मगहर को खलीलाबाद से जोड़ने वाली अनोखी सुरंग

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मगहर को खलीलाबाद से जोड़ने वाली अनोखी सुरंग

मतीन अहमद अंसारी 
संतकबीर नगर. संतकबीर की निर्वाण स्थली मगहर को खलीलाबाद से जोड़ने वाली 400 साल से ज्यादा पुरानी अनोखी सुरंग संरक्षित धरोहरों की सूची में शामिल हो सकती है. करीब 9.4 किलोमीटर लंबी इस सुरंग का निर्माण 1680 में तत्कालीन मुगल चकलेदार (प्रशासक) खलीलुर्रहमान ने कराया था. 
सुरंग को विश्व धरोहर में शामिल कराने की पहल इंडियन नेशनल ट्रस्ट फॉर आर्ट एंड कल्चरल हेरिटेज (इंटेक) ने की है. इंटेक के चेयरमैन रिटायर मेजर जनरल एलके गुप्ता के समक्ष जिला ईकाई के संयोजक ई. महावीर कंडोई और सह संयोजक अचिन्त्य लाहिड़ी ने इसका प्रस्ताव रखा. इस प्रस्ताव पर उन्होंने सैंद्धांतिक सहमति जता दी. जल्द ही प्रस्ताव केन्द्र सरकार को भेजा जाएगा. 
अचिन्त्य लाहिड़ी ने बताया कि सुरंग को आर्किलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया ने बंद कर रखा है. इसे खोलने का प्रस्ताव भेजा गया है. अब तक सुरंग के अंदर सिर्फ 400 मीटर तक का ही सर्वे हुआ है. शेष का सर्वे होना बाकी है. इस सुरंग का नवीनीकरण इंटेक कराना चाहता है. इसके साथ ही कबीर की समाधि, मजार और गुफा का भी पुरातात्विक दृष्टि से संरक्षण एवं जीर्णोद्धार कराया जाएगा. 
पर्यटक स्थल के रूप में विकसित करना चाहता है इंटेक 
संयोजक ने बताया कि संत कबीर से संबंधित ये प्राचीन धरोहरें करोड़ों लोगों की आस्था से जुड़ी हैं. यह धरोहरें ही नहीं रहीं तो बाहर किए गए सुंदरीकरण का कोई औचित्व नहीं रहेगा. इनके जिर्णोद्धार के साथ ही इस क्षेत्र में पर्यटन के नए रास्ते खुलेंगे. उन्होंने बताया कि यह सुरंग 400 साल पहले की इंजीनियरिंग का नायाब नमूना है. इसके संरक्षण के लिए निर्माण की तकनीक को समझना होगा. इसके लिए इंटेक के विशेषज्ञ सुरंग की स्टडी भी करेंगे. 
सुरंग का इतिहास 
सन् 1680 में मुगल शासक औरंगजेब ने तेजतर्रार चकलेदार काजी खलीलुर्रहमान को मुगल साम्राज्य के खिलाफ चल रहे विद्रोह को दबाने के लिए भेजा था. उसी ने खलीलाबाद की स्थापना की. काजी ने सर्व प्रथम खलीलाबाद में रहने के लिए सुरक्षित महल बनवाया, इसी परिसर में वर्तमान में खलीलाबाद कोतवाली है. इसके बाद मगहर में मस्जिद बनवाई. खलीलाबाद के आसपास विद्रोह का माहौल था, लिहाजा काजी नमाज अदा करने मगहर स्थित शाही मस्जिद में जाते थे. खलीलुर्रहमान ने अपने विश्राम के लिए मगहर में आवास बनवाया था, जहां अब मदरसा एवं जामा मस्जिद संचालित है. बताया जाता है कि नमाज अदा करने के लिए काजी ने सुरंग का निर्माण कराया. यह सुरंग खलीलाबाद में काजी के महल से मगहर में मस्जिद तक जाती है. यह सुरंग 9.4 किलोमीटर लंबी और 20 फीट चौड़ी और 10 फीट ऊंची है. बताया जाता है कि काजी इस सुरंग में अपने सुरक्षाकर्मियों के साथ घोड़े पर बैठ कर जाते थे.

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