सरकार कमजोर है इसलिए जुल्म का सहारा ले रही है

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सरकार कमजोर है इसलिए जुल्म का सहारा ले रही है

हिसाम सिद्दीक़ी  
दस फरवरी को लोक सभा में वजीर-ए-आजम नरेन्द्र मोदी का यह बयान कि दहशतगर्दों की रिहाई का मतालबा करके कुछ लोगों ने किसान आंदोलन को नापाक (अपवित्र) किया है, उन बेगुनाहों के मुस्तकबिल के लिए इंतेहाई खतरनाक है जो दिल्ली पुलिस के जरिए फर्जी मामलात में अनलाफुल एक्टिवीटीज प्रीवेशन एक्ट (यूएपीए) और राष्ट्रद्रोह जैसी संगीन दफाओं के तहत जेलों में डाले गए हैं. अभी तक पुलिस ने न तो उन सभी के खिलाफ चार्जशीट ही पेश की है और न उनका अदालत में ट्रायल ही शुरू हुआ है. ऐसे लोगों में उमर खालिद, मीरान हैदर, नताश नरवाल, दीवांगना कलिता, खालिद सैफी, शिफा उर्रहमान, आसिफ इकबाल तंहा, सफूरा जरगर और शरजील इमाम वगैरह शामिल हैं. पीएम मोदी के मुताबिक अदालती फैसला कभी भी आए यह सभी दहशतगर्द हैं. इन्हीं में से कई लोगों के फोटो कटआउट लेकर आठ जनवरी को इंण्टरनेशनल ह्यूमन राइट्स डे पर किसानों ने इनकी रिहाई के लिए आवाज उठाई थी. अब क्या पीएम मोदी के इस बयान का असर उन अदालतों पर नहीं पड़ेगा जिनमें इन लोगों के मुकदमात की सुनवाई होनी है. इस किस्म का बयान शायद मोदी ही दे सकते हैं जो दहशतगर्दी का मुकदमा झेल रही बीमारी के बहाने जमानत पर छूटने वाली प्रज्ञा सिंह को तो जितवा कर लोक सभा में बिठाते हैं लेकिन अण्डर ट्रायल मुल्जिमान को दहशतगर्द कहते हैं. 
मोदी सिर्फ खतरनाक बातें बोलते ही नहीं हैं उनकी सरकार जिस तरह की कार्रवाइयां कर रही है वह उनकी बातों से ज्यादा खतरनाक है. मसलन जो कोई भी उनके किसी भी फैसले की मुखालिफत या तंकीद करे वह देशद्रोही बना दिया जाता है. सरकार कमजोर है इसलिए जुल्म और कानूनी आतंक का सहारा ले रही है. मोदी को देखकर ही उत्तर प्रदेश सरकार भी उन्हीं के रास्ते पर चल रही है जो कोई योगी सरकार के खिलाफ दिखता है उसपर गैंगस्टर एक्ट अनलाफुल एक्टिवीटीज प्रीवेशन एक्ट और देशद्रोह जैसे मुकदमे ठोक दिए जाते हैं. खैर हम बात कर रहे थे मोदी सरकार की कमजोरी और जुल्म की, सरकार और उसकी दिल्ली पुलिस का हाल यह है कि आंध्र प्रदेश के आदिवासी कवि वरवरा राव, रोना विल्सन, सुधा भारद्वाज, आनंद तेलतुम्बड़े, गौतम नवलखा और फादर स्टेन स्वामी वगैरह को इस इल्जाम में जेलों में डाल रखा है कि यह लोग सोशल मीडिया और लैपटाप व कम्प्यूटर मैसेज के जरिए बड़े पैमाने पर फण्डिंग हासिल करने की कोशिश कर रहे थे ताकि देश के वजीर-ए-आजम को जानी नुक्सान पहुचा कर सरकार का तख्ता पलट कराया जा सके. 
शर्म आती है इस किस्म की कहानी गढने वाली पुलिस पर और उससे ज्यादा उन अदालतों पर जो पुलिस रिपोर्ट को सच मान कर इन लोगों को जेलों में डाले हुए है. कोई तसव्वुर भी नहीं कर सकता कि भारत जैसे जम्हूरी मुल्क में सरकार का तख्ता पलटा जा सकता है या अमरीकी सदर और इस्राईली वजीर-ए-आजम से भी बेहतर सिक्योरिटी में रहने वाले भारत के वजीर-ए-आजम को कोई जानी या जिस्मानी नुक्सान पहुंचा सकता है. यह मुमकिन ही नहीं है. इंदिरा गांधी को कत्ल कर दिया गया था इसलिए उन्हें मारने वाले उनके ही सिक्योरिटी में शामिल थे और इण्टेलीजेंस रिपोर्ट को नजर अंदाज करके इंदिरा गांधी ने उन दोनों कातिलों को अपने सिक्योरिटी स्टाफ से हटाया नहीं था. अब ऐसा मुमकिन नहीं है फिर भी साठ से अस्सी-पच्चासी साल के आधा दर्जन से ज्यादा लोग इस खतरे के इल्जाम में जेलों में सड़ रहे हैं. 
वजीर-ए-आजम मोदी और उनकी पार्टी अक्सर इंदिरा गांधी के जरिए पच्चीस (25) जून 1975 को देश पर नाफिज की गई इमरजेंसी की मजम्मत और तंकीद करते रहते हैं. आज तो देश उससे भी बुरे दौर से गुजर रहा है. इंदिरा गांधी की इमरजेंसी सही थी या गलत यह बहस का मौजूअ हो सकता है. लेकिन उन्होने बाकायदा उस वक्त के राष्ट्रपति फख्रउद्दीन अली अहमद की मंजूरी के बाद इमरजेंसी का एलान किया था और फिर पार्लियामेंट से भी उसपर मंजूरी की मोहर लगवाई थी. आज तो बगैर किसी एलान के इमरजेसी मुल्क पर थोपी जा चुकी है. पुलिस की मदद से मोदी सरकार ेतीन बातों को इमरजेसी की तरह इस्तेमाल कर रही है एक देशद्रोह, दूसरा दुनिया में देश की तस्वीर (छवि) खराब करने का इल्जाम और तीसरा सरकार को बदनाम करने का जुर्म आखिर यह कौन से कानून हैं जिनका संविधान और सीआरपीसी में कहीं भी कोई जिक्र नहीं है फिर इन फर्जी कवानीन के तहत बड़ी तादाद में सरकार मोदी और आरएसएस मुखालिफीन की गिरफ्तारियां हो रही हैं. 
इमरजेंसी में पूरे देश में एक भी शख्स पर देशद्रोह का मुकदमा दर्ज नहीं किया गया था. आज मोदी सरकार की बगैर एलान की इमरजेंसी की हालत यह है कि खुद मोदी सरकार की होम मिनिस्ट्री में जूनियर वजीर जी कृष्णा रेड्डी की जानिब से दस फरवरी को एक सवाल के तहरीरी जवाब में नेशनल क्राइम रिकार्ड ब्यूरो के रिकार्ड के मुताबिक राज्य सभा को बताया कि 2016 से 2019 तक मुल्क में पांच हजार नौ सौ बाइस (5922) लोगों को अनलाफुल एक्टिवीटीज प्रीवेशन एक्ट (यूएपीए) के तहत गिरफ्तार किया गया था. इनमें से सिर्फ एक सौ बत्तीस (132) को ही कुसूरवार पाया गया बाकी सभी अदालतों से बरी हो गए. 2019 से फरवरी 2021 तक कितने लोगों पर देशद्रोह और यूएपीए जैसी संगीन दफाओं का इस्तेमाल किया गया सरकार यह बताने के लिए तैयार नहीं है क्योकि इस मुद्दत में शायद यूएपीए और देशद्रोह के इल्जाम में फंसाए गए लोगों की तादाद  पन्द्रह हजार से ज्यादा हो चुकी होगी. देशद्रोह का इल्जाम तो इस तरह लगाया जा रहा है जैसे किसी जमाने में पुलिस वाले किसी शख्स को जेल भेजने के लिए उसके पास से चाकू या जंग आलूद कट्टा या पुड़िया में राख बांध कर ड्रग बरामदगी लिख कर गिरफ्तार शख्स को जेल भेज दिया करती थी. 
दिल्ली पुलिस ने इंतेहा कर दी जब छब्बीस जनवरी को महज एक खबर ट्वीट करने और सोशल मीडिया पर चलाने की वजह से चार टर्म के लोक सभा मेम्बर साबिक मरकजी वजीर शशि थरूर और सीनियर सहाफी राजदीप सरदेसाई समेत आधा दर्जन से ज्यादा सहाफियों के खिलाफ देशद्रोह का मुकदमा दर्ज कर दिया उन सभी को गिरफ्तारी से बचने के लिए सुप्रीम कोर्ट जाना पड़ा. इससे पहले एक और सीनियर सहाफी विनोद दुआ के खिलाफ बीजेपी के एक मामूली वर्कर की रिपोर्ट पर हिमाचल प्रदेश में देशद्रोह का मुकदमा कायम किया जा चुका है. छब्बीस जनवरी को आईटीओ पर पुलिस हेडक्वार्टर के सामने टै्रक्टर रैली में शामिल उत्तर प्रदेश के रामपुर के एक पच्चीस साल के सिख नौजवान नवरीत सिंह का टै्रक्टर पलटते देखा गया उस हादसे मेंं उसकी मौत हो गई बाद में पता चला कि उसे पुलिस की गोली लगी थी. तभी टै्रक्टर पर उसका काबू खत्म हुआ और वह बैरिकेट से टकरा कर उलट गया. नवरीत की मौके पर मौत हो गयी. उसके दादा का कहना है कि गोली उसके मुंह पर लगी और पीछे निकल गयी दादा ने उसकी जांच के लिए अदालत में भी दस्तक दी है. सवाल यह है कि अगर गोली लगी तो क्या गोली उसका टै्रक्टर पलटने के बाद उसकी लाश को मारी गयी? अगर इस खबर को शशि थरूर और राजदीप सरदेसाई समेत कई सहाफियों ने सोशल मीडिया के जरिए आगे बढा दिया तो इसमें देशद्रोह कैसे हो गया? मगर हो गया क्योकि ‘मोदी हैं तो कुछ भी मुमकिन है’.  

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