जंगल की नदी पर झूलता हुआ पुल

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जंगल की नदी पर झूलता हुआ पुल

अंबरीश कुमार  
हम जिस रेस्तरां में बैठे थे वहां आने का रास्ता एक पुल से था .झूले वाला पुल .हिलता डुलता .शायद आपने फिल्मों में देखा हो .एक तरफ बांस के बड़े दरख्त थे तो दूसरी तरह दूर तक जाता हुआ जंगल .नीचे बह रही नदी की आवाज भी सुनाई पद रही थी .पर बरसात की आवाज तो और ज्यादा थी .यह वायनाड का एक रिसार्ट था वैथ्री रिसार्ट .यहां तक पहुँचने के लिए बहुत मशक्कत करनी पड़ी थी .पर पहुंचने के बाद सारा कष्ट दूर हो गया .इससे पहले जंगल में भटकते हुए काफी देर हो चुकी थी .कोझिकोड के समुद्र तट से चले करीब दो घंटे तो हो ही चुके थे .बरसात हो चुकी थी और जंगल में दोपहर में ही शाम जैसा अहसास हो रहा था .वैथ्री का गेट किसी पुराने राजस्थानी हवेली जैसा था .पर बहुत ही हराभरा और भीगा हुआ .भीतर बांस के पेड़ भी काफी नजर आ रहे थे .एक छोटे से ताल से ऊपर एक और छोटा सा लकड़ी का पुल पार कर हम रिसेप्शन तक पहुंचे थे . 
एक बड़ा झूले वाला जंगल की नदी पर बना पुल पीछे छोड़ कर आये थे . लकड़ी के इंटीरियर वाला रिशेप्शन भी बहुत खूबसूरत था .बांस की टहनियां छत से नीचे तक आ गई थी जिससे पानी की धार बन गई थी .सामने एक छत वाला खुला खुला सा रेस्तरां था .चाय काफी दक्षिण भारतीय पकौड़े के साथ कई तरह का तटीय व्यंजन भी उपलब्ध था .मछली के व्यंजनों की विविधता थी और रात के खाने बाद स्वादिष्ट पायसम भी जो थोडा गरिष्ठ होता है आम स्वीट डिश के मुकाबले .  पानी बरस रहा था और एक मोटी धार नीचे गिर रही थी .करीब ढाई हजार फुट की उंचाई पर जंगल बीच यहां थोड़ी ठंढ ही थी .खासकर दोपहर के मुकाबले .हो सकता है अनवरत बरसात से मौसम ऐसा हो गया था .भीगा भीगा सा .यह कोझिकोड से तीस मील दूर पहाड़ का एक सैरगाह था .इस जंगल को वर्षा वन कहा जाता है . 
पर इस वर्षा वन में तो पहले भी आना हुआ है .अख़बार में सोनल मान सिंह का एक लेख पढ़ा तो उनसे हुई पुरानी मुलाक़ात याद आ गई .कालीकट भी याद आया और उमेश सिंह चौहान साहब भी .यही वह शहर है जहां पुर्तगाल से आकर वास्को डी गामा उतरा था .देश में पुर्तगालियों का प्रवेश द्वार .फोटो में वह समुद्र तट भी है तो वास्को का स्मारक भी . नब्बे के दशक की बात है .कालीकट महोत्सव देखने के लिए चेन्नई से कालीकट पहुंचे थे ट्रेन से .सुबह के पांच बजे थे .विश्विद्यालय के पुराने साथी और कालीकट के कलेक्टर चौहान साहब स्टेशन आए थे .नई जगह थी इसलिए उनके आने से सुविधा हो गई .बताया कि वे घंटे भर भर पहले आए थे फिल्म अभिनेत्री मीनाक्षी शेषाद्रि को लेने .वे ही आयोजक थे इसलिए दौड़ धूप भी कर रहे थे .शहर के बीच का होटल था नाम संभवतः मालाबार पैलेस था .लाबी में प्रवेश करते ही पानी के पुराने जहाज का बड़ा सा माडल रखा हुआ था . 
आकाश के लिए यह अजूबा सा था इसलिए वहां से हटा तो विशाल एक्युरियम में शार्क मछली देखने लगा .हम लोग ऊपर की दूसरी मंजिल पर रुके हुए थे .बगल में नौशाद ,नृत्यांगना सोनल मानसिंह और मीनाक्षी शेषाद्रि भी .नौशाद से यही शाम को मुलाकात हुई .लखनऊ से लेकर मुंबई के किस्से सुनाने लगे .अच्छा लगा उनसे मिल कर .फिल्म ,साहित्य और संगीत नृत्य के क्षेत्र में अपनी कोई खास जानकारी नहीं रही है .आम दर्शक की तरह ऐसे मशहूर लोगों से मिलकर अच्छा लगता है . रात को बताया गया कि डिनर सोनल मान सिंह के साथ नीचे रेस्तरां में है .हम कुछ मिनट पहले पहुंच गए थे .कुछ देर में सोनल मानसिंह भी आई .परिचय पहले ही हो चुका था .उन्होंने सरसों में बनी मछली और चावल मंगाया .बताया कि कई घंटे की मेहनत के बाद उनका प्रिय भोजन यही होता है .सविता उनसे नृत्य की शुरुआत के बारे में देर तक बात करती रही .कई घंटे तक रियाज करना फिर कार्यक्रम .यह कार्यक्रम समुद्र तट पर था जिसकी रिपोर्ट भी जनसत्ता मे दी थी हालांकि नृत्य संगीत के कार्यक्रम के बारे में पहले कभी लिखा नहीं था .इस दौरे में ही वह समद्र तट देखा जहां पुर्तगाल से आकर वास्को उतरा था .वह अकेले नहीं आया एक संस्कृति के साथ आया जिसने तटीय इलाकों में बहुत कुछ बदल दिया .खानपान ,वास्तुशिल्प से लेकर रीति रिवाज तक . गोवा उदाहरण है .  
जंगल में घूमते हुए कई क्षण ऐसे आए है जो कभी भूलते नहीं .ऐसा ही एक यात्रा केरल के वायनाड जिला के जंगलों की है .जाना था वायनाड के जंगल के बीच बने वैथ्री रिसार्ट में .इससे पहले पुकोट झील में कुछ देर रुके और बोटिंग भी की .कालीकट से करीब सौ किलोमीटर दूर वायनाड के जंगलों में आगे बढे तो मौसम भी बदल चुका था और नहाया हुए जंगल में पक्षियों की आवाज गूंज रही थी .जंगल का रास्ता भी काफी उबड़ खाबड़ था और कई जगह लगता गाड़ी फंस जाएगी .इससे पहले ड्राइवर चाय बागान घुमाने के साथ काली मिर्च की बेल के दर्शन करा चुका था .फोटो साभार 

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