सजा-ए-मौत पर बहस होनी चाहिए

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सजा-ए-मौत पर बहस होनी चाहिए

आलोक कुमार 
गोपालगंज.बिहार में 15 फरवरी को पटना में और19 फरवरी को गोपालगंज में मासूम से रेप कर उसकी हत्या करने के मामले में दोषी को कोर्ट ने फांसी की सजा सुना दी.महज चार दिनों के अंदर कोर्ट के द्वारा सजा -ए - मौत का ऐलान से दुष्कर्म करने वाले चेते नहीं है.बेतिया में दुष्कर्म करने में नाकाम होने पर किशोरी को गर्दन पर वार कर घायल कर दिया.वहीं दीघा पटना में मां के साथ बकझक होने पर घर से बाहर निकल दोस्त पर विश्वास कर होटल में रहने चली गयी.कथित बॉय फ्रेंड ने विश्वासघात कर दो अन्य दोस्तों को बुलाकर मौज मस्ती कर हवश को शांत किये. 
बिहार की राजधानी पटना में एक मां ने 5 वीं कक्षा में पढ़ने वाली बेटी से रेप करने वाले हैवान प्रिंसिपल को फांसी की सजा दिला ही दी.बिहार की राजधानी पटना में एक मासूम बच्ची के साथ हुए रेप के मामले में अदालत ने दोषी स्कूल प्रिंसिपल अरविंद कुमार को फांसी की सजा सुनाई है. जबकि दोषी शिक्षक अभिषेक को उम्रकैद की सजा मिली है. अरविंद ने स्कूल में पढ़ने वाली 11 साल की मासूम बच्ची के साथ बलात्कार किया था. इस मामले का खुलासा बच्ची के गर्भवती हो जाने पर हुआ था. 

यह शर्मनाक मामला सितंबर 2018 का है. जब पटना के फुलवारी शरीफ़ इलाके में मौजूद एक स्कूल में पढ़ने वाली 11 साल की बच्ची के साथ सामूहिक बलात्कार की घटना सामने आई थी. इस घटना का खुलासा तब हुआ था, जब बच्ची को पेट दर्द की शिकायत हुई और माता-पिता उसे डॉक्टर के पास ले गए थे. 

ये मामला न्यू सेंट्रल पब्लिक स्कूल का था. जहां 5वीं कक्षा की एक छात्रा गर्भवती हो गई थी. बच्ची के परिजनों ने थाने में शिकायत दर्ज कराई थी. बच्ची के मुताबिक स्कूल के संस्थापक सह प्रिंसिपल अरविंद कुमार और शिक्षक अभिषेक कुमार ने उसके साथ अपने चेम्बर में बलात्कार किया था.  

इस मामले का खुलासा होने के बाद आरोपी स्कूल प्रिंसिपल अरविंद कुमार और शिक्षक अभिषेक को गिरफ्तार कर लिया गया था. इसी मामले में सुनवाई करते हुए अदालत ने अरविंद कुमार और अभिषेक को दोषी करार दिया था. 

अब सोमवार को सिविल कोर्ट ने दोषी अरविंद को फांसी की सजा सुनाई है. जबकि बलात्कार में मदद करने के दोषी शिक्षक अभिषेक कुमार को उम्र कैद की सजा दी गई है.अदालत ने इस मामले की सुनवाई करते हुए इस केस को रेयरेस्ट ऑफ द रेयर केस माना है. इस केस को लेकर सबकी निगाहें अदालत की तरफ लगी हुई थी. 

पीड़िता की मां ने आरोपितों को सजा मिलने के बाद चैन की सांस ली. मुख्य आरोपित को सजा ए मौत के फैसले की खबर सुनते ही आंखों से खुशी के आंसू छलक पड़े.कहती हैं, मां सारे दु:ख-दर्द सह लेती है, लेकिन जब अपने बच्चे पर मुसीबत देखती है तो पूरी कायनात से लड़ जाती है.वह अक्सर बीमार रहती थी.कमर से लाचार होते हुए भी बेटी को इंसाफ दिलाने के लिए थाना, कोर्ट और अस्पताल का चक्कर लगाती रही. तीन महीने तक कमर पर पट्टी लगाकर बेटी के लिए दौड़ती रहीं.यहां तक कि अपनों ने भी मुंह मोड़ लिया. जिस किराये के घर में रहती थी वहां से निकाल दिया गया.लगातार आरोपितों के परिवार द्वारा जान से मारने की धमकी मिल रही थी. बेटी की जान बचाने के लिए पटना छोड़ दी. परिवार वाले उसे ही गलत कहने लगे.दूसरों से कर्ज लेकर घर चलाती रही, लेकिन बेटी को इंसाफ दिलाने के लिए जी-जान से जुटी रही. 

पटना से प्रकाशित हिंदुस्तान दैनिक की वरीय रिपोर्टर सविता कुमारी कहती हैं कि जिस खबर को लिखने पर मुझ पर स्टेशन डायरी की गई उस मामले में आज सजा-ए- मौत फुलवारीशरीफ रेप पीड़िता बच्ची को मिला न्याय. 15 फरवरी को सजा सुनायी गयी. 


बिहार के गोपालगंज जिले में रेप की घटना  

यह घटना अगस्त 2020 में हुई थी. रेप और हत्या की इस घटना को अंजाम देने के बाद आरोपी पत्नी समेत फरार हो गया था.मामला जिले के सिधवलिया थाना क्षेत्र के बखरौर से जुड़ा है जहां 25 अगस्त 2020 को 8 वर्षीय मासूम नाबालिग छात्रा का शव पड़ोस के घर में मिला था. बच्ची का शव मिलने से पूरे इलाके में सनसनी फैल गई थी. मासूम मृतका के शव को आरोपी के कमरे में बोरी से बरामद किया गया था. 
इस घटना को अंजाम देने के बाद हत्यारे पति-पत्नी मासूम की हत्या कर मौके से फरार हो गए थे.  

गोपालगंज अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश 06 सह पॉक्सो स्पेशल जज बालेंद्र शुक्ला के न्यायालय ने पॉक्सो एक्ट के इस मामले में एक आरोपी को दोनो पक्ष के दलील सुनने के बाद दोषी करार करते हुए फांसी की सजा सुनाई है. 


25 अगस्त 2020 को सिधवलिया थाने के बखरौर गांव में नौ वर्षीय बच्ची की उसी गांव के जय किशोर शाह ने रेप करने के बाद निर्मम हत्या कर दी थी और शव को घर में ही बोरे में रखकर फरार हो गया था. शक के आधार पर पुलिस ने घर का ताला तोड़कर बच्ची के शव को बरामद किया था. अभियोजन पक्ष से स्पेशल पीपी पॉक्सो दरोगा सिंह और बचाव पक्ष के अधिवक्ता अबू शमीम अंसारी की दलीलें सुनने के बाद कोर्ट ने आरोपी को दोषी पाकर फांसी की सजा सुनाई. 

पीपी दरोगा सिंह और लोक अभियोजक देवबंश गिरी ने बताया कि मामले में स्पीडी ट्रायल चल रहा था. आरोप गठन के बाद एक माह के अंदर सारी प्रक्रियाओं को पूरा करते हुए आरोपी जय किशोर साह को दोषी पाकर मृत्यु दण्ड की सजा दिलायी गई है. 

जिले के व्यवहार न्यायलय में ADG-6 की कोर्ट में शनिवार को छह महीने के भीतर रेप के दोषी को फांसी की सजा सुनाई गई है. अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश बालेंदु शुक्ला ने फैसला सुनाया है. स्पीडी ट्रायल के जरिए दोषी जयकिशोर साह को सजा सुनाई गई है. पिछले साल 25 अगस्त को दोषी जयकिशोर साह ने रेप को अंजाम दिया था. केस संख्या 187/20 के अंदर धारा 302, 201, 376-A के अलावा धारा 6 एवं 10 पास्को एक्ट के तहत FIR दर्ज की गई थी. अभियोजन पक्ष के वकील दरोगा सिंह और बचाव पक्ष के वकील आबू समीम अंसारी को सुनने के बाद न्यायालय ने फांसी की सजा सुनाई. 

कोर्ट ने 1 लाख 20 हजार रुपये का आर्थिक दंड भी लगाया है. अर्थ दंड न देने पर 10 साल का साधारण कारावास की सजा सुनाई गई है. साथ ही सरकार को छह साल का मुआवजा मृत पीड़िता के परिजनों को देने का आदेश दिया गया है. मामला सिंधवालिया थाना इलाके का है. दोषी जयकिशोर साह ने पड़ोस की 9 साल की बच्ची के साथ रेप किया था. रेप के बाद बच्ची की हत्या कर दी गई थी और घर के कैंपस में ही लाश को दफना दिया था. 

दोषी जयकिशोर साह के घर पर 9 साल की नाबालिग लड़की अक्सर आया करती थी. वो जयकिशोर साह के घर में बच्चे के साथ खेलने आती थी. पिछले 25 अगस्त को घर में किसी को नहीं देख जयकिशोर साह ने घिनौनी करतूत को अंजाम दिया. इसके बाद अपनी पहचान छिपाने के लिए बच्ची की हत्या कर दी थी. घर नहीं लौटने पर बच्ची के परिजन उसकी तलाश करने लगे थे. लेकिन बच्ची नहीं मिली थी. फिर पुलिस की जांच में पूरे मामले का खुलासा हुआ था, जिसके बाद जयकिशोर साह को गिरफ्तार कर लिया गया था. 

पॉक्सो ऐक्ट के तहत केस दर्ज  

बच्चों के शरीर के किसी भी अंग में लिंग या कोई और चीज़ डालना यौन उत्पीड़न की श्रेणी में आएगा. इसके अलावा उनके साथ किसी भी तरह का सेक्शुअल इंटरकोर्स, यौन शोषण और पोर्नोग्राफी यौन उत्पीड़न की श्रेणी में आएगा. अगर बच्चा मानसिक रूप से बीमार है या बच्चे से यौन अपराध करने वाला सैनिक, सरकारी अधिकारी या कोई ऐसा व्यक्ति है, जिस पर बच्चा भरोसा करता है, जैसे रिश्तेदार, पुलिस अफसर, टीचर या डॉक्टर, तो इसे और संगीन अपराध माना जाएगा. अगर कोई किसी नाबालिग लड़की को हॉर्मोन्स के इंजेक्शन देता है, ताकि वक्त के पहले उनके शरीर में बदलाव किया जा सके, तो ऐसे भी लोगों के खिलाफ पॉक्सो ऐक्ट के तहत केस दर्ज किया जाता है. 


ऐक्ट कहता है कि केस जितना गंभीर हो, सज़ा उतनी ही कड़ी होनी चाहिए. बाकी कम से कम 10 साल जेल की सज़ा तो होगी ही, जो उम्रकैद तक बढ़ सकती है और जुर्माना भी लग सकता है. बच्चों के पॉर्नॉग्राफिक मटीरियल रखने पर तीन साल तक की जेल और जुर्माना हो सकता है. अप्रैल 2018 में ही केंद्र सरकार ने पॉक्सो में एक अहम बदलाव किया है, जिसके तहत 12 साल से कम उम्र की बच्चियों से रेप करने पर मौत की सज़ा दी जाएगी. 


मानवाधिकार कार्यकर्ताओं का कहना है कि फांसी की सजा पर संसद और पूरे देश में बहस की जरूरत है.अपराध चाहे कितना ही घिनौना क्यों न हो, आधुनिक सभ्य समाज का तकाजा यही है कि अपराधी को प्रायश्चित, सुधार आदि के लिए एक अवसर जरूर मिलना चाहिए.यह तभी संभव है, जब फांसी पर लटकाने के बजाय अपराधी को जीवन की अंतिम सांस तक सलाखों के पीछे रखा जाए. 

सजा के बाद भी तीन विकल्प दरअसल, सुप्रीम कोर्ट से मौत की सजा पाए लोगों के सामने भी फैसले को चुनौती देने के लिए तीन विकल्प खुले रहते हैं. जिनमें पुनर्विचार याचिका, राष्ट्रपति के यहां दया याचिका और क्यूरेटिव याचिका का विकल्प शामिल हैं. ये विकल्प भी कहीं न कहीं इस सवाल के पैदा होने का कारण बनते नजर आते हैं. 
 

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