किस्से फिराक और निराला के

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किस्से फिराक और निराला के

डा शारिक़ अहमद ख़ान 

आज निराला की जयंती है.निराला के किस्से बहुत मशहूर हैं खासकर फ़िराक से जुड़े हुए .वे एक दूसरे से खूब लड़ते थे तो एक दूसरे के बिना रह भी नहीं पाते थे .संयोग से आज मटन बना तो याद आया कि निराला को हड्डी लगा मटन क़लिया ख़ूब पसंद था,वो गोश्त के शौक़ीन थे.अब निराला के पास इतने पैसे तो होते नहीं थे कि जब चाहें गोश्त खा सकें,क्योंकि वो फक्कड़ मस्त शख़्स थे और पैसे उनके पास टिकते ही नहीं थे,निराला ने कभी चाहा भी नहीं कि उनके ऊपर लक्ष्मी की कृपा हो,चाहते तो हो जाती,लिहाज़ा निराला पर सरस्वती की कृपा तो रही,लक्ष्मी की नहीं रही.निराला का गोश्त का शौक़ फ़िराक़ साहब को पता था,फ़िराक़ साहब निराला से झगड़ते भी और निराला को प्रेम भी करते,झगड़ा किसी निजी बात पर नहीं होता,बस उसी हिंदी-उर्दू मसले पर होता या फिर तब होता जब फ़िराक़ निराला से कोई कविता सुनाने को कहते और जब निराला सुना चुकते तो फ़िराक़ उसमें कमियाँ निकाल देते.बस फिर क्या था,निराला गरज पड़ते और फ़िराक़ भी बरस पड़ते,झगड़ा इतना ज़ोरदार होता कि मानो छतें हिलने लगतीं,बस ज़बानी झगड़ा होता.हाथापाई की नौबत कभी नहीं आयी. 
फ़िराक़ चाहते कि झगड़ा हो और निराला को गोश्त भी मिले इसलिए अक्सर हर इतवार को निराला को फ़िराक़ भोजन पर बुलाया करते,रिक्शा भेजा करते,उसी रिक्शे से निराला आते और जाते,निराला को पैदल चलना पसंद था लिहाज़ा वापसी में निराला कभी-कभार पैदल भी चले जाया करते.भोजन में निराला की पसंद का हड्डी लगा बकरे का क़ोरमा या क़लिया फ़िराक़ साहब बनवाया करते,बार-बार निराला से पूछते कि कुछ और लेंगे,कुछ और चाहिए,फ़िराक़ निराला को प्रेम से उनकी पसंद का गोश्त खाते देख बहुत ख़ुश हुआ करते,क्योंकि निराला की ख़ुराक ज़्यादा थी और फ़िराक़ की कम,इस वजह से जिस दिन निराला को फ़िराक़ दावत पर बुलाते उस दिन गोश्त बहुत ज़्यादा मंगाते.फ़िराक़ कहा करते कि मैं चाहता था कि निराला मेरे घर के बगल में ही किसी बंगले में रहते,मेरी इतनी इन्कम होती कि मैं इनके खाने-पीने का सब इंतेज़ाम कर पाता,निराला को रोज़ गोश्त और शराब मिलती रहे इसका प्रबंध कर पाता,निराला की सेवा के लिए नौकर लगा पाता,निराला की ज़रा भी तबीयत नासाज हो तो डॉक्टर बुलवा पाता,लेकिन मेरी सब ख़्वाहिशें धरी की धरी रह गईं,मेरी इतनी इन्कम ही नहीं है और मेरे ख़ुद के ख़र्च बड़े हैं और नौकरों की चोरी के लिए भी मुझे पैसा जमा करना पड़ता है ताकि नौकर मेरे पैसे चुराकर ख़ुश रहें.बगल के बंगले में निराला रहें इसका ये मतलब नहीं कि फ़िराक़ चाहते थे कि निराला हर वक़्त उनकी खोपड़ी पर सवार रहें या फ़िराक़ हरदम निराला की खोपड़ी पर बैठे रहें,ताकि दोनों की चेतना में ख़लल पड़ जाए,बल्कि फ़िराक़ चाहते थे कि निराला बगल में रहेंगे तो उनका जब मन करेगा वो फ़िराक़ के पास आ जाया करेंगे और फ़िराक़ का जब मन करेगा उनके पास जा बैठेंगे.फ़िराक़ से एक बार पूछा गया कि निराला किस कोटि के इंसान हैं.फ़िराक़ ने कहा कम से कम मुझसे तो बड़े ही हैं.क्योंकि उन्होंने कभी मेरे पैसे की शराब नहीं पी.जब भी आते अपनी जेब से तुड़ा-मुड़ा छोटा नोट निकालते और उससे ठर्रा मंगाया करते.कई बार ऐसा भी होता कि निराला फ़िराक़ की दावत में अपनी सोंटापीट अंग्रेज़ी बोलने लगते,क्योंकि निराला को अंग्रेज़ी अच्छी नहीं आती थी,ऐसा होने पर फ़िराक़ उनका जवाब हिंदी में देते और कभी ये नहीं कहा कि आपको अच्छी अंग्रेज़ी नहीं आती. 
निराला ख़ुद को सभी कवियों और शायरों से बड़ा मानते,एक बार हुआ ये कि संगम किनारे चाँदनी रात में एक मकान की छत की ज़मीन पर बिछी चाँदनी मतलब गद्दे के ऊपर बिछी सफ़ेद चादर पर काव्य गोष्ठी थी,इलाहाबाद के सभी शायर और कवि तशरीफ़ रखते थे,फ़िराक़ भी थे,महादेवी वर्मा भी,पंत भी थे और बच्चन भी.आख़िर में निराला आए,निराला ने आते ही कहा कि मैं ज़मीन पर नहीं बैठूँगा,मैं 'कुशासन' पर बैठूँगा,क्योंकि मेरा स्थान सबसे ऊँचा है.अब कुर्सी मंगाई गई और निराला उसके ऊपर बैठ गए.उस काव्य गोष्ठी में सादा भोजन ही बना था और शराब की जगह कुल्हड़ में भांग तक्सीम हो रही थी,निराला कई कुल्हड़ पी गए,फिर बहक गए,लगे अंग्रेज़ी में बताने कि जब ग्रेट ब्रिटेन की क्वीन से उनकी भेंट हुई तो क्वीन ने अपने सिर से ताज निकालकर मेरे सिर पर रख दिया और मुझे सिंहासन पर बैठा दिया,निराला भंग की तरंग में ख़ूब बोल रहे थे और लोग मज़ा ले रहे थे.बहरहाल,फ़िराक़ कहते कि निराला के लिए ये दुनिया अजनबियों की सराय है,निराला अपनों के बीच अजनबियों जैसी ज़िन्दगी बसर कर रहे हैं,मेरे पास तो कोई बेटा-वेटा नहीं है,निराला के पास तो कई हैं,उनको बेटों से कौन सा आराम मिल रहा है,बेटा-वेटा सब भ्रम है,कोई किसी का नहीं होता,निराला का हाल देखो तो दुख होता है,इतना बड़ा कवि और इसकी ज़िन्दगी व्यर्थ जा रही है,अनसंग सा ही है इस दौर में,आगे की कौन कहे,आगे भी लगता है अनसंग ही रहेगा.ख़ैर,बहुत से लोग जानकारी के अभाव में निराला और फ़िराक़ को एक दूसरे का दुश्मन मानते हैं,जबकि ऐसा नहीं था.एक बार निराला से मिलने कुछ लोग आए,निराला ने कहा कि आप लोग फ़िराक़ से मिले,वो हमसे बड़े कवि हैं.जाइये पहले फ़िराक़ से मिल आइये,अगर फ़िराक़ आप लोगों पर नाराज़ हो जाएं या गालियाँ ही बकने लगें तो घबराइयेगा नहीं.धैर्य से सुनिएगा,ऐसा करने पर आप लोग एक महान शायर के गाली देने के अंदाज़ से परिचित हो जाएंगे और वो गालियाँ भी शायराना होंगी. 
इसी तरह से एक बार फ़िराक़ से कुछ लोग मिलने आए तो फ़िराक़ ने कहा कि जाइये पहले निराला से मिल आइये,वो हमसे बड़े कवि हैं,उनसे कह दीजिएगा कि फ़िराक़ आपको याद कर रहे थे,लोग जब निराला के पास गए और बताया कि फ़िराक़ ने भेजा है तो निराला की आँखों में आँसू आ गए.बहरहाल,निराला की कहाँ तक बातें करें,एक घटना और बताकर समाप्त करते हैं,वो ये कि एक बार निराला को रेडियो स्टेशन पर कविता पाठ करने उनके परिचित ने बुलाया,तब रेडियो में उर्दू का ही जलवा था,अब उर्दू में बिना मात्रा के रवानी में लिखा जाता है लिहाज़ा जब निराला आए तो एक पुर्ज़े पर निराला का पूरा नाम उर्दू में लिखकर परिचित महोदय ने उद्घोषक को पकड़या,वो निराला को नहीं जानके थे,उन्होंने माइक पर कहा कि अब हमारे रेडियो स्टेशन पर 'सूरकांता तरपाठी नराला ' आ चुके हैं.ये सुन निराला ने परिचित का गिरेबान पकड़ लिया,कहा कि 'सरऊ हमारा नाम बिगाड़ने के लिए हमें यहाँ बुलाए हो '.रेडियो स्टेशन पर ख़ूब हंगामा हुआ,फिर त्रुटि सुधार कर निराला का सही नाम पुकारा गया. 
 

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