दृश्यम में निर्देशक ने खुद को ही कथानक का एक अहम हिस्सा बना दिया

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दृश्यम में निर्देशक ने खुद को ही कथानक का एक अहम हिस्सा बना दिया

अमिताभ श्रीवास्तव  
दृश्यम 2 में लेखक-निर्देशक जीतू जोसेफ़ ने खुद सिनेमा को ही कथानक का एक अहम हिस्सा बना दिया है . हम शुरुआती दृश्य में ही नायक जार्ज कुट्टी (मोहनलाल) को फ़िल्म स्टार मम्मूटी की पिक्चर रिलीज़ न हो पाने की मायूसी बयान करते देखते हैं. सस्पेंस थ्रिलर दृश्यम के इस सीक्वेल में एक पुलिस अधिकारी के बिगड़ैल बेटे की हत्या करके उसकी लाश को छुपाने और अपने परिवार को इस अपराध के लिए पुलिस से बचाने की नायक की चतुराई की पहले दिखाई जा चुकी कहानी का विस्तार दिखाया गया है . नायक जार्ज कुट्टी इस बार क़ानून के फंदे में आकर भी कैसे सज़ा से बच निकलता है, यह रहस्य फ़िल्म के क्लाइमैक्स में खुलता है जिसमें सिनेमा को लेकर नायक का गहरा लगाव एक बहुत दिलचस्प मोड़ पैदा करता है. वही इस फ़िल्म का हासिल है.  
जिन्होंने मूल मलयाली फ़िल्म दृश्यम या उस पर इसी नाम से बनी हिंदी फिल्म देखी होगी, उनके लिए कहानी से जुड़ना और उसका आनंद उठाना आसान होगा. दृश्यम 2 का नायक जार्ज कुट्टी अपने परिवार के साथ हुए हादसे के छह साल बाद एक सफल , संपन्न व्यवसायी बन चुका है. अब वह एक सिनेमा हाॅल का मालिक है , जीप की जगह एसयूवी चलाता है, सुविधासंपन्न माहौल में रहता है . मलयाली सिनेमा में छा जाना उसका सपना है . इसके लिए वह फ़िल्म बनाना चाहता है जिसके लिए अपने ही लिखे उपन्यास की कहानी पर वह एक पुराने प्रतिष्ठित पटकथा लेखक से संपर्क में है.  
उधर, उसकी पत्नी और बड़ी बेटी छह साल पुराने उस हादसे को भूल नहीं पाए हैं और लगातार हत्या के अपराध बोध और पुलिस के हाथों पकड़े जाने के आतंक के साये में जी रहे हैं. बेटी को मिरगी के दौरे पड़ने लगे हैं. जार्ज पूरे परिवार को भय मुक्त होकर जीने का भरोसा दिलाता रहता है. ऊपर-ऊपर से देखने पर ऐसा लगता है जैसे जार्ज कुट्टी अपने परिवार से जुड़ी हत्या की वारदात के झटके को भुला कर इत्मीनान का जीवन जी रहा है. असल में हक़ीक़त कुछ और है, जिसका ख़ुलासा फ़िल्म के क्लाईमैक्स में होता है.  
पुलिस की जाँच भी जारी रहती है और एक दिन अहम सबूत हाथ लग भी जाता है. पुलिस जार्ज के पूरे परिवार को पूछताछ के लिए बुलाती है . मौके पर मारे गये लड़के की पुलिस अफ़सर माँ जाॅर्ज के साथ-साथ उसकी पत्नी और बेटी पर भी हमलावर होती है . परिवार को बचाने के दबाव मे जाॅर्ज पुलिस अधिकारी से अकेले में अपने जुर्म का इक़बाल कर लेता है. पुलिस को जैसे ही केस में निर्णायक कामयाबी लगने लगती है , क़िस्सा नाटकीय ढंग से पलट जाता है.  
फिल्म सुस्त रफ़्तार के बावजूद मोहनलाल के शानदार अभिनय की वजह से बाँधे रहती है . मोहनलाल मौजूदा भारतीय सिनेमा के मंजे हुए अभिनेता हैं . इस फ़िल्म में कई जगह किरदार की दिमाग़ी उधेड़बुन की अभिव्यक्ति के लिए आँखों से बहुत बढ़िया काम लिया है उन्होंने. क्लाइमैक्स तक पहुँचाने के लिए जीतू जोसेफ़ ने थोड़ा लंबा और अटपटा सा लगता ताना-बाना बुना है लेकिन आख़िरी हिस्सा अतार्किक लगते हुए भी फ़िल्म को एक सस्पेंस थ्रिलर वाले दिलचस्प मोड़ तक ले आता है. फ़िल्म अपराध और दंड की दार्शनिक व्याख्या पर ख़त्म होती है.  
दृश्यम 2 को अमेज़न प्राइम पर देखा जा सकता है. 
 

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