित्र है , आप सब से मिलेंगे .
पारस नाथ सिंह ग्रामसेवक के स्वागत में पूरा गांव जो पीपल के पेड़ के नीचे छितराया , अलग अलग ' रोजही धनधे ' में लगा था ,एक जगह आ गया .चिल्होर खेलते लड़कों की भीड़ ग्राम सबक की साइकिल की व्याख्या में व्यस्त हो गया , तो ' ट्वेन्टी नाइन ' के तासबाजों का खयाल पारस नाथ की शख्सियत में तास के पत्ते फेटने लगे .गांजे की धार में चढ़ी गांव की बदचलन औरतों का किस्सा रुक गया और ग्राम सेवक का चरित्र ' पूरा रंडीबाज लगता है ' पर आकर टिक गया .कीन उपाधिया
का हांका लगा - ' खटिया इधर लाव रे , चिखुरी दादा आ रहे हैं .'
Copyright @ 2019 All Right Reserved | Powred by eMag Technologies Pvt. Ltd.
Comments